आज के दिन जब देश के मुखिया लाल किले की प्राचीर से लोगों को आत्मनिर्भर होने का मंत्र दे रहे हैं, हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम भी अपने शरीर को बीमारियों से मुक्त करेंगे, आत्मनिर्भर बनाएंगे, स्वस्थ बनायेंगे।
आशुतोष कुमार सिंह, चेयरमैन स्वस्थ भारत
आजादी को बहुत ही सीमित अर्थों में हम समझते रहे हैं। आजादी का विस्तार क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। इसके व्यापकता को नहीं समझने के कारण ही अक्सर हम अपने को आजाद समझ लेते हैं। वर्तमान समय में पूरी मानवता बीमारियों की चपेट में है। कोविड-19 के कारण वैश्विक गति धीमी हो चुकी है। इन बीमारियों ने हमारी आजादी को बेड़ियों में जकड़ लिया है। यह समय है इन बेड़ियो को काटने का। इन बेड़ियों से मुक्त होने का।
वैसे तो मुक्ति एक आध्यात्मिक अर्थ वाला शब्द है। इसके भाव बहुत गहरे हैं। दूसरी तरफ यह भी सच है कि इस भाव को समझे बिना हम आजादी के सही अर्थों को समझ भी नहीं पाएंगे। सबसे पहले तो हमें यह सोचना होगा कि आखिर हम बीमारियों के गुलाम कैसे हो गए? हमारा शरीर इतना कमजोर कैसे हो गया? बीमारियों को हमने पनपने ही क्यों दिया? बीमारियों की गुलामी का संबंध हमारे मन से भी है। हमारा मन जब बीमारी पैदा करने वाले कारको को अपना दोस्त समझ बैठता है, उनकी संगत में रमने लगता है, उनकी आरती उतारने लगता है, तब इन बीमारियों को हमारे शरीर में पूरा स्पेस मिल जाता है। एक बार स्पेस मिलने के बाद वे चीन की तरह विस्तारवादी और अमेरिका की तरह विध्वंसक नीति पर चलती हैं। आपके शरीर में फैलने के लिए खूब बम-बारूद गोली चलाती हैं। जबतक हमारे मन को यह पता चलता है कि जिसे वह अपना मित्र समझ रहा था वह तो वास्तव में दुश्मन निकला, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। शरीर के कई हिस्से सड़-गल चुके होते हैं। सांसो पर हम अपना अधिकार खो चुके होते हैं। धरती के भगवानों के भरोसे हमारी जिंदगी रेंगने पर मजबूर हो जाती है।धीरे-धीरे हमें अपने सभी सुख-सुविधाओं और स्वाद को तिलांजली देनी पड़ती है। हम बीमारियों की जेल में सड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
ऐसे में आज के दिन जब देश के मुखिया लाल किले की प्राचीर से लोगों को आत्मनिर्भर होने का मंत्र दे रहे हैं, हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम भी अपने शरीर को बीमारियों से मुक्त करेंगे, आत्मनिर्भर बनाएंगे, स्वस्थ बनायेंगे। और इन सबके लिए हमें संयमित चर्या का पालन करना होगा। लाभा-लाभ की लालसा को त्यागना पड़ेगा। हैपीनेस केन्द्रित आत्म-विकास की राह पर चलना होगा। अपने विकास के मानक को खुशी और आनंद की कसौटी पर कसना होगा न की आर्थिक अट्टालिकाओं के मानको पर।
अगर हम ऐसा कर पाएं तो निश्चित ही हम अपने अंदर की बीमारियों से खुद को मुक्त कर पाएंगे, स्वस्थ रह पाएंगे और अपनी स्वतंत्रता का उपयोग देशहित में 100 फीसद कर पाएंगे।
ऐसे में आप सभी मित्रो से अपील करता हूं कि खुद को काम,क्रोध, मद, लोभ और दंभ रूपी बीमारियों से मुक्त करें और स्नेह, प्यार, सहकार, सरोकार एवं भाइचारे रूपी रसायन को अंगीकार करें। मुझे पूर्ण विश्वास है कि स्वस्थ भारत का सपना जरूर पूर्ण होगा।