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अंतरिक्ष कचरे से संबंधित अध्ययन कर रहा है Isro

नयी दिल्ली। अंतरिक्ष में परित्यक्त अथवा निष्क्रिय यानों और उनके लॉन्च वाहनों का कचरा बड़े पैमाने पर फैला हुआ है। किसी अंतरिक्ष यान की तरह यह कचरा भी पृथ्वी की निचली कक्षा में बेहद तीव्र गति से परिक्रमा कर रहा है। आकार में बेहद छोटा होने के बावजूद अंतरिक्ष कचरा अन्य अंतरिक्ष यानों और रोबोटिक मिशनों को खतरे में डाल सकता है। इस चुनौती से निपटने के लिए इसरो अंतरिक्ष में बढ़ते मलबे के प्रभावों पर कई अध्ययन कर रहा है।

मलबे का अंतरिक्ष पर्यावरण पर असर

यह जानकारी केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकीय व अंतरिक्ष डॉ. जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी प्रदान की है। यूएस स्पेस डॉट कॉम पर सूचीबद्ध अंतरिक्ष कचरे और स्पेस ट्रैक वेबसाइट का हवाला देते हुए डॉ. सिंह ने बताया कि 20 जनवरी 2023 तक कुल 111 पेलोड और 105 अंतरिक्ष अपशिष्टों की पहचान पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली भारतीय वस्तुओं के रूप में की गई है। इस मलबे का बाहरी अंतरिक्ष पर्यावरण पर असर पड़ रहा है और भविष्य के मिशनों की स्थिरता भी इससे प्रभावित हो सकती है।

1990 से ही चल रही स्टडी

मंत्री ने कहा कि अंतरिक्ष मलबे से उभरते खतरों पर अध्ययन 1990 के आंरभ से इसरो और शिक्षाविदों द्वारा किये जा रहे हैं। वर्ष 2022 में इसरो सिस्टम फॉर सेफ ऐंड सस्टेनेबल ऑपरेशन्स मैनेजमेंट स्थापित किया गया है। इसका उद्देश्य टकराव के खतरे वाली वस्तुओं की लगातार निगरानी के लिए अधिक प्रभावी प्रयास करना, मलबे से युक्त अंतरिक्ष पर्यावरण के विकास की भविष्यवाणी में सुधार और इससे उत्पन्न जोखिम को कम करने के लिए ठोस गतिविधियां संचालित करना है। अंतरिक्ष कचरे के बेहद छोटे टुकड़ों से टकराव के खतरे से यान को बचाने के प्रभावी प्रयास आवश्यक हैं। अंतरिक्ष कचरे के भारतीय अंतरिक्ष संपत्ति के साथ टकराव को रोकने के लिए 2022 में इसरो ने 21 अभ्यास किए हैं।

27 हजार से अधिक टुकड़े भटक रहे

नासा के अनुसार पृथ्वी की कक्षा में अंतरिक्ष अपशिष्ट के 27 हजार से अधिक टुकड़े तैर रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या में ऐसे टुकड़े शामिल हैं, जो आकार में बेहद छोटे हैं और उन्हें ट्रैक करना कठिन है। अंतरिक्ष कचरा और अंतरिक्ष यान दोनों 15,700 मील प्रति घंटे की अत्यधिक तीव्र रफ्तार से पृथ्वी की निचली कक्षा में घूम रहे हैं और इनके आपस में टकराने का खतरा बना रहता है।

इंडिया साइंस वायर से साभार

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