हर अंधेरी रात की सुबह होती है। इसी बात को रेखांकित कर रहे हैं वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. अनुरूद्ध वर्मा
एसबीएम विशेष
कोरोना, कोरोना और कोरोना आज कल हर तरफ केवल कोरोना की ही चर्चा है। चीन के वुहान शहर से चला कोरोना वायरस जिसे कोविड-19 के नाम से जाना जाता है। आंख से न दिखाई पड़ने वाले इस वायरस की वजह से विश्व के 200 से अधिक देशों के लोग भय एवं दहशत में जी रहें हैं।
कोरोना वायरस से दहशत का सबसे बड़ा कारण इससे बचाव के लिये किसी वैक्सीन या टीके का ठीक से उपलब्ध न होना है। सबसे गम्भीर बात यह है कि कोरोना वायरस का संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है। उसका संक्रमण संक्रमित व्यक्ति के छींकने, खाँसने से निकले हुए बूंदों से फैलता है और श्वसन-तंत्र पर आक्रमण करता है। इसका संक्रमण प्रभावित सतह को छूने से यह हाथों द्वारा फैलता है। यह संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने जैसे उसे छूने, उसके कपड़े छूने से फैलता है इसलिए इससे बचाव के लिए जरूरी है कि हाथों को साबुन पानी से धोया जाये। अल्कोहल आधारित सेनेटाइजर का प्रयोग किया जाए। खांसते एवं छींकते समय नाक एवं मुंह को रुमाल या टिश्यू पेपर से ढक लिया जाए तथा संक्रमित व्यक्ति से कम से कम एक मीटर की सामाजिक दूरी बनाये रखी जाए।
कोरोना के संक्रमण की गंभीरता को देखते हुए इसके संक्रमण की आशंका की श्रृंखला को तोड़ने के किये प्रधानमंत्री मंत्री जी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू की घोषणा की एवं बाद में 25 मार्च से 21 दिन का लॉक डाउन घोषित कर लागू कर दिया। क्योंकि अब देश के सामने कोरोना की कमर तोड़ने के लिए यही एकमात्र विकल्प बचा था। लॉकडाउन के दौरान आवागमन के सभी साधन, दुकाने, मॉल, सिनेमाहॉल, अस्पताल सब कुछ बंद हो गया रफ्तार एकदम ठप्प हो गई। लोग घर की लक्षमण रेखा में बंध कर रह गये। घर से बाहर सड़क पर जाना प्रतिबंधित हो गया। देश की जनता के लिए संभवतः लॉकडाउन नया अनुभव था। लोगो ने इसके बारे में कभी सोचा भी नहीं था। बाद में इसकी आवश्यकता को महसूस करते हुऐ इसे दूसरे और तीसरे चरण में 17 मई तक बढ़ा दिया गया है जो अभी जारी है। कल हुई मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में पीएम को यह सुझाव दिया गया है कि इस लॉकडाउन को और बढ़ाया जाए।
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लॉकडाउन का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
लॉकडाउन का असर लगभग 40 दिनों से घरों में रह रहे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। लॉकडाउन के कारण सामान्य जीवन का माहौल बदल गया है सब कुछ थम सा गया है और इसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। एकाएक बदलाव से घबराहट, झुंझलाहट, चिड़चिड़ापन, गुस्सा, नींद कम आना, आलस्य, तनाव, अवसाद, चिंता जैसी मानसिक समस्याएं तो उत्पन हो ही रही हैं। साथ ही टीवी पर कोरोना की लगातार चल रही खबरों ने भी लोगों में डर, दहशत ,चिंता एवं तनाव पैदा कर दिया है। लॉक डाउन के चलते लगभग 25% लोग किसी ना किसी मानसिक परेशानी से जूझ रहे हैं। लॉकडाउन के चलते दिन रात घर में पड़े रहने के कारण उदासी, आलस्य, काम में मन ना लगना, मूड बदलना, सिर दर्द, सीने में दर्द, आदि के लक्षण भी लोगों में आ रहे हैं। जब से यह पता चला है कि कोरोना वृद्घों, ह्रदय रोगियों, डायबिटीज, कैंसर पीड़ितों, शारीरिक रूप से कमजोरों को ज्यादा संक्रमित कर सकता है तब से वे चिंतित हैं कि कहीं उन्हें भी कोरोना का संक्रमण न हो जाए।
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लॉकडाउन व घरेलू हिंसा
लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा में वृद्धि की खबरें भी ज्यादा आ रहीं हैं। यह भी चिंताजनक बात है। लॉकडाउन के दौरान जारी मंदी से नौकरी जाने का खतरा, व्यापार में नुकसान, अनिश्चित भविष्य, किसी आत्मीय का घर से बहुत दूर होना भी चिंता का सबब बना हुआ है। लॉकडाउन के कारण स्कूल, कॉलेज सब बन्द हो गए हैं। बच्चों का खेलना बाहर जाना बंद हो जाने के कारण उनको परिवार के साथ समन्वय बनाने में भी परेशानी हो रही है। उनमें भी तनाव, चिड़चिड़ापन, गुस्सा, हिंसा के लक्षण आ रहे हैं। साथ ही कुछ बच्चे मोबाइल एवम लैपटॉप पर गलत तरह की, एवं अश्लील पिक्चर एवं वीडियो देखने की लत के शिकार हो रहें हैं। कोरोना के संक्रमण के भय के कारण हर व्यक्ति दूसरे को संक्रमित समझ रहा है। जिससे वह कभी कभी असम्मानजनक व्यवहार भी करने लगता है। हर व्यक्ति डर रहा है कि कहीं वह कोरोना के संक्रमण का शिकार ना हो जाए और कभी कभी लोग वहम का शिकार हो कर जरा से खांसी, बुखार के लक्षण होने पर उसे कोरोना का संक्रमण समझ कर चिंतित होने लगते हैं।
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मानसिक स्वास्थ्य को ऐसे करें मजबूत
लॉकडाउन के दौरान यदि आपका मानसिक स्वास्थ्य अस्वास्थ्यकर है तो इससे निपटने के लिये इन बातों पर ध्यान दें।
- सकारात्मक सोचें
- शारीरिक गतिविधियाँ जैसे व्यायाम, योग, प्राणायाम ,शारीरिक श्रम नियमित रुप से करते रहें
- खूब पानी पियें, पौष्टिक भोजन करें पर्याप्त नींद ले
- अपनी अभिरुचियों को नया आयाम दें सकारात्मक साहित्य पढ़ें
- उनके बारे में भी सोचें जो गरीब, बीमार या बुजुर्ग हैं, उनकी मदद करें
- खुद पर भरोसा रखें जो इस समय हो रहा है वह बुरा है लेकिन अच्छे की उम्मीद न छोड़ें
इस प्रकार लॉकडाउन के दौरान मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रख सकतें है और खुशहाल एवं सुखी समय बिता सकतें है। क्योंकि लॉक डाउन स्थायी नहीं है और आशावान रहना है कि हर अंधेरी रात के सुबह होगी।