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वैज्ञानिक रूप में कायम है योग का अस्तित्व

योग दिवस पर खास
कुमार कृष्णन

योग विद्या ने कई हजार वर्षों से कलात्मक रूप के साथ-साथ वैज्ञानिक रूप में भी अपना अस्तित्व बनाए रखा है। फिर भी हाल के कुछ वर्षों से ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसका अन्वेषण गंभीरता के साथ शुरु हुआ है। योग से होने वाले समग्र लाभ को मूल रूप से समझने और मानवता के लिए लाभदायी साबित करने के लिए यह जरूरी है कि इसके कलात्मक पहलुओं के साथ-साथ विज्ञान की अन्य विधाओं की तरह ही इसका भी अध्ययन किया जाए।

योग में भी व्यवस्थित दृष्टिकोण

महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित योग का अष्टांग इस बात का प्रमाण है कि योग भी व्यवस्थित दृष्टिकोण का परिपालन करता है, जैसे कि विज्ञान की अन्य मुख्य धाराओ में होता है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि योग के अष्टांग हैं। यम और नियम व्यवहार-सुधार के लिए, आसन और प्राणायाम-शरीर को सुदृढ बनाने के लिए, प्रत्याहार और धारणा-मानसिक एकाग्रता के लिए और ध्यान तथा समाधि आत्म-ज्ञान के लिए हैं। महर्षि पतंजलि ने अनेक तरीके से योग को विस्तारित कर मानवीय अस्तित्व के विविध स्तरीय आयामों को इसमें समाविष्ट किया था। मन पर नियंत्रण करने की बात उसमें मुख्य रूप से परिलक्षित है। हालांकि अष्टांग योग की संरचना सुव्यवस्थित ढांचे से की गई है, जो किसी भी विज्ञान का मूल आधार माना जाता है। चुनौतियों के बावजूद शोधकर्ताओं ने अब वैज्ञानिक वस्तुनिष्ठ प्रमाण एकत्रित करना शुरु कर दिया है जो योग की सार्थकता को प्रमाणित कर सकें।

मुंगेर में बना योग विद्यालय

स्वामी शिवानंद एक ऐसे संत हुए जिन्होंने यह बताया कि निष्काम कर्मयोग का संपादन स्वास्थ्य के बिना मुमकिन नहीं है। वे पेशे से FRCS चिकित्सक थे। उस दौर में बहुत कम लोग FRCS होते थे। इसके वाबजूद योग का मार्ग अपनाया। स्वामी शिवानंद के शिष्य परमहंस सत्यानंद सरस्वती ने बिहार के मुंगेर में बिहार योग विद्यालय की स्थापना की। उसके बाद योग के संदर्भ में अनेक शोध हुए। लोनावाला में स्वामी कुवल्यानंद ने अनेक शोध किए। आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों के द्वारा आसन, प्राणायाम, मुद्रा बंध और षट्कर्मों का अध्ययन किया।

हृदय रोग पर योग का पहला प्रयोग

1968 में योग पर पहला अनुसंधान पटना में हृदय रोग पर हुआ। पटना मेडिकल कालेज के कॉर्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ श्रीनिवास ने हृदय रोग पर योग के प्रभाव का अध्ययन किया। यह पाया गया कि हृदय रोग में योग काफी प्रभावकारी है। शोध के नतीजे में यह सामने आया कि हृदय रोग और हृदयाघात के परिणामों को किस प्रकार नियंत्रित किया जा सकता है। स्वामी सत्यानंद सरस्वती के निर्देश पर एक हजार मरीजों को पवनमुक्तासन के अभ्यास, नाड़ीशोधन प्राणायाम और योगनिद्रा कराए गए। इन मरीजों को एक माह के योगाभ्यास से जितना लाभ हुआ, उतना एक साल की दवाओं से नहीं हुआ। इसके बाद अमेरिका के प्रसिद्ध डॉ. डी. ऑर्निश ने भी यह दावा किया कि योगाभ्यास से बाई पास सर्जरी तथा एन्जियोप्लास्टी की आवश्यकता नहीं रह जाती है। 2000 तक में तो अमेरिका और अन्य पाश्चात्य देशों के चिकित्सकों ने योग को एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में अपनाया।

योग एक सशक्त उपचार

स्वामी सत्यानंद सरस्वती के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी परमहंस निरंजनानंद सरस्वती के अनुसार-70 के दशक में मधुमेह पर उड़ीसा सरकार के स्वास्थ्य सेवाओं के डायरेक्टर डॉ. एन. सी. पंडा ने अपने शोध में पाया कि इन्सुलीन पर निर्भर न रहनेवाले मधुमेह रोगियों का मधुमेह चालीस दिनों में ठीक किया जा सकता है। स्वामी शंकर देवानंद सरस्वती के अनुसार शंख प्रक्षालन के साथ पवनमुक्तासन, नाड़ीशोधन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, नेति, शिथलीकरण प्रथम सप्ताह, दूसरे सप्ताह नाड़ीशोधन प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम, नेति और कुंजल, योगनिद्रा, अजपाजप कराया जाता है। तीसरे सप्ताह सूर्यनमस्कार, बज्रासन समूह के आसन, शंख प्रक्षालन, कुंजल, योगनिद्रा तथा अजपाजप का अभ्यास कराया गया। अंतिम सप्ताह में सूर्यनमस्कार 12 चक्र, सर्वांग आसन, हलासन, मत्स्यासन, पश्चिमोत्तानासन, अर्ध मत्सयेन्द्रासन, मयूरासन, भुजगासन, गोमुख आसन का अभ्यास के साथ प्राणायाम, नेति, कुंजल शंख प्रक्षालन का अभ्यास कराया जाता है। चालीस दिन के अंतराल में ये मरीज ठीक पाए गए। इसी तरह दमा पर किए गए परीक्षणों से यह स्पष्ट हुआ कि श्वांस लेने की क्षमता बढ़ी। वेन्टोलिन चैलेंज टेस्ट में यह साबित हुआ कि दमा का योग एक सशक्त उपचार है। शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि योग से होमियोस्टेसिस सेट पोइंट रीसेट होता है।

असंतुलन दूर करे योग

मानव शरीर बेहतरीन तरीके से समन्वय के साथ काम करता है। बाहरी परिस्थिति में कुछ हद तक होने वाले परिवर्तनों के समायोजन के साथ, प्रत्येक कोशिका प्रसामान्यता की रेंज के अंदर कार्य करती है। कुछ ऊतकों में समायोजन की क्षमता कम होती है, तो कुछ में ज्यादा। शरीर के अंदर कुछ कार्य जैसे हार्मोन स्राव के दौरान दो विविध कार्यक्षमताओ वाले ऊतकों के बीच ‘फीडबैक‘ पैदा होता है। कोशिकाओ के बेहतर कार्यान्वयन और स्थिरता बनाए रखने के लिए यह फीडबैक अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह प्रक्रिया जो बाहरी बदलाव के बावजूद मानव देह के अंदरूनी पारिस्थिकी में स्थिरता और स्थायित्व बनाए रखे, उसे ‘होमियोस्टेसिस‘ अथवा ‘समस्थैतिकी‘ कहा जाता है। जीवन शैली में अनियमितता इस प्रक्रिया में असंतुलन ला सकती है। योग साधना के नियमित अभ्यास से इसे ठीक किया जा सकता है।

तनाव प्रबंधन में सहायक

उच्च रक्तचाप के मरीजों पर मुंबई के केईएम के प्रख्यात चिकित्सक डॉ. के के दॉते ने सत्तर के दशक में नाड़ीशोधन प्राणायाम, शवासन और योगनिद्रा का प्रयोग किया तो पाया कि रक्तचाप को इन अभ्यासों से संतुलित किया जा सकता है। हाल के अनुसंधान से स्पष्ट हुआ है कि स्ट्रेस मैनेजमेंट में योग का महत्वपूर्ण स्थान है। इन दिनों लोग लगातार तनाव के शिकार हो रहे है। योग उनके लिए राहत का मंत्र साबित हो सकता है। मानव शरीर में ‘न्यूरो-एंडोक्राइन सिस्टम‘ में नैसर्गिक रूप से तनाव से लड़ने की क्षमता बनी है। लिहाजा अगर लंबे समय तक अनियंत्रित तनाव बना रहे, तो फिर यह प्रणाली सुस्त हो जाती है। इससे नकारात्मक नतीजे उत्पन्न होते है। स्ट्रेस हार्मोन का उत्पादन बढ जाता है, जिसके नतीजे समस्त मानव देह पर देखे जा सकते है। योगाभ्यास दरअसल इस मूल तत्व पर प्रभाव दिखाता है। यह तनाव घटा कर संपूर्ण शरीर और मानस को तनावमुक्त करता है। इस तरह कोशिका के स्तर तक राहत पहुंचाने की क्षमता रखता है योग। इसकी साधना के प्रभाव से तनाव के प्रबंधन में मदद मिलती है।

समाज के हर क्षेत्र का अंग

ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को सुचारू बनाता है। इसके दो प्रमुख भाग होते है: सिंफथेटिक नर्वस सिस्टम तथा पेरा सिंफथेटिक नर्वस सिस्टम। सिंफथेटिक नर्वस सिस्टम का काम फाईट ओर फ्लाईट-यानी लड़ो या भागो प्रतिक्रिया का काम करता है। जबकि पेरेसिंफथेटिक नर्वस सिस्टम का काम मानव शरीर की अंदरूनी प्रतिक्रियाओं को सक्रिय रखना होता है, जैसे नींद के दौरान भी पाचन क्रिया या फिर काम भावना का उत्तेजित होना। ये दोनों ही नर्वस सिस्टम एक-दूसरे की पूरक मानी जाती है, जो शरीर के संतुलन में महत्वपूर्ण होती है। फिर भी जब सिंफथेटिक सिस्टम का अतिशय उपयोग होता है, तब असंतुलन की स्थिति उत्तपन्न होती है। इससे बीमारी पैदा होती है। योग इन दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने में मददगार सिद्ध होता है। इससे समग्र स्वास्थ्य में सुधार देखा जा सकता है। स्वामी निरंजनानंद सरस्वती बताते हैं कि योग पर शारीरिक शोध नहीं, मानसिक शोध हुए हैं। 1980 में सेन क्वैंन्टिजन प्रिजन में मुझे कैदियों को योग सिखाने के लिए आमंत्रित किया गया। तीन माह के अभ्यास के बाद कैदियों के जीवन में परिवर्तन हुआ। इसके बाद से प्रिजन आश्रम प्रोजेक्ट वहां की सरकार ने चलाया। कैलिफोर्निया के सभी मानसिक अस्पतालों में योग की शिक्षा दी जाती है। योग महज प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के हर क्षेत्र का अंग बन गया है।

‘ऊँ‘ के उच्चारण से भी लाभ

‘ऊँ‘ के उच्चारण को लोग सिर्फ धार्मिक नजरिए से देखते हैं, लेकिन इसका चिकित्सकीय और वैज्ञानिक पक्ष भी है। इस संदर्भ में परमहंस निरंजनानंद सरस्वती का कहना है कि 1979 में स्पेन में ऑपरेशन पूर्व विचलित तथा भयग्रस्त मरीजो को ‘ऊँ‘ का उच्चारण कराना आरंभ किया। उच्चारण के दौरान उनके ईईजी को देखने के लिए मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड लगे रहते थे। जब हम विचलित होते हैं, भयभीत होते हैं तो उस समय बीटा की आवृति तेज रहती है। लेकिन ‘ऊँ‘ के उच्चारण से बीटा की उत्तेजना कम हो गयी और अल्फा की प्रधानता हो गयी। नतीजतन, स्नायविक तनाव दूर हो गए। स्पेन में लोगों को यह जानकारी नहीं थी कि ‘ऊँ ‘ किसी धर्म या विज्ञान या किसी विद्या का हिस्सा है। वे ऑपरेशन पूर्व मात्र स्नायु संस्थान को शांत करने के लिए, अपनी विचलित अवस्था को दूर करने के लिए सत्ताइस बार ‘ऊँ‘ का उच्चारण करते हैं।

योग का प्रभाव सकारात्मक

मुंगेर सदर अस्पताल में काफी पहले डॉ. यूपी सिंह और डॉ. विभा सिंह ने ऑपरेशन पूर्व ‘ऊँ‘ का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम का प्रयोग किया। पाया गया कि सामान्य रूप से ईथर के एक सिलेण्डर में छह मरीजों को ईथर दे सकते हैं। इस प्रयोग के बाद एक सिलेण्डर का इस्तेमाल दस-बारह लोगों पर किया जा सकता है। जाहिर है कि भ्रामरी प्राणायाम से स्नायु संस्थान और मस्तिष्क विश्रांत होता है। इस तरह जीवन के अनेक पहलुओं पर योग का सूक्षम प्रभाव देखा जा सकता है। ये तमाम लाभ उस व्यक्ति द्वारा अनुभव किए जा सकते है जो योगाभ्यास करता हो, परंतु वैज्ञानिक मापदंड से इसे मापा नहीं जा सकता। अंतरमन की शांति, संतोष, सुख और आत्म चेतना-कुछ ऐसे पहलू है जिस पर योग का सकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है। ये तमाम अनुभव केवल स्वस्थ जीवन की बुनियाद नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए भी लाभदायक होते हैं जो जीवन के अंतिम पडाव में (कैंसर या अन्य जानलेवा बीमारी से ग्रस्त) सांसे गिन रहे हो। कारण है कि उन्हें कुछ सकारात्मक धुरी मिल जाती है। शरीर पर गुणात्मक परिणाम के मद्देनजर, ये कुछ प्रत्यक्ष रूप से दिखने वाले योगाभ्यास के नतीजे है।

शरीर को भी आराम का अनुभव

बेहतर ऑक्सीजन आपूर्ति, पाचन प्रणाली का बेहतर बनना, जहरीले (टॉक्सिक) पदार्थ की उत्पत्ति का कम होना, रोग निरोधक प्रणाली (इम्यून सिस्टम) बेहतर बनना, न्यूरो-मस्क्यूलर (नसों और मांसपेशियों के बीच) बेहतर समन्वय, बेहतर हारमोन संतुलन परिणाम योग से मिलते हैं। यह भी साबित हुआ है कि योग सिद्धांतों के बल पर-आरामदायक देह, शांत और स्थायी श्वास और प्रसन्न चित्त-इन सबका अनुभव प्राप्त किया जा सकता है।

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