नयी दिल्ली। जैविक खाद एवं बायोगैस उत्पादन की किफायती तकनीक, फसल सुरक्षा में सहायक फेरोमोन ट्रैप, पारंपरिक हथकरघा उद्योगों से निकले अपशिष्ट जल के शोधन के लिए प्रभावी तकनीक और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने जैसी विभिन्न तकनीकों को लेकर हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय प्रयोगशाला CSIR-भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान (IICT) के वैज्ञानिक आम लोगों से संपर्क किया ताकि दैनिक जीवन से जुड़ी उन लोगों की चुनौतियों के वैज्ञानिक समाधान उपलब्ध कराये जा सकें।
37 लैब ने अभियान में भाग लिया
संस्थान की यह पहल वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) द्वारा चलाये जा रहे ‘वन वीक, वन लैब’ अभियान का हिस्सा है। इसके अंतर्गत देशभर में फैली 37 वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं अपने कार्यों को लोगों के बीच लेकर पहुंची। इस अभियान में उद्योग एवं स्टार्ट-अप सम्मेलन, स्टूडेंट-कनेक्ट, सोशल-कनेक्ट, किसान मेला, वैज्ञानिकों से संवाद और प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन जैसी गतिविधियाँ शामिल रही। यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सुझाए गए ‘वैज्ञानिकों के सामाजिक दायित्व’ से प्रेरित है। यह सब 7 से 12 मार्च तक हुआ।
नवीनतम तकनीक बताना मकसद
CSIR-IICT के निदेशक डॉ डी. श्रीनिवास रेड्डी ने कहा – वैज्ञानिकों की सामाजिक जिम्मेदारी है कि वो नवीनतम वैज्ञानिक खोजों को प्रयोगशाला से जमीनी स्तर पर लेकर जाएं और उनके फायदों के बारे में जनसमुदाय को बताएं। अत्याधुनिक वैज्ञानिक खोजों का लाभ जमीनी स्तर पर पहुँचाकर लोगों की दैनिक जीवन की चुनौतियों को कम करने, आजीविका के अवसर उपलब्ध कराने, और अंततः लोगों के आर्थिक और सामाजिक स्तर में सुधार के प्रयासों में मदद मिल सकती है।
अपशिष्ट जल के उपचार पर काम
डॉ श्रीनिवास रेड्डी ने कहा कि संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ ए. वेंकट मोहन के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम सिरीपुरम गाँव में पारंपरिक हथकरघा-बुनाई क्लस्टर में अपशिष्ट जल के उपचार के लिए विकेंद्रीकृत ETP मॉडल पर काम कर रही है। ETP से 7000 से अधिक आबादी लाभान्वित होगी, जो पोचमपल्ली इकत हैंडलूम पर निर्भर है। IICT के मुख्य वैज्ञानिक डॉ सुब्बा रेड्डी ने किसान मेले के बारे में जानकारी देते हुए कहा, हमने किसानों को फेरोमोन एप्लिकेशन तकनीक के उपयोग के बारे में बताया जो रसायनों के अधिक उपयोग से बचाने में मदद करती है।
इंडिया साइंस वायर से साभार