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जज्बा हो तो ऐसा…जीते जी लिया नेत्रदान का संकल्प

अजय वर्मा

पटना। आमतौर पर परिजनों की जान को बचाने के लिए निकट संबंधी अंगदान करते हैं। कई बार मृत्यु के बाद उनके परिजन अंगदान की सहमति देते हैं। लेकिन ऐसे बिरले ही होते हैं जो जीते-जी अंगदान की घोषणा कर दें। ऐसे बिरले लोगों में पटना के सतीश कुमार गुप्ता भी हैं जिन्होंने मृत्योपरांत नेत्रदान का संकल्प लिया और दधिची देहदान समिति को इस बारे में सूचित भी किया।

मृत्यु जीवन का अंत नहीं

सतीश जी न केवल व्यापार बल्कि राजनीति में भी सक्रिय हैं। राजधानी में उनका अपना कारोबार है। उनका मानना है कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं है। यदि इंसान चाहे तो वह मृत्यु के बाद भी अपना अंगदान करके मानवता के सर्वाेच्च शिखर को छू सकता है। अपने इन्ही विचारों के अनुकूल इन्होंने दधीचि अंगदान समिति को नेत्रदान के लिए आवेदन दिया था, जिसे समिति ने स्वीकार करते हुए सम्मान पत्र दिया। उन्होंने बताया कि मैंने नेत्रदान का यह संकल्प इसलिए लिया है कि मेरी उम्र भले ही समाप्त हो जाए मगर मेरी आँखे किसी दृष्टिहीन इंसान की अंधेरी दुनिया को रौशन कर सकने में काम आ सके।

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