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यूक्रेन-रूस युद्ध: एक भारतीय की ओर से ‘शांति से संवाद’

प्रिय,
राष्ट्रपति पुतिन जी, राष्ट्रपति जेलेंश्कि और दुनिया के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष महोदय!

महात्मा बुद्ध एवं महात्मा गांधी की जन्म स्थली भारत से मैं आप सब का अभिवादन करता हूं! आप सबको यह पत्र शांति से संवाद के लिए लिख रहा हूं।
1.मानव जब-जब युद्ध करता है, हानि मानवता की होती है। युद्ध कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं रहा है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में जिस तरह से रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है, उससे मैं बहुत व्यथित हूं। यह व्यथा इसलिए भी है कि 21वीं सदी का मानव, कहने को तो खुद को बहुत बुद्धिमान समझता है लेकिन आज भी ‘युद्ध’ जैसे अमानवीय शब्द को अपनी जीवन-पद्धति के शब्दकोश से बाहर नहीं निकाल पाया है।
2. मैं भारत का नागरिक हूं। हमारा देश ‘बसुधैव कुटुंबकम’ यानी समस्त विश्व अपना परिवार के मूल जीवन-सूत्र को मानता है। इस नाते यूक्रेन में मारे जा रहे निर्दोष मानव भी हमारे मानवीय भाई है। मानवों का मानवों के द्वारा इस तरह से मारे जाने की इस घटना ने मुझे बहुत विचलित कर दिया है। मुझे नहीं मालूम है कि रूस-यूक्रेन के बीच में किन मूल बातों को लेकर यह युद्ध हो रहा है, लेकिन यह जरूर मालूम है कि इस युद्ध और इस तरह के तमाम युद्ध मानवीयता पर एक गहरा प्रश्न-चिन्ह खड़ा करते रहे हैं।
3. भारत महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर से लेकर महात्मा गांधी के बताए शांति-सद्भाव-सदाचार-सौहार्द और सादगी के मार्ग पर चलने वाला राष्ट्र है। इन तमाम मानवीय भावों को हम भारतीय पूरी तरह आत्मसात किए हुए हैं। यहीं कारण है कि हमारा दिल दुनिया के किसी भी कोने में हो रही हिंसा से तड़प उठता है।
4. इसी तड़प ने आज राष्ट्रपति पुतिन, राष्ट्रपति जेलेंश्की सहित दुनिया के तमाम बड़े नेताओं को संयुक्त रूप से यह पत्र लिखने पर मजबूर किया है। दुनिया के तमाम नेताओं से मेरा प्रश्न है कि इस तरह के युद्धों से आपको क्या प्राप्त हो जाएगा? क्या युद्ध से शांति संभव है? क्या हिंसा से सद्भाव बनाएं जा सकते हैं? निश्चित रूप से आप भी जानते हैं कि इसका उत्तर ना ही है। फिर भी आप सभी अपनी-अपनी शक्तियों के प्रदर्शन से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं…जो शक्ति निर्दोषांे को मार रही हो…क्या उसे सही मायने में शक्ति-शाली कहा जा सकता है? शायद नहीं!
5. हमें याद रखना होगा कि अगर कोई शक्तिशाली है तो वह है प्रकृति! प्रकृति के आगे किसी की भी शक्ति सिवाय एक भ्रम के कुछ और नहीं है। मानव की महत्वाकांक्षाओं का हद से बढ़ जाना युद्ध जैसी स्थिति पैदा करता है। और यह स्थिति मानवीय जीवन को नारकीय बना देती है। इस स्थिति से बचना बहुत जरूरी है।
6. मैं राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति जेलेंश्की सहित दुनिया के तमाम राष्ट्राध्यक्षों से विनम्र आग्रह करता हूं कि वैश्विक-शांति के लिए सभी लोग आगे आएं। राष्ट्रपति पुतिन से विशेष आग्रह है कि आप युद्ध-नीति को छोड़कर संवाद-नीति के माध्यम से शांति-सद्भाव-सौहार्द का माहौल बनाने में आगे आएं। ‘शांति से संवाद’ के रास्ते चलकर ही हम मानवता की रक्षा कर पाएंगे। ‘युद्ध’ और ‘संवाद’ में हमेशा से जीत ‘संवाद’ की ही हुई है। वैसे भी ‘युद्ध’ अपने आप में एक हारा हुआ शब्द है। जब-जब ‘युद्ध’ होता है कुछ-एक लोगों की महत्वाकांक्षाएं बेशक जीतती हो, लेकिन हार मानवता की होती है।
7. हमें उम्मीद है कि भारत के एक नागरिक द्वारा प्रेषित इस शांति-पत्र को दुनिया के तमाम लोग जो शांति-सद्भाव-सौहार्द के मूल जीवन-मंत्र में विश्वास रखते हैं, दुनिया के तमाम राष्ट्राध्यक्षों तक पहुंचाने में मदद करेंगे।

सादर!

आशुतोष कुमार सिंह
एक नागरिक, भारत

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