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दक्षिण एशिया में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के उपायों पर चर्चा

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। जलवायु और नीति विशेषज्ञों ने दक्षिण एशिया में हो रहे जलवायु परिर्वतन के प्रभाव की गंभीरता पर चर्चा की। एक पैनल चर्चा में क्लाइमेट फाइनेंस, नेट जीरो एमिशन (ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन रोकना), लंबी अवधि तक चलने वाली जीवन शैली के लिए आवश्यकताओं के लिए उठाए गए कदम और राहत के उपायों पर चर्चा की गई।

2070 तक नेट जीरो एमिशन का लक्ष्य

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में वरिष्ठ सलाहकार, डॉ. अखिलेश गुप्ता ने मानव विकास सूचकांक को बनाए रखते हुए 2070 तक नेट जीरो एमिशन प्राप्त करने के लिए बड़े कदम उठाने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने जिला स्तर पर अतिसंवेदनशीलता मूल्यांकन के साथ-साथ आपदा जोखिम मूल्यांकन जैसे अध्ययनों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के वर्तमान और भविष्य के प्रभावों की मात्रा को समझने के लिए डीएसटी के प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ये मूल्यांकन जलवायु अभियान शुरू करने में सही कदम उठाने में मदद करेंगे। उन्होंने ऑनलाइन वेबिनार में बताया कि यह जलवायु परिवर्तन के लिए बेहतरीन परियोजनाओं के विकास में सटीक ड्राफ्ट बनाने में मदद करेगा। इससे पूरे भारत में जलवायु-संवेदनशील समुदाय भी लाभान्वित होंगे।

मिलकर काम करने की जरूरत

उन्होंने कहा, हम सभी को सामूहिक ज्ञान के साथ उन चुनौतियों का सामना करने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है, चाहे स्थानीय स्तर पर या वैश्विक स्तर पर। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि विकसित देशों द्वारा विकासशील और अविकसित देशों के लिए जलवायु वित्त पोषण उनके केंद्र बिंदु में नहीं है।

सटीक रोडमैप चाहिए

एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एआईटी), बैंकॉक के अध्यक्ष डॉ. ईडन वून ने कहा कि जलवायु परिवर्तन उम्मीद से अधिक तेजी से बदल रहा है। ऐसे में इस संकट से निपटने के लिए सटीक रोड मैप के साथ तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि जलवायु परिवर्तन एक गंभीर मुद्दा है, जिसका पृथ्वी के हर प्राणी पर प्रभाव पड़ता है। ऐसे में नीति निर्माताओं की भूमिका महत्वपूर्ण है कि वह जो कदम उठाए, उसका असर स्थानीय स्तर से लेकर वैश्विक स्तर तक पड़े।’’

आदर्श बदलाव जरूरी

एआईटी, बैंकॉक में बंगबंधु चेयर प्रोफेसर और डब्ल्यूजीआईआईआई रिपोर्ट के समन्वयक प्रमुख लेखक प्रोफेसर जॉयश्री रॉय ने कहा, ‘‘आईपीसीसी रिपोर्ट से पता चलता है कि लोगों को केंद्र में रखकर और लंबी अवधि के विकास की दिशा में लक्ष्य बनाकर जलवायु परिर्वन से निपटने के लिए एक आदर्श बदलाव की आवश्यकता है।’’ उन्होंने आईपीसीसी के छठे मूल्यांकन चक्र उत्सर्जन को कम करने के लिए विभिन्न विकास गतिविधियों में अपनाए जाने वाले राहत विकल्पों के बारे में बोलते हुए ये बातें कहीं।

क्षेत्रीय स्तर के उपाय हों

पाकिस्तान के प्रधान मंत्री कार्यालय से जुड़े श्री साद हयात तम्मन ने क्षेत्रीय स्तर के उपाय और राहत शमन प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और कहा कि समस्या से निपटने के लिए दक्षिण एशिया को वित्तीय मदद की आवश्यकता है। श्री संजय भौमिक, एमओईएफ, बांग्लादेश ने बांग्लादेश की जलवायु रणनीति योजना पर विस्तार से बताया, जो जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए स्थानीय स्तर पर लागू करने को प्राथमिकता देता है जबकि डॉ. फिदा मलिक, सीईजीआईएस, बांग्लादेश ने बांग्लादेश के समुद्र जल स्तर में वृद्धि, शहरों में बढ़ती गर्मी और शहरों पर बढ़ती आबादी का बोझ जैसे मुद्दों पर प्रकाश डाला।

ग्रीनहाउस गैस निकासी में कमी हो

जीवन, जैव विविधता और बुनियादी ढांचे के बढ़ते नुकसान से बचने के लिए, जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के साथ-साथ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में बड़ी कटौती करने के लिए महत्वाकांक्षी, योजना बनाने की आवश्यकता है। नई रिपोर्ट पर जोर दिया गया है कि अब तक, जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अपनाए जाने वाले कदम की प्रगति असमान है और उठाए गए कदम और बढ़ते जोखिमों से निपटने के लिए क्या जरूरी है, के बीच अंतराल बढ़ रहा है।

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