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कोरोना योद्धाः जनऔषधि मित्रो के सेवाभाव को मेरा प्रणाम पहुंचे…

कोरोना युद्ध में फ्रंटफूट से लड़ रहे जनऔषधि मित्रों की सेवा भाव की कहानी सुना रहे हैं वरिष्ठ स्वास्थ्य पत्रकार आशुतोष कुमार सिंह

नई दिल्ली / एसबीएम संडे स्पेशल
कोरोना आपातकाल में देश-दुनिया गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। मनुष्यों से दूरी बनाने के लिए मनुष्य अभिशप्त है। सामाजिक दूरियों को पाटने का पाठ पढ़ाने वाला समाज, सामाजिक दूरी की वकालत कर रहा है। ऐसे में लोगों को सस्ती दवाइयां पहुंचाने, लोगों की भूखों की चिंता करने एवं मेडिकल सलाह देने के लिए देश भर के जनऔषधि मित्र सामने आए हैं।
देश भर में फैले जनऔषधि मित्रों ने न सिर्फ लोगों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध करा रहे हैं, बल्कि लोगों के घर जा-जा कर उन्हें जरूरी दवाइयां पहुंचा भी रहे हैं।
स्वस्थ भारत (न्यास) के तत्वावधान में प्रधानमंत्री जनऔषधि परियोजना के सहयोग से संपन्न हुए स्वस्थ भारत यात्रा-2 के दौरान सैकड़ों जनऔषधि संचालकों को जनऔषधि मित्र बनाया गया था। स्वस्थ भारत (न्यास) ने देश भर में बीपीपीआई के बैनर तले चलाए जा रहे जनऔषधि केन्द्र संचालकों व फार्मासिस्टों को जनऔषधि मित्र प्रमाण पत्र से सम्मानित किया था। 21 हजार कि.मी की उस मैराथन यात्रा से जनऔषधि संचालकों एवं फार्मासिस्टों में जन-स्वास्थ्य के प्रति सामाजिक चिंतन की धारा प्रवाहित हुई थी। उनमें सामाजिक दायित्वबोध तीव्र हुआ था। उसी दायित्वबोध की तीव्रता ने आज कोरोना-काल में देश को जनऔषधि मित्रो के रूप में फ्रंट से लड़ने वाले कोरोना योद्धा दिया है।
बनारस में तरनी फाउंडेशन कई जनऔषधि केन्द्रों का संचालन कर रहा है। इस फाउंडेशन द्वारा संचालित जनऔषधि केन्द्र के फार्मासिस्टों को भी स्वस्थ भारत यात्रा के दौरान जनऔषधि मित्र बनाया गया था। आज तरनी फाउंडेशन की अध्यक्षा अपर्णा कपूरिया के मार्गदर्शन में काम कर रहे इन जनऔषधि मित्रो ने न सिर्फ बनारस बल्कि आस-पास के जिलों में भी लोगों को दवाइयां पहुंचाई है।

जनऔषधि मित्र बनारस
जनऔषधि मित्र बनारस

बनारस के जनऔषधि मित्रो के सेवा भाव की कहानी

अपर्णा कपूरिया ने इस बावत एक घटना का जिक्र हमसे किया है। उन्होंने बताया कि एक दिन उनके यहां दिल्ली से एक कॉल आया। यह फोन कॉल एक बेटे की थी, जो दिल्ली में सर्विस करता है। उनके बुजुर्ग माता-पिता सोनभद्र के बभनी ब्लॉक के पोखरा गांव में रहते हैं। उन्होंने बताया, उनके माता-पिता मधुमेह और थायराइड से पीड़ित हैं और उनकी दवाएं खत्म हो गई हैं। उन्हें दवाओं की सख्त जरूरत है।
लॉकडाउन की वजह से वह दिल्ली से खुद तो आ नहीं सकता और जिस कोरियर से वह दवाएं भिजवाया करता था, उसकी सेवा भी बंद है। इस कहानी को आगे बढ़ाते हुए श्रीमती कपूरिया कहती हैं कि, उस लड़के को यह जानकारी मिली थी कि प्रधानमंत्री जनऔषधि केन्द्र के जनऔषधि मित्र उनकी सहायता कर सकते हैं। अपर्णा कपूरिया ने उन्हें भरोसा दिलाया कि पूरी कोशिश होगी इस मुश्किल घड़ी में दवाईयां आपके माता-पिता तक पहुंचाई जाएंगी। वह भी बिना किसी डिलेवरी चार्ज के। ताकि आप पर कोई अतिरिक्त खर्च न आने पाए।
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कपूरिया ने इस कहानी को आगे बढ़ाते हुए मुझे बताया कि, राबर्ट्सगंज रोडवेज रोड स्थित जन औषधि केंद्र पर इंसुलीन को छोड़कर उनकी जरूरत की बाकी दवाएं उपलब्ध थीं। अब पहला सवाल था, उनकी इंसुलीन मंगाने का और दूसरा था उसे उनके गांव तक पहुंचाने का। इंसुलीन के लिए वाराणसी से एक गाड़ी आजमगढ़ भेजी गई जो वाराणसी होते हुए 300 किलोमीटर का सफर करते हुऐ 21 अप्रैल की सुबह रावर्ट्सगंज आई। बाकी दवाएं सोनभद्र स्थित अपने जन औषधि केंद्र से पैक की गईं। अब मुश्किल थी, यहां से बभनी तक दवा का बॉक्स पहुंचवाने की। सिर्फ दवाएं होतीं तो किसी तरह भेजा जा सकता था लेकिन आइस ट्रे में रखी इंसुलीन का समय से पहुंचना जरूरी था। लॉकडाउन के चलते लोकल कोरियर-ट्रांसपोर्टेशन का कोई रास्ता भी न था। संपर्कों का सिलसिला ही था, जिसके जरिए कोई रास्ता निकल सकता था। इंसुलीन का आइस ट्रे वहां फ्रीज में रख दिया गया। कोशिशें शुरू हुईं। समाजसेवी आनंद जायसवाल ने आवश्यक सेवा वाहनों का विकल्प सुझाया लेकिन सोनभद्र से बभनी तक का सीधा रूट न होने से हल नहीं निकला। साहित्य सेवी प्रभात सिंह चंदेल ने डब्ल्यूएचओ के स्थानीय प्रतिनिधियों और एंबुलेंस सेवा के लोगों से बात की लेकिन समय-शेड्यूल नहीं बन पाया। अब तक की मशक्कत में इतना तो तय हो गया था कि दवा सीधा बभनी तक तय समय में नहीं जा पाएगी। पहले मुधर्वा मोड़ और फिर वहां से बभनी भेजने का रास्ता निकाला जाए।

जनऔषधि मित्र सोनभद्र
जनऔषधि मित्र सोनभद्र

सोनभद्र मुख्यालय से मुधर्वा की दूरी 65 किलोमीटर और फिर वहां से बभनी ब्लॉक गंतव्य की दूरी 45 किलोमीटर। बात दैनिक जागरण के विनय सिंह तक पहुंची। जागरण के ही अब्दुल्लाह जी और प्रशांत शुक्ला जी से उनकी बात हुई। अगले दिन सुबह सात बजे अब्दुल्लाह जी और प्रशांत जी फोर व्हीलर से इंसुलीन और बाकी दवाएं लेकर मुधर्वा के लिए निकल गए। आगे की जिम्मेदारी संभाली भाई प्रभात जी ने। उन्होंने बभनी ब्लॉक में बतौर लेखाकार कार्यरत कन्हैया बाबू से बात की। बात जरूरतमंद बुजुर्ग दंपती तक दवा पहुंचाने की थी, सो कन्हैया बाबू भी सहर्ष तैयार हो गए। सुबह नौ बजे उन्हें रेणुकूट से बभनी ब्लाक के लिए निकलना था। मुर्धवा स्थित मंदिर पर अब्दुल्लाह जी और प्रशांत जी ने उन्हें दवा का बाक्स सौंपा। कन्हैया बाबू बाइक से दवा लेकर बभनी रवाना हो गए।
दोपहर साढ़े 12 बजे उन्होंने अपने हाथों से बुजुर्ग दंपती को दवा का बाक्स सौंपा और इसी के साथ सहयोग और सेवा के इस सफर ने विराम लिया। एक नई सफर के लिए। दिल्ली से फोन करने वाले बेटा का नाम अरुण मिश्रा है।

जनऔषधि मित्र, कोलकाता

कोलकाता: इसका गवाह मैं खुद हूं
इसी तरह कोलकाता का एक मामला है। मेरी सासू माँ को हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन की जरूरत थी। एक महीने से वो परेशान थे। कोई दुकानदार यह दवा देने के लिए तैयार नहीं था। एम्स की डॉ. उमा कुमार जिन्होंने यह दवा लिखा था, उनकी सिफारिश पर इपका कंपनी के एमआर से बातचीत हुई। उसके कहे दुकान ने भी दवा देने से मना कर दिया। उसके बाद अचानक मुझे अपने जनऔषधि मित्रो की याद आई। मुझे खुद आश्चर्य है कि मैं अपने मित्रो को कैसे भूल गया था। स्वस्थ भारत यात्रा के दौरान मैंने जिस जनऔषधि केन्द्र का उद्घाटन किया था। उसके मालिक अर्नब हलदर को फोन किया। उन्होंने इस दवा को मेरी माँ तक पहुंचाने का वादा किया। अगले दिन वे दवा लेकर रवीन्द्रापल्ली, कोलकाता से कल्याणी जा पहुंचे। तकरीबन 70-80 किमी की यह दूरी उन्होंने हंसते-हंसते तय की। साथ ही मुझे ही धन्यवाद कहा कि दादा आपने मुझे सेवा का मौका दिया।
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जनऔषधि मित्रो की इस सेवा भाव ने मेरी संकल्पना को मजबूती प्रदान की है। जिस समय मैं जनऔषधि मित्र की संकल्पना कर रहा था, उस समय मुझे खुद नहीं मालूम था कि यह संकल्पना देश के लिए इतना कारगर सिद्ध होगी।

लॉकडाउन में जनऔषधि की बिक्री बढ़ी

जनऔषधि मित्रो की सेवा भाव का ही नतीजा है कि अप्रैल 2020 में पूरे देश में 52 करोड़ रुपये की जनऔषधि की ब्रिक्री हुई। रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख भाई मांडविया का कहना है कि इससे देश को 300 करोड़ रुपये की बचत हुई। यहां पर यह भी ध्यान देने वाली बात है कि लॉकडाउन के कारण सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित है। दफ्तर में बहुत कम स्टॉफ काम कर रहे हैं। इन सबके बीच जनऔषधि परियोजना के अधिकारियों ने दिन-रात मेहनत कर के लोगों तक सस्ती दवा पहुंचाने का काम किया है।
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इस बावत जनऔषधि परियोजना के सीइओ सचिन कुमार सिंह ने स्वस्थ भारत मीडिया को बताया कि सामान्य दिनों की अपेक्षा इन दिनों जनऔषधि से जुड़े कर्मचारियों के पास काम का लोड ज्यादा है। लॉकडाउन के कारण दफ्तर में बहुत कम कर्मचारी आ पा रहे हैं। बावजूद इसके आपसी समन्वय एवं डेडिकेशन के कारण हमारे कर्मचारियों ने दवाइयों की जरूरतो को पूरा करने के लिए जी-जान से मेहनत की है। उन्होंने जनऔषधि मित्रो को भी साधुवाद भेजा है, जिन्होंने इस विकट स्थिति में अपने सेवाभाव से जनऔषधि कि परिकल्पना को सार्थक किया है। उन्होंने बताया कि जनऔषधि केन्द्र न सिर्फ लोगों को दवा दे रहे हैं बल्कि बहुत से जगहों पर जनऔषधि संचालक जरुरतमंदो को खाना भी खिला रहे हैं।
उन्होंने बताया कि जिनको भी हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन की जरूरत हो, वे जनऔषधि केन्द्रों से ले सकते हैं। तकरीबन सभी दुकानों पर यह दवा उपलब्ध है।
जनऔषधि मित्रो के सेवा भाव को मैं व्यक्तिगत स्तर पर प्रणाम करता हूं। उम्मीद करता हूं कि देश भी इनके सेवाभाव को हृदय से आदर प्रदान करेगा।

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