देश के जाने-माने स्वास्थ्यकर्मी, चिकित्सक, समाजसेवियों की उपस्थिति में होगा ‘ब्रेन बिहैवियर माइंड्स मैटर्स मैगजिन’ का लोकार्पण
ब्रेन बिहैवियर रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया करा रहा है अपने तरह का अनोखा आयोजन
चरखा के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर पर होगी विशेष प्रस्तुति
गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के सहयोग से बीबीआरएफआई ने चरखा एवं मानसिक स्वास्थ्य विषय पर किया है शोध
नई दिल्ली/एसबी
चरखा को लेकर आज के युवाओं के मन में यही बात होती हैं कि चरखा सिर्फ सूत काटने का एक जरिया है। महात्मा गांधी के जमाने में अपने लिए कपड़ा बनाने में इसका उपयोग किया जाता था। अब इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है। गर आप भी ऐसा सोच रहे हैं तो थोड़ा ठहर जाइए। चरखा का संबंध आपके सेहत से भी है। आपके मानसिक स्वास्थ्य से भी इसका तार जुड़ा हुआ है। यह किस तरह से हमारे जीवन के लिए जरूरी है इस विषय पर एक राष्ट्रीय परिसंवाद नई दिल्ली के राजघाट स्थित सत्याग्रह मंडप में कल यानी 17 नवंबर 2018 को 4 बजे से 7 बजे तक किया जा रहा है। ब्रेन बिहैवियर रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के सहयोग से एक अध्ययन किया है, जिसने चरखा के जरूरत को एक बार फिर से रेखांकित किया गया है। इस रिसर्च से संबंधित पूरी जानकारी के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा।
इस अवसर पर ब्रेन बिहैवियर रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित जानकारियों को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक मैग्जिन लॉच करेगी। ब्रेन बिहैवियर माइंड्स मैटर्स नाम की यह मैग्जिन अभी वार्षिक है, बाद में इसे अर्ध-वार्षिक फिर त्रैमासिक किया जाएगा।
देश दुनिया के जाने माने ब्रेन एनालिस्ट डॉ. आलोक मिश्र ने कुरूक्षेत्र के नए अंक में लिखे अपने लेख में सरकार को सुझाव दिया है कि साइक्लोजिकल सेवाओं के लिए निगरानी करने वाली एजेंसी बनाने की जरूरत है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ें के अनुसार भारत में प्रति 1 लाख आबादी पर 2443 लोगों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं। वही दूसरी तरफ मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल के अनुपात की बात की जाए तो भारत में प्रति 1 लाख की आबादी पर मनोचिकित्सक 0.3 फीसद, नर्स 0.12 फीसद, मनोवैज्ञानिक 0.07 फीसद और सामाजिक कार्यकर्ता 0.07 फीसद हैं।
गौरतलब है कि ब्रेन बिहैवियर रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया ब्रेन कार्ड से लेकर मानसिक स्वास्थ्य जुड़े तमाम विषयों पर शोधरत है।