स्वस्थ भारत मीडिया
चिंतन मन की बात / Mind Matter

यह आकाश, बीमार तन और मजबूर मजदूर…

मजदूरों की मूल समस्या को रेखांकित कर रहे हैं स्वस्थ भारत के विधि सलाहकार एवं स्तंभकार अमित त्यागी

नई दिल्ली/ एसबीएम

वरिष्ठ स्तंभकार व स्वस्थ भारत (न्यास) के विधि सलाहकार

हिंदुस्तान में भारत और इंडिया के फर्क को कोरोना काल ने साफ तौर पर दिखा दिया है। कोरोना के कारण लॉकडाउन क्या हुआ। मजदूरों की कर्मभूमि ‘शहर’ उनको आसरा भी न दे सकी। उसके दम पर दंभ भरने वाले मालिक उसे खाना न खिला सके। गाँव छोड़कर शहर को आबाद करने वाला मजदूर लाचार, बेबस और अंधकारमय भविष्य के साथ सड़कों पर पैदल ही अपने घर की तरफ निकल पड़ा। लगभग दो महीने पूरे होने के बाद कोरोना काल ने भारत की श्रम शक्ति की असलियत उजागर कर दी है।
विकास मॉडल बदलना होगा
यह कैसा विकास का मॉडल है, जहां ऊंची अट्टालिकाओं और 8 लेन सड़कों के बीच भी मजदूर अपने बच्चों के साथ लाचार हालत में पैदल चले जा रहा है। इन 8 लेन सड़कों पर फर्राटा मारने वाले लोग तो ऊंची अट्टालिकाओं के अपने घर में टीवी के सामने बैठे कोरोना पर बेबसी जता रहे हैं किन्तु इस खोखले विकास को अपने पसीने से सींचने वाला मजदूर वापस उसी गांव जाने को प्रयासरत है जहां से सपने सज़ा कर वह शहर आया था।
मनमानी का दौर
भारत में किसी भी बड़े एवं अहम व्यक्ति को कोरोना नहीं हुआ है। सब अपने घरों में दुबक गए हैं। हालांकि, यह सकारात्मक पक्ष है किन्तु लॉकडाउन में भी सड़कों पर बेधड़क चलते वाहन, उसमे जानवरों की तरह भर कर जाते मजदूर, मनमाने दाम वसूलते वाहन स्वामी और राज्य सरकारों द्वारा अपने नागरिकों को न संभाल पाना मन को झकझोर देता है।
केन्द्र सरकार भी कम दोषी नहीं है
केंद्र सरकार भी मजदूरों की हालत के लिए कम दोषी नहीं है। तीसरे लॉकडाउन में जब मजदूरों को ट्रेन के माध्यम से उनके घर भेजा जा रहा है तो यह काम तो पहले लॉकडाउन में भी हो सकता था। 25 मार्च वाला लॉकडाउन 5 दिन बढ़ाकर 30 से भी किया जा सकता था और तब इन मजदूरों को अपने घर जाने का रास्ता भी दिया जा सकता था।
ये मजदूर इस बात की आस लगाए थे कि उन्हे बस किसी तरह 21 दिन काटने हैं। इसके बाद वह अपने काम पर लौंट जाएंगे। किन्तु दो महीने बाद यह भारत लाचार सड़क पर खड़ा है और विदेशों से करोना का वाइरस लाने वाले इंडिया की करतूतों के आगे बेबस है।
सवाल मजदूरों के भविष्य का है
केंद्र और राज्य सरकारें मजदूरों के लिए कई तरह की व्यवस्था कर रही हैं किन्तु अब समय इस बात के चिंतन का है कि भविष्य के भारत में मजदूरों का भविष्य क्या होगा?  यदि आंकड़ों की बात करें तो पूरे विश्व की जनसंख्या में भारत की जनसंख्या का प्रतिशत 16.5% है। भारत की श्रम शक्ति दो प्रकार के क्षेत्रों मे बांटी जाती है। एक संगठित क्षेत्र और एक असंगठित क्षेत्र। भारत के कुल श्रम बल का 93% हिस्सा असंगठित क्षेत्र से है।
जीडीपी में 60 फीसद का भागीदार
भारत की जीडीपी मे असंगठित क्षेत्र का योगदान लगभग 60 प्रतिशत है। इसमे से 20% हिस्सा भारत में बीमार रहता है। यानि कि असंगठित क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं कम नहीं हैं। दस्त, टीबी, सांस के रोग, कीटाणुओं/संक्रमणों से होने वाली बीमारियां, कुपोषण, मधुमेह और हृदय रोगों जैसी बीमारियों का एक बड़ा हिस्सा भारत में हैं। संगठित क्षेत्र मे कार्यरत मजदूर कौशल के साथ-साथ बेहतर स्तर प्राप्त कर लेते हैं किन्तु असंगठित क्षेत्र मे कार्यरत मजदूर कौशल होने के बावजूद पूरे जीवन में सिर्फ बेहतर स्तर प्राप्त करने हेतु संघर्ष करते रहते हैं।
इधर भी ध्यान देने की है जरूरत
एक और बात विचारयोग्य है कि असंगठित क्षेत्र के लोग उन क्षेत्रों में अधिक निवास करते हैं जो औद्योगिक इकाइयों से दूर है। इसमें से अधिकतर पूर्णत: शहरी क्षेत्र नहीं हैं। 12वीं पंचवर्षीय योजना में शहरी आवास की कमी पर तकनीकी ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार शहरी इलाकों में 1.88 करोड़ और ग्रामीण इलाकों में 4.37 करोड़ इकाइयों का अभाव है। गांवों में निवास करने वाली जनता जो बीपीएल से संबन्धित है उनके लोगों के लिए यह कमी 3.93 करोड़ इकाइयों की है। ये आंकड़े बताते हैं कि असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए आवास एक बड़ी समस्या है।
आसान नहीं है आगे की राह
कोरोना काल ने उनके संघर्ष की हक़ीक़त तो दुनिया के सामने उजागर ही कर दी है। किन्तु कोई समाधान अभी सामने नहीं आया है। अब जब यह मजदूर अपने गांव पहुचेंगे तो वहां भी हालात इनके लिए सामान्य नहीं होंगे।
मजदूरों का यह तबका है लाचार

  • छोटे और सीमांत किसान
  • चमड़े के कारीगर, भूमिहीन खेतिहर मजदूर
  • हिस्सा साझा करने वाले कृषक, बीड़ी बनाने वाले
  • ईंट भट्टों और पत्थर खदानों में जुड़े लोग
  • निर्माण और आधारभूत संरचनाओं में कार्यरत श्रमिक
  • बुनकर, मछुआरे, पशुपालक, नमक मजदूर
  • तेल मिलों आदि में कार्यरत श्रमिक
  • प्रवासी मजदूर, संविदा (अनुबंधी) खेतिहर मजदूर,
  • दैनिक मजदूर, सिर पर भार ढोने वाले,
  • ताड़ी बनाने वाले, सफाईकर्मी, पशु चालित वाहन वाले श्रमिक
  • नाई, सब्जी और फल विक्रेता, न्यूज पेपर विक्रेता,
  • घरेलू कामगार, मछुआरे और महिलाएं

सबको साथ आगे बढ़ना होगा
अब भारत के पुनर्निमाण के लिए इनके अस्तित्व की चिंता आज पहली आवश्यकता है। 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज के द्वारा अर्थव्यवस्था को संभालने के साथ ही मजदूरों को अगर अनाज और रोज़मर्रा के खर्चे के लिए थोड़ा सा धन भी अगर उपलब्ध करा दिया गया तो यह भारत फिर से उठ खड़ा होगा।

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