नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। देश भर के विभिन्न अंचलों से लखनऊ में पधारे लगभग पांच सौ लोककलाकारो की मंगल उपस्थिति से सजा ‘देशज’ का मंच धन्य हो गया। ‘देशज’ दर्शन के लिए दोनों दिन ऐसी भीड़ उमड़ी कि देख कर सबका मन अत्यंत उत्साहित हो गया। कार्यक्रम आरंभ हुआ एक सौ महिला कलाकारों द्वारा भगवान रामजन्म की बधाई सोहर मंगल गीत से।
इस बार अन्य विधाओं के साथ-साथ मुख्य विषय था ‘शौर्य परंपराओं में निहित कलाएं’ जिन्हे मार्शल आर्ट भी कहा जाता है। केरल के कलारायीपट्टू, बंगाल के राइबिंशी ने सभी को रिझाया, पंजाब के गतका ने सभी को हतप्रभ कर दिया, तो मलखंभ में छोटे बच्चों की निपुण पकड़ ने सबको दंग किया, लेकिन सब पर भारी थी कश्मीर से आई बेटियों की उपस्थिति, जो श्रीनगर से ‘राऊफ’ लेकर आई थीं। असम का बिहू, बुंदेलखंड का नौरता, राजस्थान का कालबेलिया और चरी, मणिपुर का मोहक रास…लोककलाकारों ने ऐसा उत्सव रचा कि लखनऊ ही देशज बन गया।
अद्भुत स्मृतियां हैं।
प्रतिदिन पांच बजे से पूर्व दर्शकों का आसन ग्रहण कर लेना, उंगली थामे बच्चों को ले कर माता-पिता का आना, युवाओं का कलाकारों से मिलने, कैमरे में उनको मुद्रा को कैद करने की उत्कंठा, समापन को घोषणा के बाद भी दर्शकों का अपनी जगह से न उठना और कलाकारों के साथ मंच पर नृत्य करते हुए एकाकार हो जाना…यही मेरा सपना है, यह मेरा दृढ़ संकल्प। लोककला को अभीष्ट मंच, सम्मान, सराहना मिले और आज का युवा यह समझे कि भारत को जानना हो तो भारत की लोककला को जानें, जुड़ें।
देशज संभव हो पाता है तो यह पुरखों की कृपा है।
(मालिनी अवस्थी के फेसबुक वाॅल से साभार)