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मासिक-धर्म की स्वच्छता को लेकर आज भी जटिलता क्यों?

अमित राजपूत

मेरी बचपन की दोस्त है, जिसकी शादी कुछ सालों पहले ही एक टियर-2 शहर में हुई थी। हाल ही में सालों बाद उससे मेरी लम्बी बातचीत हुई। उसने मुझे बताया कि कैसे वह अपने दकियानूस ससुराल वालों के कारण काफी बीमार हो गयी थी, जो अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पायी है और अपने बेहतर स्वास्थ्य की ओर बढ़ने के लिए उसे न केवल अपने ससुराल वालों से झगड़ा करना पड़ा, बल्कि उसके पति के साथ भी उसकी लड़ाई हो गई और अंत में वह ससुराल छोड़कर अपने मायके चली आई।
मामला उसके बेहतर रजोनिवृत्ति से जुड़ा हुआ था। मानना मुश्किल है, लेकिन उसके पति समेत ससुराल के लोग उसके मासिक-धर्म की स्वच्छता को लेकर उसे सहयोग नहीं करते थे। वह बताती है कि महीने में एकाध सेनेटरी पैड उपलब्ध कराने को छोड़कर उसका पति कभी उसकी मदद नहीं करता था। वह औसत धनी हैं, लेकिन माहवारी की स्वच्छता को लेकर सगज नहीं। उसे कपड़े के इस्तेमाल के लिए मजबूर होना पड़ा। वह बताती है कि यूँ तो वह कपड़े के इस्तेमाल के दौरान स्वच्छता का ध्यान रखती थी, लेकिन उससे कब-कहाँ-कैसे चूक हुई कि उसे लम्बे समय तक इंफेक्शन से जूझना पड़ गया।
वास्तव में, महिलाओं और लड़कियों को मासिक-धर्म होता है और इससे अगली पीढ़ी का जन्म होता है। यह एक नैसर्गिक प्रक्रिया है। लेकिन आज भी न केवल हमारे देश में, बल्कि दुनिया के तमाम देशों में यह एक टैबू की तरह बना हुआ है। इसकी स्वच्छता को लेकर जागरुकता में कमी गाँव, कस्बों और शहर हर जगह बड़े पैमाने पर है। लोग भूल जाते हैं कि रजोनिवृत्ति महिलाओं के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, फिर भी मासिक-धर्म को लेकर आज भी हमारे आसपास बहुत सारे कलंक और चुप्पियाँ हैं, जो महिलाओं के स्वास्थ्य की जटिलताओं का कारण बनती हैं।
जल आपूर्ति एवं स्वच्छता सहयोग परिषद की प्रकाशित मैन्युअल-रिपोर्ट की मानें तो एक महिला को चालीस वर्ष के अपने जीवनकाल में लगभग हर महीने अधिकतम पाँच से छह दिनों तक मासिक-धर्म होता है, जो करीब 3000 दिनों या लगभग आठ सालों के बराबर है। यद्यपि दुनिया की आधी आबादी पर इस महत्वपूर्ण घटना का सीधा प्रभाव पड़ता है और मानव जीवन-चक्र में इसकी निर्णायक भूमिका है। इसके बावजूद मासिक-धर्म या माहवारी अब भी एक ऐसा विषय है, जिसकी अरबों लोग चर्चा तक नहीं करते हैं। ये हैरानी की बात है कि मासिक-धर्म द्वारा पैदा हुई शर्म और गोपनीयता के कारण इसके साथ जुड़ी हुई जरूरतों को कई देशों में नजरअंदाज किया जाता है। मासिक-धर्म की स्वच्छता और उसके स्वास्थ्य संबंधी संसाधनों की चर्चा तक नहीं होती।
हालाँकि इधर के कुछ सालों में इस सन्दर्भ में भारत में औसतन बेहतर प्रयास हुए हैं। पहली बार भारत सरकार ने मासिक-धर्म स्वच्छता प्रबंधन (MHM) के विषय को एक महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दा बनाया है। इस दिशा में यह भी एक प्रतिमान बना, जब प्रधानमंत्री ने साल 2020 में लाल किला की प्राचीर से अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन के दौरान विशेष रूप से मासिक-धर्म स्वच्छता प्रबंधन के बारे में बात की।
इसके अलावा भारत में स्वच्छता को संविधान में राज्य सूची के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है। जाहिर तौर पर इसमें मासिक-धर्म से संबंधित स्वच्छता भी शामिल है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी पानी और स्वच्छता तक पहुँच को मानवाधिकारों के रूप में मान्यता दी गई है। इसमें भी महावारी की स्वच्छता सम्मिलित है। यह भी एक प्रभावकारी बदलाव है कि भारत में 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के बाद से स्वच्छता स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी हो गई है।
ऐसे में, बेहतर होगा यदि भारत में स्थानीय निकायों द्वारा हर मोहल्ले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की तर्ज पर उनके सभासदों या पार्षदों की देखरेख में हर जरूरतमंद महिला तक सेनेटरी नैपकिन की उपलब्धता को निःशुक्ल मुहैया कराना सुनिश्चित की जाए। तब निश्चित रूप से भारत का यह प्रयास दुनिया को मार्ग दिखाने वाला होगा और महिलाओं की माहवारी के स्वच्छता-संबधी प्रयासों में मौलिक और प्रभावकारी प्रयास सिद्ध हो सकेगा। इसे सरकार अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से थोड़ा मुश्किल से ही सही, मगर निकट भविष्य में पूरा जरूर कर सकती है।
बीते सप्ताह नई दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में हाशिये पर मौजूद दूरदराज और कमजोर आबादी पर ध्यान केंद्रित करती हुई सुलभ स्वच्छता मिशन फाउंडेशन द्वारा भारत में मासिक-धर्म स्वच्छता-प्रबंधन पर एक व्यापक शोध-रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें देश के दूर-दराज के इलाकों में विभिन्न समुदायों वाले 22 ब्लॉकों और 84 गाँवों की 4839 महिलाओं और लड़कियों का नमूना शामिल किया गया। इस रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि लड़कियाँ स्कूल के शौचालयों में पानी, साबुन, स्वच्छता की कमी और दरवाजे नहीं होने जैसे प्रमुख कारणों की वजह से मासिक-धर्म के दौरान इनका उपयोग करने से डरती हैं। स्कूल के शौचालयों से संबंधित यह डर मासिक-धर्म चक्र के दौरान लड़कियों को स्कूलों से अनुपस्थिति होने के लिए मजबूर करता है। इस कारण मासिक-धर्म चक्र से गुजरने वाली लड़कियाँ एक वर्ष में करीब 60 दिन स्कूलों से अनुपस्थित रहती हैं अथवा असुविधाओं का सामना करते हुए स्कूल जाती हैं।
ऐसा ही हाल निजी-सरकारी क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं का भी है। इसलिए अति आवश्यक है कि स्कूल-कॉलेजों और सभी कार्यस्थलों पर मासिक-धर्म स्वच्छता-प्रबंधन किट का स्थान बने। सामुदायिक मान्यताओं और वर्जनाओं को दर्शाते इस अध्ययन में भारत के सात राज्यों-असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र, ओडिशा और तमिलनाडु के 14 जिलों को शामिल किया गया था, जिनमें 11 आकांक्षी-जिले भी शामिल थे।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि मासिक-धर्म के दौरान रक्त-प्रवाह को अवशोषित करने के लिए मासिक-धर्म स्वच्छता उत्पादों तक लड़कियों की पहुँच न होना एक मौलिक समस्या है, जिसे सरकारों और समाज को आसान बनाना है। वरना लाखों लड़कियाँ मासिक-धर्म के बेहतर स्वास्थ्य से लगातार वंचित बनी रहेंगी। हालाँकि उन्हें यह सलाह दी जाती है कि जब वे कपड़े का इस्तेमाल करें, तो गर्म पानी और साबुन से कपड़े का एक टुकड़ा साफ करें। यदि कपड़ा पुराना है और लंबे समय से प्रयोग में नहीं लाया गया है, तो उसे स्वच्छ बनाने के लिए एंटीसेप्टिक घोल का उपयोग करें। लेकिन हकीकत यह भी है कि बहुत सी लड़कियाँ खासकर ग्रामीण इलाकों की औरतें एंटीसेप्टिक घोल का खर्च भी वहन नहीं कर सकती हैं। इसलिए और जरूरी हो जाता है कि सरकारें और स्वयंसेवी संस्थाएँ इस ओर अधिक गतिशीलता से ध्यान दें और हर घर स्नेटरी पैड उपलब्ध कराने की महती योजना बनाएँ।
फिलहाल इन दिनों चार सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले मासिक-धर्म स्वच्छता उत्पाद अधिक प्रचलन में हैं। इनमें नियमित टैम्पोन, सेनिटरी पैड, पैंटी-लाइनर और सुपर-शोषक टैम्पोन शामिल हैं। कम संख्या में ही सही, लेकिन कुछ लड़कियाँ आंतरिक मासिक-धर्म कप या पीरियड अंडरवियर का भी उपयोग करती हैं। सरकारें इनमें से किसी भी उत्पाद को, जो उन्हें अधिक सहूलियत दे, उसे चुनकर सभी महिलाओं तक इसकी पहुँच को सुनिश्चित करने हेतु अभियान छेड़े। इस क्रम में सुलभ स्वच्छता मिशन फाउंडेशन ईको-फ़ेडली सेनेटरी पैड बनाने की दिशा में भी काम कर रहा है, जो बेहद रोचक है। इसके अलावा समाज को भी इसमें भागीदार बनना पड़ेगा। इसका सबसे सरल रास्ता है कि वह अपने घर की लड़कियों और औरतों से इस बारे में खुलकर बातें करने का वातावरण निर्मित करें।
वास्तव में, हमें समझना होगा कि लड़कियों और औरतों में माहवारी के दौरान की स्वच्छता का यह मामला केवल स्वच्छता और सफाई तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह उनके आराम, गर्व, सम्मान, आत्मविश्वास और इससे संबधित माँग को भी पैदा करने की बात करता है, ताकि महिलाएँ और लड़कियाँ हर समय बिना किसी शर्म और डर के समाज में गौरव के साथ जी सकें।

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