अजय वर्मा
नयी दिल्ली। भारत ही नहीं, अमेरिका में भी जेनेरिक दवा को बढ़ावा देने का अभियान चल रहा है। अमेरिका में चल रहे इस अभियान से पैसा लूटने वाली बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों पर दबाव पड़ने की संभावना है। फार्मा सेक्टर की दिग्गज कंपनियां वहीं की हैं जो ब्रांडेड दवाइयों और पेटेंट के नाम पर पूरी दुनिया के दवा मार्केट में अपना प्रभुत्व जमाया हुआ है। पेटेंट के सहारे ही यह कंपनियां अपने प्रतिद्वंद्वियों और छोटी कंपनियों को दबाकर रखती हैं।
मार्क क्यूबन ने छेड़ा अभियान
खबरों के अनुसार अमेरिकी अरबपति मार्क क्यूबन ने (Mark Cuban) लुटेरी फॉर्मा कंपनियों के प्रभुत्व का अंत करने की दिशा में बडा कदम बढ़ा दिया है। फोर्ब्स के मुताबिक उनकी नेटवर्थ 4 अरब डॉलर से अधिक है। मार्क ने जनवरी 2022 में अमेरिकी घरों में कम लागत वाली जेनेरिक दवाइयां लाने के उद्देश्य से एक कंपनी की स्थापना की। उन्होंनेे अपनी इस कंपनी का नाम द मार्क क्यूबन कॉस्ट प्लस ड्रग कंपनी (MCCPDC) रखा। मार्क की कंपनी सीधा उपभोक्ताओं से संपर्क रखती हैं। यह कंपनी सौ से अधिक जेनेरिक दवाइयां छूट वाले मूल्य पर मुहैया कराने का काम करती हैं। वैसे यह कंपनी अभी प्रारंभिक चरण में ही है। वे कहते हैं कि मैं इससे धन कमा सकता था, लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा। मेरे पास पर्याप्त पैसा है। मैं इसके बजाए दवा उद्योग को हर संभव तरीके से बढ़ावा देना चाहता हूं। मार्क क्यूबन के प्रयास ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नींदें उडा कर रख दी है।
गुणवत्ता में कमजोर नहीं जेनेरिक दवा
फार्मा सेक्टर के जानकारों के मुताबिक कंपनियां दो तरह की दवाइयां बनाती हैं, जिसमें पहली ब्रांडेड और दूसरी जेनेरिक है। दोनों का निर्माण एक ही तरीके से किया जाता है। अंतर केवल ब्रांड का होता है। ब्रांड का नाम जुडने भर से दवाइयों की कीमतों में बहुत बडा अंतर आ जाता है और यह काफी महंगी हो जाती हैं। पेटेंट दवा को बाजार में लाने के लिए शोध, विकास, विपणन एवं प्रमोशन पर बड़ी राशि खर्च की जाती है। वहीं जेनेरिक दवा इसके मुकाबले काफी सस्ती होती है। ऐसी दवा जिनके निर्माण या वितरण के लिए किसी पेटेंट की आवश्यकता नहीं होती, जेनेरिक कहलाती हैं। गुणवत्ता के मामले में ब्रांडेड दवा के बराबर ही होती हैं। ऐसे में गरीबों के लिए जेनेरिक दवा किसी वरदान से कम नहीं होती।
भारत से 20 फीसद दवा का निर्यात
भारत में भी जेनेरिक दवाइयों को बढावा देने का प्रयास किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल से देशभर में जगह-जगह पर जन औषधि केंद्र खोले गए, जहां 80 से 90 प्रतिशत तक कम मूल्य में लोगों को दवाई उपलब्ध कराई जाती है। इन जन औषधि केंद्रों के माध्यम से अब तक आम जनता के 13 हजार करोड रुपये की बचत हुई है। वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाइयों की कुल खपत का 20 फीसद भारत से निर्यात किया जाता है। अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान और ब्रिटेन जैसे देशों में भारत में बनी जेनेरिक दवाइयों की मांग है।