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पहली मलेरिया वैक्सीन की 16 लाख डोज खरीदेगा UNICEF

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने दवा कंपनी जीएसके से मलेरिया के टीके की 18 लाख डोज 17 करोड़ डॉलर में खरीदने की घोषणा की है। यह दुनिया की पहली मलेरियारोधी वैक्सीन है और नाम है RTS.S/AS01 ।

35 सालों की रिसर्च का नतीजा

यूनिसेफ के आपूर्ति प्रभाग के निदेशक एटेलवा कादिल्ली ने कहा, हमें उम्मीद है कि यह सिर्फ शुरुआत है। यह बच्चों के जीवन को बचाने और व्यापक मलेरिया रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रमों के हिस्से के रूप में मलेरिया के बोझ को कम करने के हमारे सामूहिक प्रयासों में एक बड़ा कदम है। RTS.S मलेरिया वैक्सीन 35 वर्षों की कड़ी मेहनत, अनुसंधान और विकास है और यह परजीवी बीमारी से सुरक्षा के लिए आपूर्ति की जाने वाली पहली वैक्सीन है। वैक्सीन प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के खिलाफ प्रभावी है जो दुनिया भर में सबसे घातक मलेरिया परजीवी है और अफ्रीका में सबसे अधिक प्रचलित है।

अफ्रीका के बच्चे सर्वाधिक पीड़ित

WHO के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस ने वैक्सीन मॉस्किरिक्स के रोलआउट की घोषणा की। यह याद करते हुए कि उन्होंने एक मलेरिया शिक्षक के रूप में शुरुआत की थी, WHO प्रमुख ने कहा कि एक समय था कि वह उस दिन के लिए तरस रहे थे जब हमारे पास इस प्राचीन और भयानक बीमारी के लिए एक टीका होगा। RTS.S/AS01 जिसे आमतौर पर Mosquirix के नाम से जाना जाता है, तीन दशकों से बन रहा था और अब इसे उन क्षेत्रों में छोटे बच्चों के लिए शुरू किया जाएगा जहां यह बीमारी प्रचलित है।

भारत में भी तीन फीसद मलेरिया रोगी

मालूम हो कि मलेरिया का सबसे अधिक बोझ अफ्रीका पर है। विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका में हर साल पांच साल से कम उम्र के 2 लाख 60 हजार से अधिक बच्चे मलेरिया से मर जाते हैं। भारत भी पीछे नहीं है और मलेरिया के 3 फीसद मामलों के लिए जिम्मेदार है। अकेले 2019 में दुनिया ने करीब 22.9 करोड़ मलेरिया संक्रमण और 4 लाख 9 हजार मौतें देखीं। इसलिए Mosquirix बीमारी के बोझ को कम करने में एक भूमिका निभाएगा।

चार डोज वाली वैक्सीन

इसे फार्मास्युटिकल फर्म ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन ने वाल्टर रीड आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च, मैरीलैंड, यूएसए के सहयोग से विकसित किया था। यह चार-खुराक वाला टीका है, जिसकी पहली खुराक तब दी जाती है जब बच्चा पांच से छह महीने का होता है। पहली तीन खुराक मासिक आधार पर दी जाती है और आखिरी खुराक लगभग 18 महीने की उम्र में दी जाती है।

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