यदि WHO और सरकार होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति का उचित उपयोग करती है तो निश्चित ही मरीजो को अधिक बेहतर विकल्प मिलेंगे साथ ही होम्योपैथी के जनक डॉ हैनिमैन को सच्ची श्रद्धांजलि होगी, ओर इस कोविड 19 महामारी से निपटने में हम सक्षम होंगे ऐसा मुझे विश्वास है।
डॉ. लोकेश दवे, एम.डी. होम्योपैथी
ईमेल- drlokeshdave@gmail.com
10 अप्रैल होम्योपैथी के पितृ पुरुष डॉ सैमुएल हैनिमैन के जन्म दिवस को विश्व होम्योपैथी दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ. हैनिमैन का जन्म 10 अप्रैल 1755 को जर्मनी में हुआ आप अपने समय मे आधुनिक चिकित्सा पद्धति में एम.डी. थे।
महामारी में कारगर रही है होम्योपैथी
होम्योपैथी महामारी में अपने उद्भव के समय से ही काफी कारगर रही है चाहे स्कारलेट फीवर,टायफस,येलो फीवर,निमोनिया, कॉलरा, इन्फ्लूएंजा, हेपेटाइटिस, डेंगू, लेप्टोस्पायरोसिस, कंजंक्टिवाइटिस हो।
एलोपैथ पर भारी रहा है होम्योपैथ
इतिहास गवाह है कि होम्योपैथ ने हमेशा से महामारी के दौरान कारगर तरीके से चिकित्सा की है और लोगों की जान भी बचाई है। अगर एलोपैथ एवं होम्योपैथ की महामारी के दौरान तुलना की जाए तो स्थिति और साफ हो जाएगी। 1799 में जर्मनी में स्कारलेट बुख़ार एपिडेमिक के दौरान मृत्यु दर 5 फीसद से भी कम रही थी। इसका कारण यह था कि होम्योपैथी चिकित्सकों ने आगे आकर मोर्चा संभाला था। 1830-31 में रूस में कॉलेरा एपिडेमिक के समय अन्य पैथियों से इलाज कराने वालों में से 63 फीसद की मौत हुई जबकि होम्योपैथी में इलाज कराने वालों की मृत्यु दर 11 फीसद ही रही। 1847 में आयरलैंड में टायफस एपिडेमिक के दौरान जहां एलोपैथी में मृत्यु दर 13 फीसद थी वहीं होम्योपैथी में 2 फीसद। 1800 के मध्य में ऑस्ट्रेलिया में न्यूमोनिया एपिडेमिक के दौरान एलोपैथिक से इलाज कराने वाले 20 फीसद लोगों की मौत हुई वहीं होम्योपैथी में इलाज करा रहे 5 फीसद मरीज ही काल कलवित हुए। 1918 में पिट्सबर्ग अमेरिका में स्पेनिश इन्फ्लुएंजा महामारी के समय एलोपैथी के 30 फीसद के मुकाबले होम्योपैथी में इलाज कराने वालों की मृत्यु दर महज 1 फीसद रही। 2009-2010 में क्यूबा में लगभग 90 फीसद जनसंख्या को इन्फ्लूएंजा और एच1एन1 से बचाव हेतु होम्योपैथी ईलाज दी गयी। इसके परिणाम स्वरूप वहां मृत्यु दर में भारी कमी आयी। इन आंकड़ो से स्पष्ट है कि होम्योपैथी ने हमेशा से महामारी के समय में फ्रंटलाइनर बनके काम किया है।
होमियोपैथी को उचित अवसर देने का सही समय है यह
होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति लक्षण आधारित होने से यह फायदा है कि किसी भी बीमारी के उपचार के लिए लक्षणों की आवश्यकता होती है जिससे की बीमारी का उपचार हो जाए। होम्योपैथी के उपयोग से इंसान की प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूती मिलती है और वो किसी भी बीमारी से लड़ने में सक्षम होता है। साथ ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नही होता। वर्तमान समय मे सर्वथा उपयुक्त समय है कि होम्योपैथी को उचित अवसर दिया जाए क्योंकि अभी कोविड 19 का एलोपैथी में भी कोई सही उपचार स्पष्ट उपलब्ध नही है। शासन को निर्णय लेते हुए होम्योपैथीक चिकित्सा पद्धति का भी उपयोग शिघ्र प्रारम्भ करना चाहिए।
होम्योपैथी का इतिहास सुनहरा रहा है
उन्नीसवीं व बीसवीं सदी में होम्योपैथी द्वारा कई बड़ी महामारियों पर बेहतर तरीके से काबू पाया गया है। वर्तमान में भी होम्योपैथी संसार में दूसरी सबसे बड़ी चिकित्सा पद्धति है। कई ऐसी बीमारियां जिनका अन्य चिकित्सा पद्धति में कोई उपचार नही है लक्षण आधारित चिकित्सा पद्धति होने से उनका भी उपचार होम्योपैथी से संभव हो जाता है
सरकार करे होम्योपैथी का उचित उपयोग
यदि WHO और सरकार होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति का उचित उपयोग करती है तो निश्चित ही मरीजो को अधिक बेहतर विकल्प मिलेंगे साथ ही होम्योपैथी के जनक डॉ हैनिमैन को सच्ची श्रद्धांजलि होगी, ओर इस कोविड 19 महामारी से निपटने में हम सक्षम होंगे ऐसा मुझे विश्वास है।