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फ्रंटलाइनर बने आयुर्वेद और होमियोपैथ

भारतीय आयुष पैथी को फ्रंटलाइनर न बनाके भारत सरकार भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के साथ अन्याय कर रही है। सरकार को इस दिशा में सार्थक एवं सकारात्मक तरीके से विचार करना चाहिए।

आशुतोष कुमार सिंह
कोरोना को लेकर वैश्विक आपातकाल की घोषणा की जा चुकी है। दुनिया के 200 से ज्यादा देश इससे प्रभावित हो चुके हैं। पिछले दो महीने से भारत में भी कोराना के मामले सामने आने शुरू हुए है। भारत में अब तक 6500 से ज्यादा मामलों की पुष्टि हो चुकी है। इससे मरने वालों की संख्या 200 पार कर गई है। वहीं दूसरी तरफ पूरी दुनिया में इस संक्रमण से मरने वालों की संख्या 95000 से ज्यादा हो चुकी है। 16 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हुए हैं। कोरोना ने सबसे पहले चीन को अपना निशाना बनाया उसके बाद आज अमेरिका सबसे बड़ा हॉट स्पॉट बना हुआ है। दुनिया का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र कहा जाने वाला अमेरिका में अब तक साढ़े चार लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके है। 16 हजार से ज्यादा लोग अकेले अमेरिका में मर चुके हैं।
जागरुकता ही है रामवाण दवा

वैश्विक स्तर पर चिकित्सक एक ही बात कह रहे हैं कि कोविड-19 से लड़ने एवं इस संक्रमण से बचने का एक ही उपाय है, वह है जागरूकता। बचाव ही इसका उपाय है। बचाव से उनका अभिप्राय यह है कि आप भीड़-भाड़ की जगहों पर न जाएं। यदि आपको सर्दी-जुकाम, खांसी है तो आप खुद को दूसरों से अलग रखें। अपनी इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए अपने आहार को संतुलित रखें। तरल पदार्थ का सेवन ज्यादा करें।

भारत के लिए सुखद पक्ष
भारत के लिए एक सुखद पक्ष यह है कि यहां की जलवायु एवं वातावरण कोरोना रोधी है। साथ ही भारत के पास स्वास्थ्य की विभिन्न पैथियां हैं जो इस आपात स्थिति में कारगर सिद्ध हो रही हैं। इस मामले में भारत के हाथ मजबूत है। वह इस स्वास्थ्य आपातकाल से निपटने में दुनिया के बाकी देशों से ज्यादा सशक्त है।
क्या एलोपैथ व आयुष एक मंच पर आएंगे
ऐसे में एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या भारत के सभी चिकित्सक इस बात के लिए तैयार है कि वे एक दूसरे की मदद करें। अमूमन यह देखने को मिलता है कि एलोपैथी के चिकित्सक आयुष के चिकित्सकों को फूटी कौड़ी भी देखना नहीं पसंद करते। ऐसे में क्या कोरोना को हराने के लिए एलोपैथ और आयुष के चिकित्सक एक साथ बैठकर एक मंच से भारत के हित में कोई कारगर कदम उठा पाएंगे। अगर वे ऐसा कर पाएं तो यह न सिर्फ भारत के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर इससे कोरोना से लड़ने में एक नई शक्ति का संचार होगा।

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जैविक युद्ध की आशंका 
मीडिया की कई रिपोर्ट्स में यह भी कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस एक तरह से जैविक हथियारों की बढ़ती ललक का दुष्परिणाम है। सच क्या है यह तो कहना मुश्किल है लेकिन अगर देश-दुनिया में वायरसों के साथ इस तरह को कोई भी प्रयोग हो रहा है तो वह मानवता के लिए हितकर नहीं है। देश-दुनिया की सरकारों को इस तरह के किसी भी शोध-प्रपंच को बेनकाब करना चाहिए।

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पिछले दिनों की बात है कोरोना पर एक टीवी डिवेट में गया था। देश के सभी पैथियों के चिकित्सक इस बात पर सहमत थे कि आज देश को कोरोना से हराना है तो सभी पैथियों में जो बेहतर ईलाज है उसका समन्वयन करना जरूरी है। पैनल में बैठे सभी चिकित्सक इस बात पर पूरी तरह सहमत थे कि पहले भारत के लोग हैं। उनका स्वास्थ्य रक्षा हम सब का पहला लक्ष्य होना चाहिए। इसलिए पैथियों की श्रेष्ठता बोध से इतर भारतीयों को कोरोना से कैसे बचाया जाए इस विषय पर मंथन एवं क्रियान्वयन जरूरी है। सभी ने एक स्वर से सरकार से कोरोना को लेकर सभी पैथियों को मिलाकर एक इंटीग्रेटेड गाइडलाइन जारी करने की अपील की है।
भारत सरकार का आयुष के साथ सौतेला व्यवहार

दुखद पक्ष यह है कि अभी तक भारत सरकार ने आयुष चिकित्सकों की सेवा लेना शुरू नहीं किया है। उन्हें फ्रंट लाइन में नहीं जोड़ा है। भारत सरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन की कठपुतली की तरह कार्य कर रही है। इतने बड़े देश के स्वास्थ्य की देखभाल की गाइडलाइन कोसो दूर बैठा डब्ल्यू एचओ तैयार कर रहा है।

दुखद पक्ष यह है कि अभी तक भारत सरकार ने आयुष चिकित्सकों की सेवा लेना शुरू नहीं किया है। उन्हें फ्रंट लाइन में नहीं जोड़ा है। भारत सरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन की कठपुतली की तरह कार्य कर रही है। इतने बड़े देश के स्वास्थ्य की देखभाल की गाइडलाइन कोसो दूर बैठा डब्ल्यू एचओ तैयार कर रहा है। और हम आंख बंद कर के उसे फॉलो कर रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि सरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन के जरूरी सुझावों को अपने देश की भौगोलिक स्थिति के अनुसार अमल में लाएं। साथ ही देश के स्वास्थ्य मानव संसाधन का उपयोग अपनी योजना के अनुसार करे।

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यह सर्वविदित है कि श्वसन संबंधी विकारों का ईलाज होमियोपैथ में बेहतरीन तरीके से किया जाता है। यह भी जगजाहिर है कि आयुर्वेद के पास व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की बहुत सी दवाइयां है। कोरोना का ईलाज श्वसन प्रक्रिया को दुरूस्त करने एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के इर्द-गीर्द ही है। इस बात की पुष्टि देश-दुनिया के तमाम चिकित्सक कर चुके हैं। ऐसे में भारतीय आयुष पैथी को फ्रंटलाइनर न बनाके भारत सरकार भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के साथ अन्याय कर रही है। सरकार को इस दिशा में सार्थक एवं सकारात्मक तरीके से विचार करना चाहिए।

अंत में यही कहना चाहता हूं कि वर्तमान समय में भारत में उपलब्ध चिकित्सा ज्ञान का समन्वित उपयोग करना बहुत जरूरी है। ताकि इस वैश्विक चिकित्सकीय आपातकाल से देश को सही राह दिखाई जा सके।

 
(लेखक स्वास्थ्य पत्रकार एवं स्वस्थ भारत अभियान के राष्ट्रीय संयोजक है।) 
 

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