सुशील देव
डिप्रेशन में प्रिंसिपल को जिम्मेदार ठहराते हुए फरीदाबाद के एक स्कूली छात्र के अपने अपार्टमेंट की 17वीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर लेना कई बड़े सवाल खड़ा करता है। छात्र ने अपनी मां को संबोधित करते हुए सुसाइड नोट में लिखा कि ‘स्कूल ने मुझे मार डाला है।‘ आश्चर्य तो यह है कि उसकी मां भी उसी स्कूल में शिक्षिका हैं। छात्र के इस नोट को देखते हुए पुलिस ने प्रिंसिपल और स्कूल प्रबंधन के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर लिया गया है।
मामला डीपीएस स्कूल का है। लड़का दसवीं का छात्र था। उसके सहपाठी उसके हावभाव को लेकर हमेशा उसका मजाक उड़ाते थे। उसकी यौनिकता को लेकर सवाल खड़े करते थे और उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता था। जब वह इसकी शिकायत स्कूल के प्रशासन को करता तो उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता, बल्कि शिक्षक या स्कूल प्रशासन भी कमोबेश उससे वैसा ही व्यवहार करते थे। पिछले साल उनके दो स्कूली साथियों ने उसकी सेक्सुअलिटी को लेकर कमेंट किया था, जिसके कारण वह डिप्रेशन में आ गया था।
उसने अपने प्रति हो रहे व्यवहार या अत्याचार की खबर अपनी मां को दी थी। मां ने स्कूल के प्रिंसिपल से संपर्क किया, मगर स्कूल प्रशासन ने इसे बहुत हल्के में लिया और कोई कार्रवाई नहीं की। मामला बढ़ता गया और धीरे-धीरे वह लड़का डिप्रेशन में चला गया। आरोप है कि कुछ छात्रों ने उसका यौन उत्पीड़न भी किया था, जिसकी जांच चल रही है। उसकी मां ने स्कूल के प्रिंसिपल और स्कूल प्रशासन की जवाबदेही पर उंगली उठाई है। कहा यह भी गया कि वह डिस्लेक्सिया नामक बीमारी से पीड़ित था। डिस्लेक्सिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चे को पढ़ना-लिखना और शब्दों का बोल पाना मुश्किल होता है। ऐसे बच्चे अक्सर बोलने वाले और लिखित शब्दों को याद नहीं रख पाते हैं। इसके अलावा वह कई चीजों को समझ भी नहीं पाते। आमिर खान की फिल्म ‘तारे जमीन पर‘ तो याद ही होगा जिसमें दर्शील सफारी ‘डिस्लेक्सिया‘ नामक बीमारी से पीड़ित था। यही बीमारी महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन, टेलीफोन के जनक एलेक्जेंडर ग्राहम बेल और अभिनेता टॉम क्रूज और बोमन ईरानी जैसी कुछ हस्तियों को भी थी। उसका भी इलाज चल रहा था।
उस दिन स्कूल में विज्ञान का पेपर था। पेपर में वह संख्यात्मक सवालों को हल करने में असमर्थ था। उसने प्रिंसिपल से मदद मांगी तो बदले में उसे फटकार और जिल्लत ही मिली। असल में उसे डर था कि वह अगली कक्षा में प्रमोट नहीं किया जाएगा। इससे काफी तनाव में और चिंतित था। शायद इसीलिए उसने सुसाइड नोट में लिखा कि आप शक्तिशाली हैं। मां परवाह मत करो कि मेरी कामुकता के बारे में लोग क्या सोचते हैं? कृपया, रिश्तेदार और दादा जी को संभालो। स्कूल ने मुझे मार डाला है, इसमें उच्च अधिकारी भी जिम्मेदार हैं।
कहते हैं कि इंसान ईश्वर की एक अनुपम कृति है और वह जिस अवस्था में धरती पर आता है। उनकी ही असीम कृपा है। उनके अंदर अगर किसी प्रकार की सारी कमियां हैं तो भी उनमें कोई न कोई अद्भुत प्रतिभा जरूर छिपी होती है, जो आपको चौंका सकती है। उनकी शारीरिक बनावट या कमियों को देखकर हम अगर कोई भेदभाव करते हैं तो यह कतई उचित नहीं है। खासकर तब, जब हम एक शिक्षक की भूमिका में होते हैं।
शिक्षक बच्चों के चरित्र और भविष्य को गढ़ता है उसका निर्माण करता है। उन पर देश और समाज बनाने की महती जिम्मेदारी होती है। शायद इसलिए गुरु के बारे में कहा जाता है कि गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः। इसलिए उनकी दृष्टि में बराबरी और असमानता का भाव होना, उनके कर्म के अनुकूल नहीं होता। शिक्षक चाहते तो इस मामले में कोई समझदारी भरा निर्णय ले सकते थे। उस बच्चे के प्रति बिगड़ते माहौल को रोक सकते थे मगर ऐसा संभव नहीं हुआ। यह बहुत ही दुखद है।
गोरा-काला, लंबा-नाटा, मोटा-पतला, सुंदर-असुंदर या विकलांगता यह सब कुदरत की देन है। इसका मजाक उड़ाना मानवता के खिलाफ है। यह किसी अपराध से कम नहीं। एक कक्षा में कई प्रकार के बच्चे होते हैं और हर बच्चा हर प्रकार से पूर्ण नहीं होता। शिक्षकों को यह बात पहले ध्यान रखने की जरूरत है। दूसरों को सिखाने वाले को अगर इंसानियत का ही पता न हो, तो भला वह भविष्य को क्या सिखाएगा? वह बच्चों से तो खूब सम्मान या अच्छी समझ की उम्मीद रखते हैं लेकिन खुद अपना ही कर्तव्य नहीं निभा पाते। सिखाने वालों को आज खुद सीखने की जरूरत है। उन्हें खुद में बदलाव लाने की जरूरत है। केंद्र या राज्य सरकारों को भी इस पर गंभीरता से विचार कर कोई विशेष गाइडलाइंस तैयार करना चाहिए जिससे भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति न हो, क्योंकि वह बच्चा भी खुद के ऊपर कटाक्ष या भेदभाव को बर्दाश्त नहीं कर सका और आत्महत्या कर ली। ऐसे बच्चों को बचाओ, प्लीज!