धीप्रज्ञ द्विवेदी, वरिष्ठ पर्यावरणविद
हमारे स्वस्थ रहने के लिये कुछ मूलभूत आवश्यकताएं हैं। जिसमें साफ हवा, स्वच्छ एवं पेयजल, पर्याप्त भोजन और सुरक्षित आश्रय प्रमुख हैं। जलवायु परिवर्तन स्वास्थ्य के उपरोक्त सभी सामाजिक और पर्यावरणीय निर्धारकों को प्रभावित करता है। इसका सीधा प्रभाव सभी जीवों के स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा पर पड़ता है।
जलवायु परिवर्तन का मापन
जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का मापन अनुमान आधारित ही हो सकता है। फिर भी, डब्ल्यूएचओ के एक आंकलन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से दनिया में 2030 और 2050 के बीच प्रति वर्ष लगभग 2,50,000 अतिरिक्त मौतें होने की आशंका है।
बुजुर्गों एवं बच्चों की सबसे ज्यदा होगी मौत
गर्मी के कारण 38,000, दस्त के कारण 48,000, मलेरिया के कारण 60,000 बुजुर्गों की मौत होने की आशंका है तो दूसरी तरफ कुपोषण के कारण 95,000 बच्चे मौत की गाल में प्रति वर्ष समाहित हो जाएंगे। यह अनुमान आधारित निष्कर्ष निरंतर आर्थिक विकास और स्वास्थ्य प्रगति को ध्यान में रखते हुए निकाला गया है।
जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रत्यक्ष क्षति लागत (यानी कृषि और जल और स्वच्छता जैसे स्वास्थ्य-निर्धारण क्षेत्रों में लागत को छोड़कर ), 2030 तक 2-4 बिलियन प्रति वर्ष के बीच होने का अनुमान है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तो सार्वभौमिक है लेकिन लेकिन कुछ ज्यादा असुरक्षित हैं। जिसमें छोटे द्वीप, विकासशील देश, तटीय क्षेत्रों, मेगासिटी और पहाड़ी और ध्रुवीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग विशेष रूप से असुरक्षित हैं।
बच्चे- विशेष रूप से गरीब देशों में रहने वाले बच्चे – परिणामी स्वास्थ्य जोखिमों से सबसे ज्यदा प्रभावित होंगे और उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के परिणाम लंबे समय तक सामने आएंगे।
कमजोर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे वाले क्षेत्र
ज्यादातर विकासशील देश इन परिवर्तनों का सही ढंग से सामना कर पाने की स्थिति में नहीं रहेंगे। इसका असर उनके पड़ोसी देशों पर भी पड़ेगा। जैसे बांग्लादेश में जलवायु परिवर्तन का कोई प्रभाव होगा तो वहां के लोग शरणार्थी बन कर भारत ही आएंगे।
जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य पर बुरा असर
जलवायु परिवर्तन आज मुख्यतः वैश्विक तापन (ग्लोबल वार्मिंग) के कारण हो रहा है। वास्तव में वैश्विक तापन और शीतलन एक सामान्य प्राकृतिक क्रिया है जो एक नियत समय में एकांतरिक रुप से होती रहती है, लेकिन वर्तमान में मानवीय गतिविधियों ने वैश्विक तापन की क्रिया को तेज कर दिया है।
130 वर्षों में लगभग 0.85 डिग्री सेंटीग्रेड गर्म हुई है दुनिया
इस घटना के लिए मुख्य रुप से कार्बन डाइऑक्साइड जिम्मेदार है। आइपीसीसी की एक रपट के अनुसार 64% तापन कार्बन डाइऑक्साइड के कारण होता है, 18% मिथेन, 12% सीएफसी, एवं 6% नाईट्रसऑक्साइड के कारण होता है। पिछले 130 वर्षों में, दुनिया लगभग 0.85 डिग्री सेंटीग्रेड गर्म हुई है।
3 दशकों में लगातार गर्मी बढ़ी है
पिछले 3 दशकों में से प्रत्येक किसी भी पूर्ववर्ती दशक की तुलना में क्रमिक रूप से अधिक गर्म है। इस कारण से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं और वर्षा के पैटर्न बदल रहे हैं। चरम मौसम की घटनाएं अधिक तीव्र और लगातार होती जा रही हैं। बाढ, सुखा, चक्रवात, टोरनाडो, जंगल की आग जैसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।
बिहार में आई बाढ़ है ताजा उदाहरण
इसका एक उदाहरण वर्तमान में बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश में हो रही लगातार वर्षा और उसके कारण बाढ़ जैसे हालात हैं। मई जून 2019 में इन क्षेत्रों में तालाब तक सूखने लगे थे। यह स्थितियां जलवायु परिवर्तन की ओर इंगित कर रही हैं। जलवायु परिवर्तन और उसके कारण मौसम में आ रहे बदलाव हमें प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह से प्रभावित कर रहे हैं जिनमें बढ़ती स्वास्थ्य समस्याएं भी शामिल हैं।
ग्लोबलवार्मिंग के फायदे
हालांकि ग्लोबलवार्मिंग (वैश्विक तापन) से कुछ स्थानीय लाभ हो सकते हैं। समशीतोष्ण या शीत जलवायु में सर्दी से होने वाली मौतों में कमी और कुछ क्षेत्रों में खाद्य उत्पादन में वृद्धि। दूसरी तरफ सच यह भी है कि समग्र रूप से बदलते जलवायु के कारण स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव होने की आशंका है। जलवायु परिवर्तन, स्वच्छ हवा, सुरक्षित पेयजल, पर्याप्त भोजन और सुरक्षित आश्रय जैसे स्वास्थ्य के सामाजिक और पर्यावरणीय निर्धारकों को प्रभावित करता है।
अत्यधिक गर्मी की जद में यूरोप भी
अत्यधिक गर्म हवा बुजुर्गों में हृदय और सांस की बीमारी से होने वाली मौतों में योगदान देता है। उदाहरण के लिए यूरोप में 2003 की गर्मी की लहर में, क्षेत्र का औसत तापमान सामान्य से 13 डिग्री अधिक हो गया। जिससे कम से कम 30,000 लोगों की मौत और 13 अरब यूरो की आर्थिक क्षति हुई। कुछ अनुमानों ने मरने वालों की संख्या 70,000 तक बताई है। उस समय, यह 16 वीं शताब्दी के बाद से यूरोप के लिए सबसे ज्यादा गर्मी थी।
अगर युरोप जैसे विकसित और आर्थिक रूप से सक्षम क्षेत्र में यह स्थिति है तो हम केवल अनुमान लगा सकते हैं कि विकासशील और गरीब देशों में यह कितना घातक असर करेगा। जबकि इस वर्ष घातक गर्मी के मौसम ने यूरोप भर में गर्मी का रिकॉर्ड बनाया है।
जर्मनी, पोलैंड, फ्रांस, स्पेन और चेक गणराज्य के कुछ हिस्सों में बुधवार 26 जून,2019 को मासिक और सभी समय के तापमान रिकॉर्ड टूट गए। स्पेन में गर्मी से कम से कम दो लोगों की मौत हो गई, जबकि शुक्रवार 28 जून,2019 को फ्रांस में पहली बार, 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का तापमान दर्ज किया गया है। गैलरग्यूस-ले-मोंट्यूक्स में 45.9 डिग्री सेल्सियस और विल्लेविले 45.1 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। जो फ्रांस का सर्वकालिक उच्च तापमान है।
उच्च तापमान अस्थमा को ट्रिगर कर सकते हैं
उच्च तापमान हवा में ओजोन और अन्य प्रदूषकों के स्तर को भी बढ़ाते हैं जो हृदय और श्वसन रोग को बढ़ाते हैं। अत्यधिक गर्मी में पराग कणों और अन्य एरोलेरजेन का स्तर भी अधिक होता है। ये अस्थमा को ट्रिगर कर सकते हैं, जो लगभग 300 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है। तापमान बढ़ने से इस बोझ के बढ़ने की आशंका है।
प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ता प्रकोप
विश्व स्तर पर, मौसम संबंधी प्राकृतिक आपदाओं की संख्या 1960 के दशक के बाद तीन गुना से अधिक हो गई है। हर साल, इन आपदाओं में मुख्य रूप से विकासशील देशों में 60,000 से अधिक मौतें होती हैं।
चिकित्सा सुविधाओं पर असर
समुद्र का बढ़ता स्तर और बढ़ती चरम मौसम घटनाएं घरों, चिकित्सा सुविधाओं और अन्य आवश्यक सेवाओं को नष्ट कर देंगी। दुनिया की आधी से अधिक आबादी समुद्र के 60 किमी के दायरे में रहती है। लोग स्थानांतरित होने के लिए मजबूर होंगे, जो मानसिक विकारों से लेकर संचारी रोगों तक कई स्वास्थ्य प्रभावों के जोखिम को बढ़ाएगा।
बारिस का बदलता पैटर्न बीमारियों को बढ़ा रहा है
तेजी से बदल रहे वर्षा के पैटर्न से ताजे पानी की आपूर्ति प्रभावित होने की आशंका है। सुरक्षित पानी की कमी से अस्वच्छता की समस्या आ सकती है। डायरिया का खतरा बढ़ सकता है। डारिया से हर साल 5 साल से कम उम्र के 5,00,000 से अधिक बच्चों की मृत्यु हो जाती है। पानी की कमी से सूखा और अकाल होता है। 21 वीं सदी के अंत तक, जलवायु परिवर्तन से वैश्विक स्तर पर सूखे की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि होने की आशंका है।
बाढ़ की आवृति बढ़ रही है
बाढ़ की आवृत्ति और तीव्रता भी बढ़ रही है, और चरम वर्षा की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि जारी रहने की आशंका है। बाढ़ ताजे पानी की आपूर्ति को दूषित करती है, जल-जनित बीमारियों के जोखिम को बढ़ाती है, और मच्छरों जैसे रोग फैलाने वाले कीड़ों के लिए प्रजनन-आधार बनाती है।
कुपोषण बढ़ाने में सहायक
बढ़ते तापमान और परिवर्तनशील वर्षा से सबसे गरीब क्षेत्रों में मुख्य खाद्य पदार्थों के उत्पादन में कमी होने की आशंका है। इससे कुपोषण और कुपोषण के प्रसार में वृद्धि होगी। इससे वर्तमान में हर साल 3.1 मिलियन लोगों की मृत्यु होती है।
संक्रमण के पैटर्न
जलवायु में आने वाले बदलाव जल जनित रोगों और कीड़ों, घोंघे या अन्य ठंडे रक्त वाले जानवरों के माध्यम से प्रसारित रोगों को बढ़ाता है।
वेक्टरजनित रोगों का भूगोल बदल रहा है
इससे वेक्टरजनित रोगों के संचरण के मौसम को लंबा करने और उनकी भौगोलिक सीमा के बदलने की आशंका है। मलेरिया जलवायु से बहुत प्रभावित है। एनाफिलिस मच्छरों द्वारा प्रेषित, मलेरिया हर साल 4,00,000 से अधिक लोगों को मारता है–जिसमें मुख्य रूप से 5 साल से कम उम्र के अफ्रीकी बच्चे हैं। डेंगू के एडीज मच्छर भी जलवायु परिस्थितियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है, और अध्ययनों से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन से डेंगू के संपर्क में वृद्धि जारी रहने की आशंका है।
वैश्विक तापन में कमी लाने की है जरूरत
जलवायु परिवर्तनों के कारण आ रहे स्वास्थ्य समस्याओं को कम करने के लिये वैश्विक तापन में कमी आवश्यक है जो बेहतर परिवहन, भोजन और ऊर्जा-उपयोग विकल्पों के माध्यम से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने से हो सकता है जिससे कम वायु प्रदूषण के माध्यम से स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
लेखक परिचयः पर्यावरण मामलो के जानकार हैं। स्वस्थ भारत अभियान के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं स्वस्थ भारत (न्यास) के न्यासी हैं। पर्यावरण एवं स्वास्थ्य विषय पर देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लिखते रहते हैं।