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इस बीमारी ने ले ली फिल्म अभिनेता इरफान खान की जान

न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर फिल्म अभिनेता इरफान खान की मौत का कारण बना। इस बीमारी के बारे में विस्तार से बता रही हैं अंतरराष्ट्रीय लाइफ कोच अभिलाषा द्विवेदी

 
नई दिल्ली/एसबीएम
सुप्रसिद्ध अभिनेता इरफ़ान खान की मृत्यु का समाचार उनके फैन्स के लिए बहुत दुःखद है। हालांकि इरफ़ान खान को जब अपनी बीमारी का पता चला था तब उन्होंने सार्वजनिक रूप से बताया था कि उन्हें न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर डाइगनोस्ड  हुआ है। जो कि एक तरह का कैंसर है। 2018 में उनकी बीमारी का इलाज हुआ था। वापस आ कर उन्होंने एक फिल्म ‘इंग्लिश मीडियम’ भी बनाई। जो लॉक डाउन के कारण थिएटर में नहीं आई पर दर्शकों में इस फिल्म को लेकर उत्साह था और यह चर्चा का विषय रही।
खान की 95 वर्षीय मां सईदा बेगम की तीन दिन पहले जयपुर में मृत्यु हो गई थी। अभिनेता कोरोना वायरस से निपटने के लिए लगाये गये लॉकडाउन के कारण अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाये थे। उसके बाद ही इरफ़ान खान को कोलोन इन्फेक्शन की शिकायत पर अस्पताल में एडमिट कराया गया, इलाज के दौरान ही उनका निधन हो गया।
जाने न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर के बारे में
न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर शरीर में कहीं भी डेवलप हो सकता है। यह हमेशा मेलिगनेंट ही नहीं होता कई बार बिनाइन यानी नान कैंसरस भी होता है। यह सबसे कॉमन पाचन तंत्र की कोशिकाओं में, पैंक्रियाज, रेक्टम, फेफड़ों में या अपेंडिक्स में पाया जाता है। सामन्यतः यह धीरे धीरे बढ़ता है, और काफी समय तक कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। जब स्टेज बढ़ जाती है तब लक्षण दिखते हैं और उस स्टेज पर यह अचानक तेजी से बढ़ता है। अन्य कैंसर की तरह ही यह भी auto immunity का मैटर है। इसके होने का कोई भी ठोस कारण नहीं पता, बस इतना कि RET जीन में बदलाव के कारण Neuro Endocrine Tumours होते हैं।
आमतौर पर मॉडर्न मेडिकल साइंस में कैंसर जैसी ऑटो इम्यून बीमारियों के किसी विशेष कारक का कोई जिक्र नहीं है। पर अन्य थेरपी और चिकित्सा पद्धतियों के शोधकर्ताओं ने कोशिकाओं के अचानक और बेतरतीब बढ़ने के कारण की स्टडी की है और कुछ निष्कर्ष दिए हैं।
शोध में क्या कहा गया है
एक रिसर्च में पाया गया है कि हाई ब्रिड प्रजाति के ग्लूटन युक्त अनाज ( भारत में मुख्यतः हाई ब्रिड गेहूँ ) का ग्लूटन शरीर में विभिन्न प्रकार की विसंगतियों को जन्म देता है। जो कैंसर के अलावा थायरॉइड और ब्लड शुगर संबंधी समस्याओं का भी उत्प्रेरक है। इसके अलावा फसलों में प्रयोग किया जाने वाला हर्बीसाइड (खरपतवार नाशक) जैसे रसायन भी शरीर में कैंसर कारक है। हमारे घरों में प्रयोग होने वाले प्लास्टिक, कुछ सौंदर्य प्रसाधन भी इसके लिए कई बार जिम्मेदार होते हैं।
एक अलग प्रकार का शोध जो मानव मष्तिष्क, भावनात्मक उतार चढाव, हमारी सम्वेदना के आधार पर दिमाग के व्यवहार और उसके प्रभाव पर किया गया। उसमें पता चला कि व्यक्ति के किसी करीबी की मृत्यु होने के कारण जब अवचेतन मन को यह अनुभूति होती है कि जीवन का एक हिस्सा यानी कि अपना ही कोई अंग मर गया है, तो मष्तिष्क यह सच मान कर कोशिकाओं को सचेत करता है कि हम मर रहे हैं। फिर फाइट या फ्लाइट मोड ऑन हो जाता है। जिसका उस समय उद्देश्य होता है शरीर की कोशिकाओं को मरने से बचाना। जबकि वास्तव में हमारे व्यक्तिगत शरीर में कोशिकाएँ या कोई अंग नहीं डेड होता है यह सिर्फ भावात्मक एहसास होता है। पर शरीर में कोशिकाएं ये संदेश पाकर की हम मर रहे हैं वो और तेजी से नई कोशिकाओं का निर्माण करने लगती हैं l हालांकि शरीर में पुरानी कोशिकाओं के टूटने (मरने) और नई कोशिकाओं के निर्माण की प्रक्रिया चलती ही रहती है। पर इस स्थिति में पुरानी कोशिकाएं खुद को अपनी अवधि पूरी होने पर भी नष्ट नहीं करती हैं और उस पर नई कोशिकाएं बनती जाती हैं। जिससे वह गाँठ या ट्यूमर का रूप ले लेती हैं। उसके बाद सेल्स में आपस में ही जीवन का संघर्ष शुरू हो जाता है और वो एक दूसरे को खाने लगती हैं। इस प्रक्रिया में हो रहे इन्फेक्शन को ही कैंसर कहा जाता है।
यह थ्योरी कैंसर के इलाज के लिए मन के स्तर पर re programming की सलाह देती है। जिससे सेल का इस तरह का व्यवहार रोका जा सके। हालाँकि कैंसर के मामले में अभी तक कोई भी थ्योरी सिद्धांत के रूप में स्थापित नहीं है। इस पर तमाम रिसर्च चल रहे हैं। पर शरीर के मैकेनिज्म और फिजियोलॉजी में होने वाले बदलावों को रोकने के काम किए जाने की ज़रूरत है। जबकि मॉडर्न मेडिसिन में लक्षणों का प्रबंधन प्राथमिकता है।
जीवन शैली, शारीरिक श्रम की कमी और मानसिक तनाव की अधिकता भी कई सारी ऐसे ऑटो इम्यून बीमारियों को तेजी से बढ़ा रही हैं। इससे मानव जाति का बचाव हो सके, उसके लिए रास्ता यही समझ में आता है कि हमें प्रकृति के साहचर्य और उसके नियमों के अनुरूप संयमित जीवन जीना होगा। भौतिक विकास के बनिस्पत समग्र विकास को जीवन में प्राथमिकता देना ही उपाय है।

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