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हड्डी फ्रैक्चर के प्रभावी उपचार की नई तकनीक विकसित

नयी दिल्ली। भारतीय शोधकर्ताओं ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिसके आधार पर इस बात का आकलन किया जा सकेगा कि जांघ की हड्डी का फ्रैक्चर सर्जरी के बाद किस प्रकार और किस सीमा तक ठीक हो सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सिमुलेशन मॉडल पर आधारित यह तकनीक सर्जरी के बाद जांघ की हड्डी के फ्रैक्चर में हो रहे सुधार का आकलन करने में उपयोगी हो सकती है। इसके साथ-साथ यह तकनीक सर्जन को फ्रैक्चर उपचार के लिए आवश्यक सर्जरी से पहले सही इम्प्लांट या तकनीक चुनने में भी मदद कर सकती है।

आईआईटी गुवाहाटी का शोध

शोधकर्ताओं का कहना है कि विभिन्न फ्रैक्चर निर्धारण रणनीतियों के उपचार परिणामों का आकलन करने के लिए इस तकनीक का उपयोग हो सकता है। इससे रोगी के विशिष्ट शारीरिक गठन और फ्रैक्चर प्रकार के आधार पर इष्टतम रणनीति का चयन किया जा सकता है। यह अध्ययन IIT गुवाहाटी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। यह अध्ययन आर्थाेपेडिक्स में सटीक और प्रभावी निर्णय लेने की दर में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

विश्वसनीय तरीका विकसित

विभिन्न उपचार विधियों के बाद फ्रैक्चर रिकवरी की प्रक्रिया को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने परिमित तत्व विश्लेषण, एआई टूल और फ़ज़ी लॉजिक के संयोजन का उपयोग किया गया है। इसके लिए विशिष्ट सिमुलेशन के साथ-साथ अस्थि-विकास मापदंडों का उपयोग किया गया है। फ्रैक्चर उपचार क्षमता की तुलना के लिए हड्डियों को स्थिरता प्रदान करने वाले स्क्रू आधारित तंत्र के प्रभाव की पड़ताल भी की गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि टूटी हड्डियों में सुधार के संबंध में एआई मॉडल के आकलन प्रयोगात्मक अवलोकन के अनुरूप पाये गए हैं, जो इसकी विश्वसनीयता को दर्शाते हैं।

खर्च और दर्द में होगी कमी

IIT गुवाहाटी के वक्तव्य में बताया गया है कि इस तरह के सटीक मॉडल का उपयोग उपचार के समय को कम कर सकता है, और उन रोगियों के लिए आर्थिक बोझ और दर्द को कम कर सकता है, जिन्हें जांघ के फ्रैक्चर के उपचार की आवश्यकता होती है। विभिन्न जैविक और रोगी-विशिष्ट मापदंडों के अलावा यह एआई मॉडल; धूम्रपान और मधुमेह जैसे नैदानिक घटकों को भी आकलन प्रक्रिया में शामिल कर सकता है।

जर्नल में हुआ प्रकाशन

IIT गुवाहाटी के डिपार्टमेंट ऑफ बायोसाइंस में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सौप्तिक चंदा और उनके शोध छात्र प्रतीक नाग का यह अध्ययन शोध पत्रिका प्लॉस वन में प्रकाशित किया गया है। डॉ सौप्तिक चंदा बताते हैं कि ‘जटिल जैविक घटनाओं को समझने और उनका आकलन करने में एआई प्रभावी रूप से सक्षम है और इसीलिए स्वास्थ्य विज्ञान अनुप्रयोगों में यह तकनीक एक बड़ी भूमिका निभा सकती है।’

इंडिया साइंस वायर से साभार

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