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Solar Panel के बेहतर रखरखाव के लिए सेल्फ क्लीनिंक कोटिंग प्रौद्योगिकी

नयी दिल्ली। बिजली की बढ़ती माँग और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए सौर ऊर्जा का उपयोग महत्वपूर्ण हो जाता है। लेकिन, सौर पैनल का रखरखाव न हो तो ऊर्जा आपूर्ति बाधित हो सकती है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर के शोधकर्ताओं ने ऐसी सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग प्रौद्योगिकी विकसित की है, जो सौर पैनल्स को साफ रखने में उपयोगी हो सकती है।

पेटेंट के लिए हुआ आवेदन

नई विकसित कोटिंग पारदर्शी, टिकाऊ और सुपरहाइड्रोफोबिक है। यह कोटिंग सौर पैनलों पर धूल का जमना कम करती है और बहुत कम पानी के साथ स्वयं सफाई करने में सक्षम है। सौर पैनल निर्माण संयंत्रों के साथ इस कोटिंग को आसानी से एकीकृत किया जा सकता है। आईआईटी जोधपुर के वक्तव्य के अनुसार इस प्रौद्योगिकी को पेटेंट अनुमोदन के लिए भेजा गया है। धातुकर्म और सामग्री इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी जोधपुर से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ. रवि के.आर. के नेतृत्व में यह अध्ययन उनकी टीम में शामिल परियोजना सहायक मीनानामूर्ति जी. और प्रधानमंत्री रिसर्च फेलोशिप योजना (च्डत्थ्) के शोधार्थी मोहित सिंह द्वारा किया गया है।

धूल से प्रभावित होती क्षमता

सौर पैनल बनाने वाले उद्योगों का दावा होता है कि आमतौर पर ये पैनल 20 से 25 वर्षों तक अपनी 80 से 90 प्रतिशत दक्षता पर काम करते हैं। हालांकि, यह सर्वविदित है कि सौर पैनलों पर धूल और रेत जमा होने से उनका प्रदर्शन कम हो जाता है। सौर ऊर्जा संयंत्र के स्थान और जलवायु विविधता के आधार पर यह प्रभाव अलग-अलग हो सकता है। लेकिन, यह तो तय है कि लगातार धूल जमा होती रहे तो कुछ महीनों के भीतर सौर पैनल 10 से 40 प्रतिशत तक अपनी दक्षता खो सकते हैं।

वर्तमान विधियां महंगी

शोधकर्ताओं का कहना है कि सौर पैनल को साफ करने के लिए वर्तमान में उपयोग की जाने वाली विधियाँ महंगी और अकुशल हैं। इन विधियों के निरंतर उपयोग में विभिन्न व्यावहारिक समस्याएं आती हैं और सफाई के दौरान सौर पैनल को क्षति पहुँचने का खतरा रहता है। इसीलिए शोधकर्ताओं ने सुपर हाइड्रोफोबिक सामग्री का उपयोग करके यह सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग विकसित की है। इसमें उत्कृष्ट सेल्फ-क्लीनिंग गुण हैं और इससे पारगम्यता या बिजली रूपांतरण से दक्षता में हानि नहीं होती है। प्रयोगशाला परीक्षणों के दौरान इस कोटिंग में पर्याप्त यांत्रिक और पर्यावरणीय स्थायित्व देखा गया है। आसान छिड़काव और वाइप तकनीकों से लैस यह कोटिंग प्रौद्योगिकी मौजूदा फोटोवोल्टिक बिजली उत्पादन में प्रभावी पायी गई है।

इंडिया साइंस वायर से साभार

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