नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। विकसित और अमीर देशों ने अजरबैजान में आयोजित COP 29 की बैठक में पर्यावरण की रक्षा के लिए विकासशील और गरीब देशों को 300 बिलियान डॉलर यानी 25. 29 लाख करोड़ देने का वादा किया है जो 2035 तक मिल जायेगा। वैसे यह नहीं साफ़ है कि यह पैसा किस साल से देना चालू किया जाएगा। इसे नाकाफी और शर्त लगाने पर भारत ने इसका विरोध किया है।
कई मुल्कों में नाराजगी
रिपोर्ट के अनुसार पहले ये देश मात्र सौ बिलियन डॉलर देने पर ही राजी थे। बाद में इसे 300 बिलियन किया गया। यूरोपियन देशों ने इसे क्रांतिकारी बताया और कहा कि इससे गरीब देशों की सहायता भी होगी। लेकिन दक्षिणी ध्रुव के देशों मसलन अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका ने इसेे आधा-अधूरा बताया है। यह पैसा या तो कर्ज या किसी प्रोजेक्ट में लगाने के लिए सहायता के तौर पर दिया जाएगा। यह पैसा वह सभी विकसित देश दे रहे हैं जिनके पिछले 300 सालों में जरूरत से ज्यादा कोयला, तेल और बाकी ईंधन उपयोग करने और पेड़ काटने से विश्व जलवायु की समस्या में फंस गया है।
पैकेज के लिए लगा दी गई है शर्त
करार के मुताबिक यह पैसा तभी दिया जाएगा जब विकासशील या गरीब देश अपना कार्बन उत्सर्जन घटाएंगे और लक्ष्य प्राप्त करेंगे। इन पैसों का इस्तेमाल अक्षय या स्वच्छ ऊर्जा के प्रोजेक्ट लगाने में किया जाएगा। विकसित देशों का कहना है कि उन्होंने पहले 100 बिलियन डॉलर का वादा किया था जो कि 2022 में पूरा कर लिया गया है।
भारत की नाराजगी के कारण
इस करार के दौरान वहां मौजूद भारतीय प्रतिनधि चाँदनी रैना ने इसका जमकर विरोध किया। उन्होंने कहा कि भारत इस समझौते को वर्तमान स्वरूप को स्वीकार नहीं करता है। जितना पैसा जुटाने की बात की गई है वह मामूली है। भारत ने यह समझौता करने के तरीके पर भी सवाल खड़े किए। भारत ने कहा कि सब कुछ पहले ही मैनेज किया जा चुका था और वहां ना किसी की सहमति ली गई और ना ही उनकी समस्याएँ सुनी गईं। इसे बजाय जल्दबाजी में समझौता कर दिया गया। भारत का समर्थन नाइजीरिया समेत बाकी देशों ने भी किया। नाइजीरिया ने 300 बिलियन डॉलर की धनराशि को एक मजाक करार दिया है।