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हर तबके के लिए जरूरी किताब – विटामिन ज़िन्दगी

वरिष्ठ साहित्यकार सूरज प्रकाश के फेसबुक वॉल से
ताकत को वजन से नापा जा सकता है और गति को सेकेंड के हिसाब से लेकिन हिम्मत – हिम्मत को आप नहीं नाप सकते।
ललित से मेरी पहली मुलाकात दिल्ली में एनबीटी में हुई थी शायद 2014 में। तब लंच टाइम था और उन्होंने मुझे अपने साथ खाना खिलाया था। दूसरी बार हम पुस्तक मेले में मिले थे लेकिन ये दुआ सलाम वाली मुलाकात थी।
ललित से कल रात मेरी लंबी मुलाकात हुई, लगभग 4 घंटे की और यह मुलाकात मुझे ज़िन्दगी भर याद रहेगी। मुझे ऐसा लग रहा था कि ललित मेरे घर आए हैं और मुझसे बतिया रहे हैं। खुद अपने जीवन की कहानी सुना रहे हैं। एक ऐसी कहानी जो अविश्वसनीय तो लगती ही है, हैरान भी करती है। आखिर वे ये सब कैसे कर पाए। कैसे अपने जीवन के हर पल, हर दिन और हर क्षेत्र की अंतहीन तकलीफें झेल पाए और हर बार विजेता बन कर उससे पार पा सके। बेशक उनके लिए कोई भी जानलेवा तकलीफ़ या परीक्षा अंतिम नहीं होती थी। एक से निपटे होते और दूसरी सामने आ खड़ी होती।
उनकी हिम्मत, उनका जज्बा और आगे बढ़ने की उनकी लगन अविश्वसनीय होते हुए भी सच है। हैरान कर देने वाला जीवन ललित ने जीया है। वे बार बार टूटे, बिखरे लेकिन हारे नहीं। किसी का जीवन इतनी कठिन और इतनी अधिक परीक्षाएं ले सकता है, ये जानने के लिए आपको विटामिन ज़िन्दगी पढ़नी होगी।
कल रात की मुलाकात राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता रोल मॉडल ललित कुमार की इसी आत्मकथा विटामिन जिंदगी के जरिए हुई।
मैं पहले से उन्हें कविता कोश और गद्यकोष के संस्थापक निदेशक के रूप में जानता था। कल उनकी जीवनी के जरिए उनके जीवन को नजदीक से जाना और शिद्दत से महसूस किया। यह जाना कि आप जीवन में जो कुछ करना चाहते हैं वह मुश्किल तो होता है असंभव नहीं होता।
ढाई सौ पेज की इस किताब में उन्होंने 4 बरस की उम्र से पोलियो ग्रस्त हो जाने की घटना से जीवन के लगभग 40 बरस के लंबे संघर्ष, अंतहीन शारीरिक पीड़ा, उपेक्षा, समाज की हद दर्जे की उदासीनता का इतना जीवंत ब्यौरा दिया है कि हम हैरान हो जाते हैं कि वे इन सारी तकलीफों के महासमंदर से कैसे पार कर पाए। दो चीज़ें उनके साथ रहीं। परिवार वालों का साथ, उनकी हिम्मत,
सहनशीलता और ललित खुद की मेहनत, हिम्मत और हर समस्या को चुनौती के रूप में लेने का हौसला।
किताब के हर पन्ने पर किसी न किसी नई समस्या का, दिक्कत का, तकलीफ का, दर्द का, पीड़ा का जिक्र है लेकिन उसके ही अगले पन्ने पर उससे निपटने की हिम्मत का दर्शन भी है। यही हिम्मत आज ललित को वहां तक ले कर आयी है। वे अभी भी सफ़र में हैं।
जिन तकलीफ़ों से वे गुज़रे हैं, कोई और होता तो कब का हिम्मत छोड़ चुका होता और अपने हालात से समझौता कर लेता लेकिन ललित ने कभी हिम्मत नहीं हारी और हर चुनौती का डटकर सामना किया। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं होने दिया और सिद्ध करके दिखा दिया कि सब कुछ किया जा सकता है।
कलाम साहब ने कहा था कि सपने वे नहीं होते जो हम नींद में देखते हैं। सपने वे होते हैं जो हम सोने नहीं देते। ललित ने बहुत सारे सपने देखे और उन्हें अपनी हिम्मत के बल पर पूरा करके दिखाया। ललित की ज़िन्दगी हर पल हमें प्रेरित करती है कि अगर हिम्मत है तो कुछ भी मुश्किल नहीं है।
हिंदी युग्म से छपी और अमेजन पर उपलब्ध ललित कुमार की आत्मकथा विटामिन ज़िन्दगी समाज के हर वर्ग के लिए जरूरी किताब है। उनके लिए भी जिन्हें विकलांगों के प्रति अपना नजरिया बदलने की जरूरत है और उन विकलांगों के लिए भी जो अपने बलबूते पर कुछ करना चाहते हैं और समाज पर बोझ के रूप में नहीं बल्कि समाज के लिए आदर्श के रूप में अपनी पहचान स्थापित करना चाहते हैं।
आखिर में, अगर मेरे लिए संभव होता तो मैं ललित का नाम पद्मश्री के लिए और उनकी आत्मकथा विटामिन ज़िन्दगी का नाम साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए सिफारिश करता। हालांकि उनका नाम और काम किसी पुरस्कार या पदवी से ऊपर हैं। वे संघर्ष की जीती जागती मिसाल हैं। उनका जीवन एक जुझारू इंसान का जीवन है।
ललित कुमार तुम्हें सलाम करता हूं

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