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मानसिक बीमारियां बड़े स्तर पर लेकिन सरकार-समाज गंभीर नहीं

डॉ॰ मनोज कुमार

इस बार के बजट में स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं के लिए 89,155 करोड़ की राशि मिली है। मानसिक स्वास्थ्य भी इसी का एक हिस्सा बना है। पिछले बजट में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी द्वारा लांच राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए इस बार लगभग 13 फीसद ज्यादा राशि मुहैया करायी गयी है। यानि जो पिछले बार 121 करोड़ रुपए मिले थे उसे अब 133.75 करोड़ रूपये दिये गये हैं। मानसिक स्वास्थ्य के मामले जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं, उस हिसाब से 2 प्रतिशत से भी कम मेंटल हेल्थ बजट दिखाता है कि अब भी हम इसे मुख्यधारा में नहीं लाना चाहते।
मानसिक रोग को अभी भी समाज में गंभीरता से नहीं लिया जाता। केवल पागल हो जाने को ही मानसिक रोग माना जाता है जबकि डिप्रेशन (mood disorder, bipolar disorder), anxiety disorder, personality disorder और psychotic disorder या schizophrenia आदि भी मानसिक रोग ही है। गौर करें तो समझ सकेंगे कि आपके आसपास ढेरों रोगी हैं।
कोविड-19 के बाद से उभरी मानसिक समस्याएं सुरसा की तरह तेजी से मुँह बाये जा रही है। लैंसेट की 2020-2021 की रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश में अवसाद पहले की तुलना में 28 फीसद ज्यादा बढ़ा है जबकि 26 फीसद चिंता जनित मानसिक समस्याएं बढ़ीं हैं। भारत की सर्वश्रेष्ठ मानसिक स्वास्थ्य संस्थान निमंहास बताता है कि देश की 80 प्रतिशत जनता को मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित चिकित्सीय लाभ न के बराबर मिल रहा है। सबसे बङ़ी दिक्कत मानसिक मरीज और उनके परिजनों को उठानी पङ़ रही है जो गंभीर किस्म की मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं। ऐसे में इस बीट पर कम आवंटन इस क्षेत्र में कार्यरत स्वास्थ्य कर्मियो के मनोबल को तोङ़ता है।
अब भी हमारे यहाँ मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बोलने की आजादी नही है। लोग इसे अभिशाप ही समझते हैं। नतीजतन लोग मानसिक बीमारी का इलाज ससमय नहीं कराना चाहते। देर से लाने पर इलाज लंबा और खर्चीला हो जाता है।
कम बजट होने की वजह से राज्य स्तर पर या सरकारी कार्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को प्रमोट नहीं किया जा रहा। सरकार के स्तर पर लोगों को जागरूक नहीं करने से अनेक परेशानियां बढ़ रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 29 साल तक के युवाओं में सबसे ज्यादा आत्महत्या दर पाया गया है। लोगों में मानसिक स्वास्थ्य पर अनदेखी की वजह से उत्पन्न सुसाइड की स्थिति भयावह है। उस रिपोर्ट के मुताबिक 12.9 प्रतिशत आत्महत्या दर वर्ष 2019 में दर्ज है। क्षेत्रीय स्तर पर देखा जाये तो 10.2 फीसद और विश्व के मुकाबले में 9.0 फीसद है जो बहुत ज्यादा है।
मानसिक स्वास्थ्य मामले में स्कूलों पर अधिक ध्यान देना होगा। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान न देने से उनकी पढ़ाई, समाज और परिवार पर बुरा प्रभाव सामने आता है। बच्चों में अलग से बजट बनाकर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर कार्य करने की आवश्यकता होगी।

भारत में मौजूद मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम वर्ष 1982 से।
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017 से।
किरण हेल्पलाइन वर्ष 2020 से।
सभी आयुवर्ग के लिए वर्ष 2020 में ‘मानस’ मोबाइल एप।
इसके साथ ही घरेलू हिंसा के शिकार लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर कोई काम नहीं हो रहा है। कम बजट से यौन शोषण के शिकार लोगों के लिए उनके मानसिक स्वास्थ्य पर काम करने में दिक्कत हो सकती है। अभी मेंटल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर और विकसित करना होगा ताकि निर्धनता से उत्पन्न मानसिक समस्याएं और उनके निराकरण के लिए बेहतर काम हो सके।

(लेखक बिहार के वरीय मनोचिकित्सक व मनोवैज्ञानिक हैं)

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