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प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में कोरोना से जीतेगा भारत…

वैश्विक स्तर पर कोरोना ने जिस तरह से कहर बरबाया है उसके मुकाबले भारत की स्थिति बेहतर है। इसका श्रेय जाता है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को। उनकी सक्रियता एवं त्वरित निर्णय को कोरोना से लड़ने में सहायक बता रही हैं लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी

 
नई दिल्ली/15 अप्रैल
इस मुश्किल समय में जबकि सारी दुनिया एक शत्रु से जूझ रही है, राष्ट्राध्यक्षों की परस्पर तुलना नहीं जानी चाहिए फिर भी एक भारतीय होने के  नाते यह गौरवबोध अवश्य है कि अपने त्वरित निर्णयों की बदौलत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक प्रखर और अग्रिम पंक्ति पर खड़े होकर नेतृत्व देने वाले नायक के रूप में हमारे सामने आते हैं। यूरोप में मृत्यु का नृत्य सभी देख रहे हैं और अब वही वीभत्स नाच अमेरिका में हो रहा है। ऐसे समय में भारत में संक्रमितों की संख्या कम कैसे रह  गई, यह शोध और आश्चर्य का विषय बन गया। हो सकता है आगे कभी पता चले कि भारतीयों के खानपान और जीनवशैली ने उन्हें वुहान वायरस से बचा लिया लेकिन, तय समझिए कि इतिहास मोदी को उनके द्वारा किए गए लॉकडाउन के लिए पूरे नंबर देने वाला है।

आसान नहीं था लॉकडाउन का निर्णय

इतनी विपुल जनसंख्या और और अर्थव्यवस्था वाले देश को एक लंबी अवधि तक बंद करने का निर्णय सरल नहीं था लेकिन, मोदी को कड़े फैसलों के लिए ही जाना जाता है। 24 मार्च को टीवी पर लॉकडाउन की घोषणा करते समय उनके चेहरे की दृढ़ता देशवासियों को यह भरोसा दिला गई कि उनकी पीठ पर न केवल किसी नेता का बल्कि एक प्रधानमंत्री बल्कि घर के बड़े का हाथ है।

लोग याद करने बैठेंगे तो भी याद न कर सकेंगे कि इससे पहले कब किसी नेता की अपील पर दो-दो बार सारा देश एकजुट हो गया था।

प्रधानमंत्री ने कहा तो लोग ताली-थाली बजाने निकल पड़े। प्रधानमंत्री ने कहा तो लोगों ने चैत में दीवाली मना ली। रोंगटे खड़े कर देने वाला ऐसा आहन और उसका ऐसा असर चमत्कार ही कहा जा सकता है। कोरोना से युद्ध के तरीकों के साथ ही इन दो सामूहिक अपीलों ने फिर मोदी को इस देश का एकमात्र नेता सिद्ध कर दिया।

सही समय पर सक्रियता दिखाई प्रधानमंत्री ने

दो सप्ताह में तीन बार देश को संबोधित करना हंसी खेल नहीं होता पर मोदी ने यह कर दिखाया और ऐसे हर मौके पर वह धीरज, संयम और गंभीरता की प्रतिमूर्ति दिखे। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने कोरोना से होने वाली विभीषिका का पूर्वानुमान लगा लिया, विपदा होने की प्रतीक्षा नहीं की बल्कि उसके निदान के लिए योजना बनाई और फिर उसके शीघ्र क्रियान्वयन में जुट गए। जिस समय पूरा देश निश्चिंतता में जी रहा था, उस समय वे कोरोना के संभावित खतरों के विषय में बैठक कर रहे थे, निर्णय ले रहे थे।

एक बात की प्रशंसा करनी होगी और वह है, सरकार की ओर से सक्रिय संवाद। इस पूरे विपदा काल में केंद्र सरकार बहुत चपल दिखी। उसके मंत्री यदि सड़क पर उतरे हुए थे तो कारण मोदी थे।

फरवरी माह से ही मोबाइल फोन एवं अन्य प्रसारण माध्यमों से कोविड 19 की रोकथाम एवं बचने के संदेश और सलाहें प्रसारित होने लगे। स्वयं प्रधानमंत्री ने होली न मनाए जाने का निर्णय लेते हुए हुए सभी को सोशल डिस्टेनसिंग का पालन करने का संदेश दिया। इस बात को सभी समझते हैं कि भारत की सामाजिक संरचना ऐसी है जहां लोग सामूहिकता में जीते हैं, एक साथ रहते हैं और आमतौर पर नियम नहीं मानते। लोगों की आदत नियम तोडऩे की होती है। सबके घर परिवार दुकान सब निकट होते हैं। ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग या शारीरिक दूरी का पालन करना आसान नहीं लेकिन, फिर भी संदेश लोगो ने पूरे मन से इस देश भर में अपनाया।

शारीरिक दूरी का महामंत्र को जनता ने आत्मसात किया

यह आसान नहीं था किंतु जिस प्रकार जागरूक जनता ने सोशल डिस्टेंसिंग या शारीरिक दूरी के महामंत्र को आत्मसात किया, वह अपने आप में अद्भुत है। भारतवर्ष पहला देश था जिसने विदेश यात्राओं पर रोक लगा दी थी। जनवरी के अंतिम सप्ताह में ही हवाई अड्डों पर चेकिंग प्रारंभ हो गई थी। जनवरी में ही मेरे एक परिचित अमेरिका से भारत आए हुए थे। उन्होंने बताया कि वापसी के समय उनकी इतनी जबरदस्त चेकिंग की गई कि वह चिंतित हो उठे कि लौट भी पाएंगे अथवा नहीं। उन्होंने बताया कि अमेरिका में जब वे हवाई अड्डे पर उतरे तो कोई भी जांच या पूछताछ नहीं की जा रही थी और अब पूरा विश्व देख रहा है कि अमेरिका की इस प्रकार की लापरवाही उसे कितनी भारी पड़ी है।

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मुझे याद है कि मैं फरवरी माह में जबलपुर एक कार्यक्रम देने के लिए गई तो वहां पर हवाई अड्डे पर जब मेरी स्वास्थ्य जांच हुई तो मुझे और मेरे साथी कलाकारों को बहुत ही सुखद आश्चर्य हुआ कि सरकार कोरोना महामारी को कितनी गंभीरता से ले रही है। विगत एक डेढ़ महीने में विदेशों से लौटने वाले भारतीयों की यात्रा इतिहास आदि का विवरण पता कर पुलिस उनके घर पहुंची और उनको चौदह दिनों के लिए क्वॉरेंटाइन कर दिया।

प्रधानमंत्री के साथ खड़ी है देश की जनता

प्रधानमंत्री की प्रशंसा करनी होगी कि जिस तरह से विदेशों में जितने भी भारतीय थे, जिन देशों में भी थे उन्हें किस प्रकार सुरक्षित स्वदेश वापस लाया गया। दो दिन बाद ही प्रधानमंत्री ने 21 दिनों के लिए लॉकडाउन की घोषणा की और फिर, इस देश ने अभूतपूर्व एकजुटता का परिचय देते हुए इस निर्णय में प्रधानमंत्री को समर्थन दिया। पूरा देश ठहर गया, सभी स्थिर हो गए। भारत को सुरक्षित रखने के लिए गए इस असाधारण निर्णय में आखिर सभी का हित निहित था। नवरात्र हो या रामनवमी या फिर ईस्टर, बड़े ही शांतिपूर्ण ढंग से जनता ने इसका पालन किया।

 नेता उसी को कहा जाता है जो नेतृत्व करता है एवं आपदकाल में जैसा गंभीर नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश को दिया, वह इतिहास हो गया।

कोरोना काल में भारतवर्ष में लोकतंत्र का स्वरूप उभरकर सामने आया। संघीय ढांचा और निखर गया। प्रधानमंत्री ने हर राज्य के काम की प्रशंसा की और हर राज्य के कामकाज को अलग अलग देखा और अच्छा काम करने वाले राज्यों की प्रशंसा की। गरीब एवं आर्थिक रूप से अशक्त लोगों के लिए देश में आजादी के बाद अब तक का सबसे बड़ा आर्थिक पैकेज घोषित करके उसे लागू भी किया।

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सार्थक संवाद को पीएम ने बनाया हथियार

कोरोना की वजह से असाधारण परिस्थितियों का सामना कर रहे देशवासियों के मनोबल को बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री ने समय-समय पर डॉक्टरों, मेडिकल कर्मियों, स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस व मीडिया और आम जनता का लगातार उत्साह बढ़ाया। विपत्ति काल में देश का चरित्र भी सामने खुलकर आता है, कोरोना से पहले देश कहीं ना कहीं राजनीतिक मतभेदों एवं आरोप-प्रत्यारोप से जूझता नजर आ रहा था लेकिन, अब जिस प्रकार से एक होकर उठ खड़ा हुआ है, यह प्रधानमंत्री के सशक्त नेतृत्व का ही परिणाम है।

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भारत के प्रधानमंत्री नए अवतार में दिखेंगे

बहुत दिन नहीं बीते जब विश्व में भारत की छवि मांगने वालों में थी लेकिन आज वही हमारा देश अमेरिका और यूरोप को दवाओं की आपूर्ति कर रहा है। आफत कितनी भी करे, आखिरकार तो कोरोना चला ही जाएगा लेकिन, अपने पीछे छोड़ जाएगा बदली हुई दुनिया। चीन के प्रति वैश्विक धारणाएं बहुत तेजी से बदली हैं। आने वाले समय में विश्व में नया नेतृत्व उभरेगा, नए समीकरण बनेंगे और तब भारत के प्रधानमंत्री नए अवतार मे दिखेंगे।
 
नोटः यह आलेख दैनिक जागरण से साभार लिया गया है।

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