गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति राजघाट और गांधी ज्ञान मंदिर मधेपुरा बिहार के संयुक्त तत्वाधान में रविवार को ‘ महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज ‘ विषय पर आयोजित हुआ वेबिनार
नई दिल्ली 7 जून/एसबीएम समाचार
महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज स्वदेशी और स्वावलंबन पर आधारित था। भारत में ग्राम पंचायत को ज्यादा से ज्यादा ताकत और हिस्सेदारी मिले इसकी गांधीजी वकालत करते थे। गांधी जी ने 14 फरवरी 1916 को ही मद्रास ( चेन्नई) में अपने भाषण में स्वदेशी और स्वावलंबन को परिभाषित किया था। 1916 के बाद ग्राम स्वराज का विषय नवजीवन ने पुस्तक रूप में विस्तार से छापी है लेकिन कॉरोना के इस दौर में यह विषय मौजूँ हो गया है। ग्राम स्वराज कोई किताबी विषय नहीं जिसे पुनर्जीवित किया जाए बल्कि केंद्र और राज्य सरकार को ग्राम स्वराज को पूरी तरह से लागू करने की दिशा काम शुरू कर देना चाहिए। 73 वें संशोधन में पंचायती राज की जो व्यवस्था होनी चाहिए उसमें कोई अड़चनें मुझे नहीं दिख रह। यही ग्राम स्वराज की गांधी की परिकल्पना को पूरी तरह से साकार रूप दे सकती है। यह बात इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने कही। गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति राजघाट और गांधी ज्ञान मंदिर मधेपुरा बिहार के संयुक्त तत्वाधान में रविवार को ‘ महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज ‘ विषय पर आयोजित वेबिनार में बतौर मुख्य वक्ता राय ने यह बात कही।
वेबिनार में वरिष्ठ पत्रकार और गांधी विषयों के अध्येता अरविन्द मोहन ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि गांधी जी के छूआछूत से सम्बंधित बुराइयों से मुक्ति पाने की सलाह ही ग्राम स्वराज की सच्ची परिकल्पना थी। कार्यक्रम में गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के निदेशक दीपांकर श्रीज्ञान ने विषय प्रवेश करते हुए ग्राम स्वराज की महत्ता बताई तो गांधी ज्ञान मंदिर मधेपुरा के संस्थापक दीनानाथ प्रबोध ने इसे बिनोबा के भूदान ग्रामदान से जोड़ते हुए परिभाषित किया। मगध विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक देवनारायण पासवान देव के साथ चाणक्या स्कूल आफ पोलिटिकल राइटस एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा ने धन्यबाद ज्ञापन किया।
राम बहादुर राय ने कहा कि ग्राम स्वराज को समझना गांधी को समझना है। आजादी से पहले अक्टूबर 1945 का महीना ग्राम स्वराज के संदर्भ में बड़ा महत्वपूर्ण है। आजादी मिलने वाली थी। फिर देश कैसे चलेगा। गांधी जी ने जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र लिखा। उसमे ग्राम संरचना और ग्राम स्वराज की विस्तृत रूपरेखा रखी गई। लेकिन दुर्भाग्य से आजादी के बाद कई महात्माओं की तमाम कोशिश के बाद भी सविधान में ग्राम स्वराज को उतना महत्वा नहीं दिया गया जितनी आज इस विषय की जरूरत समझी जा रही है। 1931 में जो स्पष्ट व्याख्यान था वह आज भी प्रासंगिक है। स्वराज शब्द वैदिक है। पवित्र है। आत्मशासन और आत्मशंसय से प्रकट होता है। आज प्रश्न है कि संसदीय लोकतंत्र और ग्राम स्वराज क्या साथ-साथ चलेंगे। गांधी के ग्राम स्वराज से सम्बंधित 12 बुनियादी विंदुओं को रखा जिसमें लोगों को सुखी और उन्नत बनाने, शरीर श्रम, समानता का व्यव्हा, छूआछूत जैसे प्रथाओं का समूल समाप्त होना, स्वदेशी, स्वाबलंबन , पंचायती रा, नई तालीम और ट्रस्टीशिप जैसी अन्य बाते समाहित थी।
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