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WHO की घोषणा : भारत से ट्रैकोमा का हुआ खात्मा

WHO की घोषणा : भारत से ट्रैकोमा का हुआ खात्मा

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। WHO ने भारत से ट्रैकोमा के उन्मूलन की घोषणा कर दी है। इसके साथ ही भारत दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में इस महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य उपलब्धि हासिल करने वाला तीसरा देश बन गया है। ट्रैकोमा को खत्म करना, देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सुधार के साथ-साथ आबादी में बेहतर स्वच्छता और सफाई से जुड़ी प्रथाओं का प्रतीक है। इसके अलावा पहले ट्रैकोमा देश में अंधेपन और बेचैनी के प्रमुख कारणों में से एक रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।

ट्रैकोमा पर कई योजनाएं चलीं

उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ट्रेकोमा को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय अंधता एवं दृश्य हानि नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीसीबीवीआई) के तहत कई कदम उठाए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग टीम के सुझाव के अनुसार, डब्ल्यूएचओ सेफ रणनीति को पूरे देश में लागू किया गया जिसमें डब्ल्यूएचओ सेफ का अर्थ सर्जरी, एंटीबायोटिक्स, चेहरे की स्वच्छता और पर्यावरण की सफाई को अपनाना है। 2019 के बाद से NPCBVI ने विशिष्ट डब्ल्यूएचओ साझा प्रारूप के ज़रिए देश के सभी जिलों से केस रिपोर्ट एकत्र करके, ट्रेकोमा मामलों के लिए निरंतर निगरानी व्यवस्था विकसित की है। एनपीसीबीवीआई के तहत वर्ष 2021-24 के दौरान देश के 200 स्थानिक जिलों में राष्ट्रीय ट्रैकोमैटस ट्राइकियासिस (केवल टीटी) सर्वेक्षण किया गया जो डब्ल्यूएचओ द्वारा अनिवार्य था।

ट्रैकोमा : NQAS हुआ लागू

उन्होंने बताया कि सरकार ने राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक (NQAS) लागू किया है जो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा स्थापित एक व्यापक ढांचा है। इसका उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और उसे आगे बढ़ाना है। शुरूआत में मानकों को जिला अस्पतालों के लिए लागू किया गया था, जिसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के ज़रिए प्रदान की जाने वाली सेवाएँ सुरक्षित, रोगी-केंद्रित और सुनिश्चित गुणवत्ता वाली हों। इसके बाद, इन मानकों को उप-जिला अस्पतालों (एसडीएच), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी), आयुष्मान आरोग्य मंदिर-शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (एएएम -यूपीएचसी), आयुष्मान आरोग्य मंदिर-प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (एएएम -पीएचसी) और आयुष्मान आरोग्य मंदिर उप-स्वास्थ्य केंद्रों (एएएम -एसएचसी) तक बढ़ा दिया गया। मूल्यांकन में अनुपालन को आसान बनाने के लिए डिजिटल तकनीक का लाभ उठाते हुए 28 जून 2024 को आयुष्मान आरोग्य मंदिर-उप स्वास्थ्य केंद्रों (एएएम-एसएचसी) के राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक (एनक्यूएएस) प्रमाणन के लिए वर्चुअल मूल्यांकन शुरू किया गया। परीक्षण प्रक्रियाओं और परिणामों की सटीकता और शुद्धता बढ़ाने के लिए 28 जून 2024 को एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं (आईपीएचएल) के लिए एनक्यूएएस शुरू किया गया। 31 दिसंबर 2024 तक, देश में कुल 22,786 स्वास्थ्य सुविधाओं को एनक्यूएएस प्रमाणन प्राप्त हुआ है।

ट्रैकोमा : मानकों से मिला बेहतर नतीजा

उत्तर के बनुसार भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) आवश्यक मानक हैं, जो जिला अस्पतालों, उप-जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उप स्वास्थ्य केंद्रों सहित सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के ज़रिए न्यूनतम आवश्यक सेवाओं की डिलीवरी सुनिश्चित करते हैं। वर्ष 2007 में विकसित और 2012 और 2022 में संशोधित ये मानक हाल की सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों के अनुरूप हैं जो हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिए मौलिक हैं। आईपीएचएस दिशानिर्देश राज्यों को महत्वपूर्ण मानकों पर आधारित योजना बनाने और उन्हें पूरा करने में मदद करते हैं जिससे बेहतर स्वास्थ्य परिणाम मिलते हैं और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में जनता का विश्वास बढ़ता है।

मलेरिया के लिए भी बनी रणनीति

इसके अलावा भारत में मलेरिया में कमी लाने और एचबीएचआई समूह से बाहर निकलने के लिए प्रेरित करने वाली रणनीतियाँ हैं:-

  • सक्रिय, निष्क्रिय और लगातार निगरानी के साथ प्रारंभिक मामलों का पता लगाना, उसके बाद पूर्ण और प्रभावी उपचार, रेफरल सेवाओं को मजबूत करना, महामारी की तैयारियों जैसे उपायों के साथ त्वरित प्रतिक्रिया सहित रोग प्रबंधन।
  • चयनित उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में इनडोर अवशिष्ट छिड़काव (आईआरएस), उच्च मलेरिया स्थानिक क्षेत्रों में लंबे समय तक चलने वाले कीटनाशक जाल (एलएलआईएन), लार्वा खाने वाली मछलियों का उपयोग, शहरी क्षेत्रों में जैव-लार्वानाशकों और लघु पर्यावरण इंजीनियरिंग सहित लार्वा विरोधी उपाय और प्रजनन की रोकथाम के लिए स्रोत में कमी सहित एकीकृत वेक्टर प्रबंधन।
  • क्षमता निर्माण के माध्यम से व्यवहार परिवर्तन संचार (बीसीसी), कौशल विकास के ज़रिए अंतर-क्षेत्रीय अभिसरण और मानव संसाधन विकास।

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