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भाषा सर्वेक्षण पर कालजयी किताब है ‘भारत का भाषा सर्वेक्षण एवं भोजपुरी’

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। भाषा सर्वेक्षण और भोजपुरी के संदर्भ में पृथ्वीराज सिंह द्वारा रचित पुस्तक ‘भारत का भाषा सर्वेक्षण एवं भोजपुरी’ एक कालजयी किताब है, जो गहन शोध पर आधारित है। इस किताब का व्यापक महत्व है। उक्त बातें इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष सह वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने इसके अनावरण सह परिचर्चा कार्यक्रम में कहीं। इसका आयोजन पिछले दिनों नयी दिल्ली स्थित इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के उमंग सभागार में संपन्न हुआ। इसके पूर्व अजीत दूबे, मोहन सिंह, संतोष पटेल, ओंकारेश्वर पांडेय, पृथ्वीराज सिंह और रमेशचंद्र गौड़ ने संयुक्त रूप से इस पुस्तक का अनावरण किया। कार्यक्रम के शुरूआत में सभी आगत अतिथियों को अंगवस्त्र और फूलों के गमले से स्वागत किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता राम बहादुर राय ने की। स्वागत एवं अतिथियों का परिचय प्रो. रमेशचंद्र गौड़ ने किया। वहीं कार्यक्रम के समापन पर धन्यवाद ज्ञापन साफिया अव कबीर ने किया।

भाषा के प्रति ऐतिहासिक काम

पुस्तक का परिचय देते हुए प्रो पृथ्वीराज सिंह ने कहा कि यह पुस्तक ग्रियर्सन के भाषा सर्वेक्षण खंड 5 भाग 2 को आधार बनाकर तैयार किया गया है जिसमें बिहारी भाषाओं के संबंध में मौलिक सूचनाएं संग्रहित हैं। ग्रियर्सन के अध्ययन के अनुसार बिहारी की तीन बोलियां हैं-भोजपुरी, मैथिली और मगही। इस पुस्तक में भोजपुरी संबंधी सभी अद्यतन सूचनाऐं संग्रहित हैं जिसमें इसका इतिहास, भूगोल, जनसंख्या, इसके आंचलिक प्रकार आदि शामिल हैं। भाषा सर्वेक्षण केवल भाषाओं का ही नहीं बल्कि लिपियों का भी किया गया है। पुस्तक के संकलन और अनुवाद में तटस्थता के साथ मानकों का पूरा ख्याल रखा गया है। भोजपुरी जनजागरण अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष पटेल ने कहा कि भाषा का सर्वेक्षण मामूली बात नहीं है। आज के दौर में जब भोजपुरी को भाषा के रूप में स्वीकार करने के बजाय उसका विरोध हो रहा है, उस स्थिति में भाषा सर्वेक्षण के रूप में एक मानक पुस्तक को लाकर पृथ्वीराज सिंह ने ऐतिहासिक काम किया है। भोजपुरी के साथ केंद्रीय सत्ता ने हमेशा छलने का काम किया है। सत्ता समर्थन से वंचित भोजपुरी अपने बूते आगे बढ रही है।

समृद्ध और सशक्त भाषा भोजपुरी

पत्रकार ओंकारेश्वर पांडेय ने कहा कि आठवीं शताब्दी की भाषा भोजपुरी बहुत समृद्ध और सशक्त भाषा है। भोजपुरी की पहचान और इसके महत्व को लेकर यह किताब बहुत सार्थक साबित होगी। भोजपुरी के दायरे को विस्तृत रूप में देखने की जरूरत है। गांधीवादी अध्येता मोहन सिंह ने कहा कि ग्रियर्सन के सर्वेक्षण का अनुवाद 120 सालों बाद होना अपने आप में एक महत्वपूर्ण कार्य है। यह किताब भोजपुरी के अस्तित्व और पहचान को लेकर आज के सवालों से सीधे उलझती है। लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इंडिया में बोलियों का सर्वे हुआ है। यह सर्वेक्षण केवल भाषा सर्वेक्षण नहीं बल्कि सभी लोककथाओं का भी है। उन्होंने कहा कि भाषा संस्कृति और धर्म का मामला बेहद संवेदनशील होता है। किसी को इस पर कुछ बोलने से पहले सोचना चाहिए। यदि आप अतीत पर पिस्टल दागेंगे तो भविष्य आप पर तोप चलाएगी।

भविष्य के लिए जरूरी किताब

विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अध्यक्ष अजीत दूबे ने कहा कि भाषा सर्वेक्षण पर यह किताब भोजपुरी के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इससे आने वाली पीढ़ी अपनी भाषा के बारे में वैज्ञानिक तथ्यों को जान सकेगी। भोजपुरी के मान्यता को लेकर सरकार संवेदनशील नहीं है, भोजपुरिया लोग भी अपनी भाषा के प्रति सजग नहीं हैं।

दिग्गजों की रही उपथिति

कार्यक्रम में दिल्ली के अलावा बिहार और यूपी के कई इलाकों से काफी लोग पहुंचे थे। कार्यक्रम में शामिल होने वालों में प्रो. नीरज सिंह, डॉ. भगवान सिंह, प्रो बृजेश कुमार सिंह, अजीत सिंह, डॉ. राणा अवधूत कुमार, प्रो अरविंद कुमार, स्यंदन सुमन, आशुतोष कुमार सिंह, भंवर निगम, महेंद्र सिंह, निराला बिदेसिया, इंद्रभूषण सिंह, देवेंद्र तिवारी, अनिल दूबे, डॉ. राजेश कुमार मांझी, राजकुमार अनुरागी, अरविंद ओझा, कमल किशोर सिंह, साधना राणा, उद्भव शांडिल्य सहित दिल्ली विश्वविद्यालय के कई शोधार्थी शामिल रहे।

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