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शारीरिक शिक्षकों को सम्मान और अधिकार दिलाने की जरूरत: मनोज तिवारी

नई दिल्ली। आज भले ही मैं सांसद हूं लेकिन कभी मैं भी एक शारीरिक शिक्षक था और जानता हूँ कि शारीरिक शिक्षा और शिक्षक का क्या महत्व है। शारीरिक शिक्षक किसी भी स्कूल की रीढ़ होता है और देश के चौंपियन खिलाड़ियों की कामयाबी में बड़ी भूमिका का निर्वाह करता है।

सम्मेलन का आयोजन

ये उदगार उत्तर-पूर्व दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी के हैं जिन्होंने छठे राष्ट्रीय फिजिकल एजुकेशन एवं स्पोर्ट्स साइंस सम्मेलन का उद्घाटन किया। फिजिकल एजुकेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पेफी) भारत सरकार के खेल एवं युवा मामले मंत्रालय के सहयोग से नई दिल्ली में दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन हुआ। सम्मेलन के पहले दिन का आकर्षण कोविड महामारी के बाद खेलों एवं शारीरिक शिक्षा को नए सिरे से जागरण रहा। सांसद मनोज तिवारी ने कहा, ‘‘आज भले ही मैं सांसद हूं लेकिन कभी मैं भी एक शारीरिक शिक्षक था और जानता हूँ कि शारीरिक शिक्षा और शिक्षक का क्या महत्व है। शारीरिक शिक्षक किसी भी स्कूल की रीढ़ होता है और देश के चैंपियन खिलाड़ियों की कामयाबी में बड़ी भूमिका का निर्वाह करता है।‘‘ एक अच्छे क्रिकेट खिलाड़ी और सिने कलाकार रहे श्री तिवारी ने पेफी के राष्ट्रीय सचिव डॉ. पीयूष जैन के प्रयासों को सराहा और माना कि इस दिशा में अभी बहुत सा काम करना बाकी है। सबसे पहले शारीरिक शिक्षकों को उनका सम्मान और अधिकार दिलाने की जरूरत है।

धरातल पर ठोस काम नहीं

भारतीय ओलम्पिक संघ के कोषाध्यक्ष आनंदेश्वर पांडे का मानना है कि किसी भी स्कूल में प्रिंसिपल के बाद यदि किसी की सबसे ज्यादा पूछ होनी चाहिए, तो वो निसंदेह फिजिकल टीचर है। लेकिन उन्होने अफसोस व्यक्त किया कि देश में शारीरिक शिक्षा को महत्व नहीं दिया जा रहा। कागजों में तो बहुत कुछ हो रहा है लेकिन धरातल पर खेल नीति भी नहीं बन पाई है। नतीजन अच्छे खिलाड़ी पैदा नहीं हो पा रहे। उनकी राय में जब तक हम शिक्षकों को महत्व नहीं देंगे भारत खेल महाशक्ति नहीं बन सकता, क्योंकि खिलाड़ी की असली ताकत यही शिक्षक हैं। संयोग से पांडे भी फिजिकल टीचर रहे हैं।

ओलंम्पिक में सफलता शारीरिक शिक्षकों की बदौलत

पेफी के कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर अरुण उप्पल ने टोक्यो ओलंम्पिक में भारत द्वारा जीते गए सात पदकों का बड़ा श्रेय शारीरिक शिक्षकों को दिया और कहा कि पदक जीतने वाले खिलाड़ियों की बुनियाद स्कूल स्तर पर ही मजबूत बन गई थी। संभवतया उन्हें समर्पित शिक्षको ने मदद की होगी। बाद में हमारे और विदेशी कोचों ने उन्हें आगे बढ़ाया।

एक सिक्के के दो पहलू

हॉकी द्रोणाचार्य अजय बंसल को यह बात खलती है कि हम सालों साल स्पोर्ट्स और फिजिकल एजुकेशन को अलग-अलग समझते हैं, जबकि दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। लेकिन देश में स्पोर्ट्स कल्चर की जरूरत है, जो स्कूल के खेल टीचर को सम्मान देने से ही बन सकता है। आईजीआई फिजिकल कालेज के प्रिंसिपल डॉक्टर संदीप तिवारी इस बात से नाराज हैं कि शारीरिक शिक्षा को किसी भी स्तर पर बढ़ावा नहीं दिया जा रहा। सब कुछ सिर्फ कागजों में चल रहा है जो झूठ साबित होता है। दिल्ली सरकार के उप निदेशक संजय कुमार, गुजरात के प्रोफेसर वैभवभट्ट, त्रिवेंद्रम एलएनसीपीई के प्रो. (डॉ.) जी. किशोर भी मानते हैं कि शारीरिक शिक्षा और खेल को एक ही चश्मे से देखने की जरूरत है। खेल एवं शारीरिक शिक्षा के दिग्गजों की राय थी कि फिजिकल एजुकेशन को कंपलसरी सब्जेक्ट बनाया जाना चाहिए। प्रमुख वक्ताओं में लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) जेएस चीमा, डॉ. जॉर्ज अब्राहिम, प्रो. (डॉ.) संदीप तिवारी, डॉ. पूनम बेनीवाल ने भी उक्त विषय पर अपने-अपने विचार रखे।

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