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क्यों आसान नहीं है प्रवासी कामगारों की घर-वापसी?

केन्द्र सरकार ने गाइडलाइन जारी कर दिया है। अब प्रवासी  कामगारों को उनके घरों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। लेकिन घर पहुंचाने की यह प्रक्रिया आसान  नहींं है। घर-वापसी में अभी भी बहुत सी रूकावटे हैं। इन तमाम मसलों पर विस्तृत रिपोर्ट लेकर आए हैं वरिष्ठ पत्रकार अजय वर्मा

 
नई दिल्ली। एसबीएम विशेष
लॉकडाउन लागू होते ही रोजगार छिन जाने और रोटी के संकट को देखते हुए सभी राज्यों में फैले प्रवासी मजदूरों, छात्रों, पर्यटकों और श्रद्धालुओं में अपने—अपने गृह राज्य जाने की बेचैनी बढ़ गई थी। दिल्ली सीमा पर रातोरात जुटी भीड़, बांद्रा में उपद्रव और गुजरात में तोड़फोड़ समेत अब तक कई मामले आ चुके हैं। हिंदी पट्टी में यूपी समेत कुछ राज्यों ने तो खुद पहल कर अपने नागरिकों को बुलाने की तैयारी की तो बिहार समेत कई राज्य केंद्र से साफ दिशा-निर्देश मांगने लगे। सबको  प्रवासी कामगारों से कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा महसूस हो रहा था। लेकिन अब केंद्र ने गाइडलाइन जारी कर प्रवासियों के लौटने का रास्ता साफ कर दिया है। बिहार के प्रवासी लौटेंगे तो यहां फंसे बाहर के प्रवासियों को भी भेजने की व्यवस्था करनी होगी। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है।

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बिहार की भूमिका
पिछले 36 दिनों की घटनाओं और प्रवासियों की पीड़ा से पूरा देश परिचित रहा है। लेकिन नई गाइडलाइन के लिए नि​श्चित तौर पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार की भूमिका महती रही जिन्होंने कोटा में फंसे छात्रों की वापस बुलाने की संवेदनात्मक बातों को भी लॉकडाउन की मर्यादा के खिलाफ बताकर गेंद केंद्र के पाले में फेंक दिया था। मुख्यमंत्रियों के साथ हाल की वीडियो कांफ्रेंसिंग में भी उन्होंने यह मामला उठाया। अब केंद्र ने रास्ता बनाया है तो नीतीश ने पीएम को साधुवाद का संदेश भी भेज दिया। बिहार में आसन्न विधानसभा चुनाव में शायद वे इसका फायदा भी उठा सकें।
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क्या कहती है गाइड लाइन
जय—जय करने के पहले गाइडलाइन के गूढ़ार्थ को समझना होगा क्योंकि अब भी कुछ बातें साफ नहीं है। बड़ी बात तो यह कि यह सब 4 मई से लागू होगा। दूजे केंद्र ने फंसे लोगों को आने-जाने की अनुमति नहीं दी है, बल्कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को लाने और ले जाने का काम करना होगा। इसका मतलब है कि आप अगर कहीं फंसे हैं तो आप खुद से घर जाने की व्यवस्था नहीं कर सकते। आपको अपने राज्य की ओर से भेजी जाने वाली बसों का इंतजार करना होगा। सिर्फ सड़क मार्ग के उपयोग की अनुमति है। आवागमन के लिए ट्रेनों का संचालन नहीं होगा। यानी ऐसे लोग सिर्फ और सिर्फ बस और वो भी सिर्फ प्रदेश सरकारों की तरफ से इंतजाम किए गए बसों पर ही निर्भर होंगे।
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इन प्रक्रियाओं को ध्यान से पढ़िए और समझिए
नये नियमों के तहत प्रवासियों को लोकल नोडल अथॉरिटी का पता कर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। यह राज्य सरकार ही तैनात करेगी। उनके स्वास्थ्य की जांच होगी और अगर कोरोना के संक्रमण से होने वाली बीमारी के कोई लक्षण नहीं हैं, तभी घर जाने की अनुमति मिलेगी। स्वास्थ्य सही है, इसकी जांच तब होगी जब आप अपना रजिस्ट्रेशन करवाएंगे। उनको इतनी प्रक्रिया से गुजरने के बाद अपने प्रदेश सरकार या जहां हैं, उनकी ओर से भेजी गई बस में बिठाया जाएगा। बस में भी सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना होगा। यानी, दूसरे व्यक्ति से दूर बैठना होगा और यात्रा के दौरान किसी से घुलना-मिलना नहीं होगा। घर पहुंचते ही जब प्रवासी बस से उतरेंगे तो फिर स्वास्थ्य जांच होगी। अगर सब ठीक-ठाक रहा तो आपसे कहा जाएगा कि कुछ दिनों तक होम क्वारंटीन में रहें। आपको घर में ही रहने की अनुमति होगी लेकिन परिवार के सदस्यों से दूरी बनाकर। अगर गड़बड़ी पाई गई तो आपको वहीं से सीधे अस्पताल या अन्य स्वास्थ्य केंद्र भेज दिया जाएगा। आपकी समय-समय पर जांच होती रहेगी।
कब तक होगी घर वापसी?
इस बारे में भी राज्य सरकारों को ही आपस में तय करना होगा। ऐसा ही दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने गाइडलाइन जारी होने के बाद कहा है। नीतीश कुमार ने भी कोई समय सीमा नहीं दे दी है। बिहार की ही बात करें तों दिल्ली, हरयाणा, गुजरात, मुबई, कर्नाटक, एमपी, यूपी आदि सूबों में 20 से 22 लाख प्रवासी फंसे हैं। बिहार में भी विभिन्न राज्यों के फंसे प्रवासियों को भेजने की व्यवस्था करनी होगी। बसों की व्यवस्था होगी। वापसी का प्रोग्राम तय कर प्रचार करना होगा। इसके लिए खर्च भी फिलहाल राज्यों को ही करना होगा। काम लंबा है, समय लगेगा ही। लंबी दूरी की बसें निकलेंगी तो कहीं रुकेंगी या नहीं, सवार प्रवासियों को खाना—पानी कैसे मिलेगा जैसे कई मसले सुलझा कर ही इसे अंजाम दिया जा सकता है। जिनके पास अपने वाहन हैं वो उससे जा सकते हैं या नहीं, यह भी अनिर्णीत है। जाहिर है, तमाम इंतजामात करने में वक्त लगेगा ही।
बिहार ने फंसाया लोचा
इस मामले में उड़ीसा ने अपने प्रवासियों का डाटाबेस निकाल कर तैयारी शुरु कर दी लेकिन बिहार सरकार की ओर से ही लोचा आ गया है। सीएम ने तो इस फैसले पर पीएम को साधुवाद दे दिया लेकिन डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने हाथ खड़े कर दिये। उन्होंने साफ कह दिया कि प्रवासियों को लाने में एक लाख बसों का इंतजाम करना होगा जिसमें बिहार सक्षम नहीं है। यहां प्रवासियों का कोई डाटा भी नहीं है। इसके अलावा अन्य तकनीकी पेच सुलझाने होंगे, कई मसले क्लीयर करने होंगे।

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