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Swasthya Sansad 24-खानपान की पुरानी परंपरा हमने भुला दी : विद्या बिन्दु सिंह

जैसा कहा, वैसा लिखा….जी हां, अयोध्या में संपन्न स्वास्थ्य संसद-24 में हिन्दी और अवधी की साहित्यकार पद्मश्री विद्या बिन्दु सिंह ने ऐसा ही कहा था। लीजिए उनके वक्तव्य का संपादित रूप।

हमारी भारतीय सभ्यता में हमेशा जन औषधि रही है जिसे आयुर्वेद कहा जाता था। आज विश्व ने स्वीकार कर लिया है कि भारत की आयुर्वेद परंपरा वैज्ञानिक और जीवन परक है। इसी ज्ञान ने लोगों को कोविड से निकाला। गर्भ से लेकर बच्चे के दो वर्ष के होने तक के पालन पोषण में क्या नियम होने चाहिए, हमारी परंपरा में यह सब हमेशा रहा कि गर्भवती का भोजन क्या हो, कौन संस्कार हों जिससे बच्चा मन अनुरूप गुणवान, बलवान हो, ऐसी रीति बनाई गई थी। यह रिवाज कहावतों, कहानियों और लोरी में गाकर हम तक पहुंचाए गए लेकिन हम उन्हें भी भूल गए हैं।
बहुत सी कथा और त्योहार की कहानी में बताया गया है कि क्या खाना है, क्या नहीं खाना है, किस मौसम में क्या खाएं क्या छोड़ें, सब कुछ बताया गया है। उसको आत्मसात करना और आगे की पीढ़ी तक ले जाने के लिए याद रखना और उसका पालन करना भी जरूरी है। भादों में तीली का चावल खाएं, सावन में दही ना खाएं…हमारे यहां कई नियम बनाए गये जिसमें मौसम के अनुसार खानपान की विस्तार से चर्चा की गई है। मुश्किल यह है आज की पीढ़ी इससे अनजान है। जब चेचक का प्रकोप फैलता था, तब शीतला माता का क्रोध कहते थे। तब साफ सफाई इतनी कि एक दूसरे के घर आना जाना बंद हो जाता था। चिट्ठी भी नहीं लिखी जाती थी कि कहीं वायरस न फैल जाए। पूरा गाँव हल्दी मसाला खाना बंद कर देता था। नीम के पत्तों का धुंआ दिया जाता था ताकि अदृश्य वायरस नष्ट हो जाए। इन सब को कुरीति, पिछड़ापन बताकर हमने छोड़ दिया।
चौमासे का हमारे यहां वर्णन है जिसमें लोग यात्रा नहीं करते। इसी माह में जगन्नाथ यात्रा होती है। भगवान बाहर निकलते और फिर बीमार होते हैं। वैद्य काढ़ा पिलाकर, औषधि खिलाकर उन्हें ठीक करते हैं। सावन में शिव जी जब कार्यभार लेकर धरती के कार्य का वहन करते हैं तब हम उनको जल, बेलपत्र चढ़ाते हैं, उपवास करते हैं। ये उपवास क्यों किया जाता है। आज दुनिया फास्टिंग कर रही है। हम इसे हजार साल से सेहत और शरीर के लिए आवश्यक मानते रहे हैं। उपवास से शरीर ऊर्जावान होता है। अंदर की कोशिका का पुनर्निर्माण होता है। शरीर के अंग पुनर्जीवित हो जाते हैं।

धनतेरस की एक कहानी है। विष्णु जी लक्ष्मी जी के साथ धरती यात्रा पर थे। एक सरसों के खेत में फूल देखकर देवी बोलीं-यहीं रुकिए। वो खेत से दो फूल तोड़कर बाल में लगा लेती हैं नारायण कहते हैं यह तो चोरी हुई। देवी कहती हैं-कैसे? नारायण बोले जिसका खेत है, उससे आपने पूछे बिना यह पुष्प लिया। आपको इसका कर्ज निभाना होगा।
वे देवी को लेकर खेत के मालिक के घर जाते हैं। बोलते हैं-मैं एक साल के लिए तीर्थ पर जा रहा हूं। आप मेरी पत्नी को अपने घर सेवा में रखें, वापसी में ले जाऊंगा। गांव वाले मान जाते हैं। एक वर्ष में गांव में सभी स्वस्थ और सगुणी हो जाते हैं। स्नान, ध्यान, साफ-सफाई वाला गांव समृद्ध हो जाता है। विष्णु जी देवी को लेने आते हैं। गांव वाले कहते हैं कि आप इनको मत ले जाओ। इनके आने से हमारा जीवन सफल हो गया। इस तरह की कहानी का प्रसार होना चाहिए ताकि लोगों को पता चले कि स्वास्थ्य का स्वच्छता से, ध्यान से क्या संबंध है। मुझे लगता है कि ऐसे कार्यक्रम न केवल कॉलेज में बल्कि स्कूल में भी करायें जाएं। बच्चों को बताया जाए कि कैसे स्वस्थ रहते हैं ताकि वो अपने मां-बाप को बताएं। सभी स्वस्थ जीवन, आहार और औषधि अपनाएं।

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