1962 का एक वह भी जमाना था जब चीन के हमले से इस देश को बचाने के लिए जवाहरलाल नेहरू अमेरिका को लगातार त्राहिमाम संदेश भेज रहे थे। एक बार तो उन्होंने एक ही दिन में कैनेडी को दो एस.ओ.एस.भेजे।
सुरेंद्र किशोर
कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में भारत ने अमेरिका को जरुरी दवा भिजवाने का निर्णय किया, तो, उससे खुशी में भावुक होकर राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि ‘‘भारत की इस मदद को हम याद रखेंगे।’’ पर, 1962 का एक वह भी जमाना था जब चीन के हमले से इस देश को बचाने के लिए जवाहरलाल नेहरू अमेरिका को लगातार त्राहिमाम संदेश भेज रहे थे। एक बार तो उन्होंने एक ही दिन में कैनेडी को दो एस.ओ.एस.भेजे।
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यानी, हमले की महामारी से खुद को बचाने के लिए तब हम उस महाशक्ति पर पूरी तरह निर्भर हो गए थे। क्योंकि हमारा ‘‘मित्र’’ सोवियत संघ चीन से भीतर -भीतर मिला हुआ था। अमेरिका ने इतना जरुर किया कि तब पाकिस्तान को भारत पर हमला करने से रोक दिया था। याद रहे कि चीनी हमले के वक्त ही मौका पाकर पाक ने भी हम पर हमले की योजना बना ली थी।
भारत सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति जे.एफ.कैनेडी के उस उपकार को कितना याद रखा ? शायद नेहरू कुछ अधिक दिनों तक जीवित रहते तो जरुर याद रखते। पर इंदिरा गांधी तो सोवियत संघ के प्रभाव में थीं। अब सत्तर-अस्सी के दशकों के एक अन्य प्रसंग को दुहरा दूं ! पहले आम अमेरिकी यह कहा करते थे कि भारत हाथी,संपेरों और जादू-टोने वाला देश है। अस्सी के दशक में माइकल टी.कॉफमैन पटना आए तो मैंने उनसे पूछा था कि अमेरिका के आम लोग भारत के बारे में क्या सोचते हैं ? वे न्यूयार्क टाइम्स के नई दिल्ली ब्यूरो प्रधान थे। पहले तो उन्होंने मेरे सवाल को टाला। फिर कहा-‘सोचने की फुर्सत कहां!’ पर, जिद करने पर उन्होंने कहा कि आप यदि मेरे देश में होते तो मैं पहला काम यह करता कि आपको नजदीक के किसी अस्पताल में भर्ती कर देता।–मैं तब और भी दुबला-पतला था।-
कॉफमैन के अनुसार ‘‘ भारत के एक तिहाई लोग कचहरियों में रहते हैं। एक तिहाई अस्पतालों में और बाकी एक तिहाई स्वच्छंद हैं।’’
खैर, आज तो हम दुनिया को अपनी कुछ खास चीजें दिखा देने की स्थिति में भी आ गए हैं। वह यह कि इतनी बड़ी आबादी के बावजूद कोरोना के कुप्रभाव को विकसित देशों की अपेक्षा हमने खुद पर काफी कम पड़ने दिया। यह हमारे भरसक प्राकृतिक जीवन और अधिकतर लोगों के शाकाहारी होने के कारण भी है। साथ ही महामारी से निपटने के लिए समय पर सरकारी पहल हुई।
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प्राकृतिक जीवन से हम में रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत अधिक है। कोरोना की आंधी थम जाने के बाद कुछ विकसित देश के लोग संभवतः शायद हमारी जीवन शैली का अध्ययन करके उससे भी कुछ सीखेंगे ! उन्होंने ‘नमस्ते’ तो अपना ही लिया। हाल में गमछे की भी चर्चा रही। योग तो पहले ही अपना चुके हैं। ‘‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।’’
हां, यदि आजादी के तत्काल बाद के वर्षों में –बकौल राजीव गांधी –सौ सरकारी पैसों में से 85 पैसे लूट नहीं लिए गए होते तो हमारी बुनियाद और भी मजबूत पड़ती।
(सुरेन्द्र किशोर जी के फेसबुक वाल से साभार)