कोरोना के कारण रोटी-कपड़ा और मकान से बेदखल हुए मजदूरों ने आत्महत्या की राह पकड़नी शुरू की है। इस ट्रेंड को समय रहते तोड़ना बहुत जरूरी है। वरिष्ठ पत्रकार अजय वर्मा की रिपोर्ट
एसबीएम विशेष समाचार
कोरोना महामारी से उत्पन्न माहौल ने अब साइड इफेक्ट दिखाना शुरू कर दिया है। जो महामारी, विस्थापन, हादसे और भूख से बचकर घर के करीब पहुंच रहे हैं उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति उभरने लगी है जो चिंता का विषय है। प्रशासन को केवल भोजन—पानी और चिकित्सा सुविधा ही नहीं, हौसला भी देना होगा। उनकी काउंसिलिंग भी करानी होगी। यह कहना इसलिए भी जरूरी है कि बिहार ही नहीं, दूसरे प्रदेशों में भी ऐसी घटनाएं होने लगी हैं।
दर्जन भर से अधिक सुसाइड के मामले
देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसी दर्जन भर घटनाएं हो चुकी हैं। बात बिहार से शुरू करते हैं। दरभंगा में बहादुरपुर प्रखंड एवं सिमरी थाना अंतर्गत जलवार पंचायत के उत्क्रमित उच्च विद्यालय, कमरौली में बने क्वॉरंटीन सेंटर में 13-14 अप्रैल की रात में कमरे की खिड़की में लगे छड़ से गमछा का फंदा बनाकर 45 वर्षीय कोरोना संदिग्ध मजदूर विनोद यादव ने आत्महत्या कर ली। वह दिल्ली से आया था। वह पत्नी संगीता देवी एवं बड़े पुत्र प्रवीण कुमार के साथ दिल्ली में रहकर मजदूरी करता था। लॉक डाउन में काम बंद होने पर पत्नी एवं पुत्र को दिल्ली में ही छोड़कर दिल्ली से पैदल ही चलकर 9 अप्रैल को गांव आ गया था। उसे 10 अप्रैल को क्वॉरंटीन किया गया था। वैशाली के एक क्वारंटीन सेंटर में राजेश कुमार ने फंदा लगाकर जान दे दी। वह चंद दिन पहले ही दिल्ली से हाजीपुर लौटा था।
तमाम राज्यों से आ रही हैं रिपोर्ट
राजस्थान में उदयपुर जिले के हाथरस निवासी 19 वर्षीय विष्णु सूरत के होटल में वेटर की नौकीर करता था। लॉकडाउन में काम बंद होने पर राजस्थान बॉर्डर तक पैदल पहुंचा। उदयपुर के डवोक थाना क्षेत्र के क्वॉरंटीन सेंटर में उन्हें अन्य दो साथियों के साथ 31 मार्च से रखा गया। 4 अप्रैल की रात में फंदे से झूलती विष्णु की लाश मिली। हरियाणा में रोजी-रोटी में लगे उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी फरिया पिपरिया गांव के 22 वर्षीय रोशन लाल 29 मार्च को गांव आ गए। वह क्वॉरंटीन सेंटर में नहीं रुका और गांव में रहने लगा। चक्की में गेंहू पिसाने के लिए समीपस्थ दूसरे गांव गया था तभी गांव वाले की सूचना पर एक पुलिस ने आकर पूछताछ शुरू की तो दूसरे पुलिस ने तुरंत पिटाई शुरू कर दी। बेइज्जती से आहत होकर 31 मार्च को अपनी इहलीला समाप्त कर ली। उसके खेत में लगे ट्यूबवेल से उसकी लाश मिली। गौतमबुद्ध नगर, नोएडा में गलगोटिया कॉलेज में बनाए गए क्वॉरंटीन सेंटर मैं 32 वर्षीय युवक ने 11 अप्रैल को कॉलेज की सातवीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली। झारखंड में पलामू के लेस्लीगंज कोर्ट खास पंचायत भवन में बने क्वारंटीन सेंटर में गोपालगंज गांव के कोरोना संदिग्ध मजदूर अयूब अंसारी ने गमछा से फंदा बनाकर 21 अप्रैल को आत्महत्या कर ली। वह तीन दिन पहले चंदवा के शादी समारोह से लौटा था। उसे 14 दिनों तक घर और गांव के लोगों से दूरी बनाकर रहने का निर्देश दिया गया था।
झारखंड में बरियातू लेक व्यू अस्पताल से कूदकर एक कोरोना संदिग्ध व्यक्ति ने 21 अप्रैल को आत्महत्या कर ली। जांच रिपोर्ट में कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट मिली। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में क्वॉरंटीन सेंटर में मजदूर 19 वर्षीय राम लखन कुशवाहा 28-29 अप्रैल की रात में कमरे की खिड़की के रॉड से फांसी का फंदा बनाकर झूल गया। वह गढ़ाकोटा (सागर) से सौ किलोमीटर पैदल चलकर गांव लौटा था। जबलपुर में मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करने वाला 45 वर्षीय कल्लू ने गांव आने पर 21 अप्रैल की रात में क्वॉरंटीन सेंटर से भागकर बगल के जंगल में पेड़ से लटक कर आत्महत्या कर ली। दमोह जिला के बटियागढ़ तहसील में नगला मंगोला गांव पहुंचे कल्लू को दमोह के सरकारी कॉलेज में बने सेंटर में उनके भाई उम्मीद एवं बहू के साथ 20 अप्रैल को रखा गया। 21 अप्रैल को कल्लू फरार हो गए। 22 अप्रैल को सेंटर के नजदीक केरबना रोड पर जंगल में एक पेड़ से लटकती कल्लू की लाश मिली।
विजयवाड़ा में काम बंद होने पर ओडिशा के बारीपाड़ा जिले के रायकामा गांव के निवासी 38 वर्षीय सुरेंद्र बेहरा पत्नी के साथ ओडिशा आ गए। 9 मई को मयूरगंज के आइसोलेशन सेंटर में उन्हें पत्नी के साथ अलग-अलग कमरों में रखा गया। 14-15 मई की रात में आइसोलेशन सेंटर के समीप ही एक पेड़ की डाली में फंदा बनाकर सुरेंद्र बेहरा ने आत्महत्या कर ली।
वजह की तह में जाकर समाधान करना होगा
ये सारी घटनायें आइसोलेशन या क्वारंटीन के दौरान सख्त या रूखे व्यवहार के कारण हो रही हैं। कहीं प्रशासन के अधिकारी बाहर से वापस हुए लोगों के साथ मानवीय व्यवहार नहीं करते हैं तो कहीं सुविधाओं की कमी का विरोध करने पर पुलिस वाले मारपीट करते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। कोरोना संदिग्ध लोगों के साथ मानवीय व्यवहार में लेशमात्र भी रोष नहीं दिखाना चाहिए। यह सतर्कता जरूरी है अन्यथा वह आत्महत्या के लिए प्रेरित हो सकता है। इसके लिए क्वारंटीन सेंटर आइसोलेशन वार्ड के लिए जारी Standard Controlling Protocol में देखरेख के लिए जिम्मेदार अधिकारियों, कर्मचारियों एवं सुरक्षा में लगे पुलिस कर्मियों का नरमी युक्त व्यवहार रखने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
हालांकि बिहार के केंद्रों पर योग कराने की खबरें भी हैं। पिछले दो-तीन दिनों से खुद सूबे के मुखिया क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे लोगों से बातचीत कर रहे हैं। इसके साथ ही मानसिक उपचार के लिए स्पेशलिस्ट को लगाकर उनकी काउंसिलिंग करानी चाहिए क्योंकि उनका सब कुछ लुट चुका होता है। जीवन-यापन के रास्तों की कमी और परिवार की चिंता उन्हें अंदर से बहुत कमजोर कर देती हैं।
क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक?
ब्रेन बिहैवियर रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया की चेयरपर्सन डॉ. मीना मिश्रा ने कहा कि इस तरह का ट्रेंड समाज के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि मजदूरों को उनकी समझ के स्तर पर जाकर समझाना होगा। उन्होंने कहा कि मजदूर तो यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि यह सब हो क्या रहा है? उनको ऐसा लग रहा है कि वे कोई अपराधी हैं और उन्हें बंधक बनाकर रखा गया है। उनकी यह मनोदशा उनकी कमतर समझ शक्ति का परिचायक है। ऐसे में जरूरी इस बात की है कि इन मजदूरों को समझाया जाए कि उनको क्वारंटाइन या आइसोलेशन में उनके एवं उनके परिवार के भले के लिए रखा जा रहा है। वे पुण्य का काम कर रहे हैं। उनके सहयोग को समाज सकारात्मक रूप से ले रहा है। ये सारी बातें उन्हें उनकी भाषा में बताएं जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि, बहुत से मजदूर इसे दैवीय प्रकोप भी मान रहे होंगे। बहुतों को यह लग रहा होगा कि अब उनकी जीवन-लीला समाप्त होने वाली है। ऐसी मनोस्थिति में जब मन बहुत दबाव एवं व्याकुल होता है तो आत्महत्या का विचार आता है। उन्होंने सुझाव दिया कि क्वारंटाइन सेंटर में जितना संभव हो सके मनोरंजन की व्यवस्था भी कराई जानी चाहिए मसलन गीत-संगीत बजाया जाए। टेलीविजन की व्यवस्था हो सके तो वह भी कराया जाए। इससे उनके मन में आशा एवं उत्साह का भाव जागृत होगा।
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