अजय वर्मा
नयी दिल्ली। उम्मीद के मुताबिक नवजोत सिंह सिद्धू के उस बयान पर घमासान मच ही गया कि उनकी पत्नी नवजोत कौर का 4थे स्टेज का ब्रेस्ट कैंसर जड़ी-बूटियों से ठीक हो गया। इसके बाद ही तमाम कैंसर विषेषज्ञ इसे खारिज करने लगे हैं। छत्तीसगढ़ सिविल सोसाइटी के संयोजक डॉ. कुलदीप सोलंकी ने तो गुमराह करने के आरोप में 860 करोड़ का नोटिस भेल दिया। बहस आयुर्वेद और फार्मा उद्योग के कोण में फंस गयी है।
पहली आपत्ति टाटा मेमोरियल से
इसे सिलसिलेवार तरीके से देखना होगा। सबसे पहले टाटा मेमोरियल के डायरेक्टर डॉ. सीएम प्रमेश ने कहा कि इसका कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है और ऐसी जानलेवा बीमारी में घरेलू इलाज का प्रभावी नतीजा भी नहीं मिलता बल्कि देर होने से जीवन पर खतरा भी बढ़ सकता है। उनके साथ 262 कार्यरत और पूर्व कैंसर विशेषज्ञों ने भी संयुक्त विज्ञप्ति जारी कर सिद्धू के दावे को खारिज किया है। सबों ने इसे मरीजों को गुमराह करने वाला दावा कहा है। डॉ. प्रमेश का दावा है कि सिद्धू की पत्नी सर्जरी और कीमो थेरापी से ठीक हुई हैं।
दूसरे एक्सपर्ट की भी ऐसी ही राय
वैशाली के मैक्स हॉस्पिटल में ऑन्कोलॉजी विभाग में डॉ. रोहित कपूर बताते हैं कि कैंसर के कुछ मरीज इलाज के लिए आयुर्वेद और अन्य चिकित्सा पद्धति का सहारा लेते हैं। इनको पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा कहते हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि ये एकदम सुरक्षित है। इसी तरह लुधियाना की ऑन्कोलोजिस्ट डॉ. कनुप्रिया भाटिया मानती हैं कि महंगे इलाज के कारण कई कैंसर मरीज जरूर हर्बल नुस्खों पर निर्भर रहते हैं लेकिन इससे ठीक हो जाने का दावा करना हानिकारक भी हो सकता है। डॉ. जसबीर औलख कहते हैं कि उचित खानपान कैंसर का जरूरी हिस्सा है लेकिन पूर्णतः ठीक होने की बात गलत है।
(जारी)