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कोरोना से भयभीत न हों भयावहता को समझें

कोरोना को लेकर फैले अफवाहों से दूर रहने एवं गाइडलाइन का पालन करने का सलाह दे रही हैं वरिष्ठ साहित्यकार एवं समाजसेवी डॉ अन्नपूर्णा बाजपेयी

देश में कोरोना के मामलों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। देश में कोरोना के कुल मामलों की तादाद 21 हजार से ज्यादा पहुंच गई है। इसके साथ ही देश में कोरोना से अब तक 750 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 4000 से ज्यादा लोग ठीक भी हो चुके हैं।
लॉकडाउन के 21 दिन समाप्त होने का पूरे देश को इंतजार था। लेकिन फिर अचानक कोरोना संक्रमित पता नहीं कहां से निकलने लगे। जैसे घरों में दुबके बैठे हुये है जब लॉक डाउन खुलने की सीमा समाप्त होने को होती है तभी फिर से निकल पड़ते हैं। जाने क्यों एक बार में ही सब सामने क्यों नहीं आते? क्यों घबरा रहे हैं? कारण कुछ भी हो कहीं न कहीं लॉक डाउन मध्यम वर्ग में खासकर उनको जो प्राइवेट संस्थानों में नौकरी करते है, और मजदूर वर्ग को अधिक प्रभावित कर रहा है।
कोविड-19 पर भारत-भूटान की हुई बातचीत
डॉ. विश्वरूप राय चौधरी का एक विडियो इन दिनों काफी वायरल हो रहा है वो मोहम्म्द अहमद काज़्मी के साथ चर्चा करते हुये दिख रहे है –“कहते है कि ये जो दौर है इसमें व्यक्ति बीमारी से नहीं मर रहा जितना कि डर से मर रहा है। यदि ये टेस्ट हटा दीजिये कोई मृत्यु नहीं होगी। आगे कहते है कि गुवाहाटी में एक डॉक्टर कि मृत्यु हो गयी केवल कोरोना के डर से। जो खतरनाक किस्म की दवाइयां जिनका जानवरों पर ट्रायल किया जाता था वो आजकल इन्सानों पर किया जा रहा है। ये मौका जब लोगों की जान पर बनी हुयी है तब ये टेस्ट ये दवाइयां सब हिट एंड ट्रायल किया जा रहा है। लोगों को गिनी पिग बना दिया जा रहा है। गरीबो को क्वारंटाइन में डाल कर उन्हे शिकार बनाया जा रहा है। इसकी सत्यता क्या है यह तो हम बाद में समझ पाएंगे। अभी हम सब घरों के अंदर पैक है, लॉकडाउन हैं,सारी यातायात सुविधाएं बंद है हम कहीं आ जा नहीं सकते, केवल फोन और वीडियो कॉल के जरिये ही बात कर रहे हैं अन्यथा हम यह कारण जल्दी ही पकड़ में ला सकते थे। लोग जो मर रहे हैं वो वायरस से नहीं मर रहे हैं वाइरस के खौफ से मर रहे है। सबके दिमागों में यह कीड़ा बैठ गया है कि जैसे ही मैं जाऊंगा डॉक्टर को दिखाऊंगा तुरंत पकड़ा जाऊँगा। और हमारे ऊपर सारे परीक्षण शुरू हो जाएंगे, हमारे शरीर में अजीबो गरीब दवाइयां डालने का सिलसिला शुरू हो जाएगा जिससे हम मर जाएंगे।”
संभवतः ये ही डर सभी मुस्लिमों के अंदर आ गया है कि हमको कोरोना वाइरस से तो खुद को बचाना है ही बल्कि डॉक्टर्स से भी खुद को बचाना पड़ेगा। वरना ये लोग ही हमें मार डालेंगे। मौलाना साद के वचनों को इस बात ने और अधिक हवा दे दी, सोने पर सुहागा हो गया। अब यदि मुस्लिम अपने मौलना के खिलाफ जाते हैं तो वे काफ़िर कहे जाएंगे।
यहाँ मैं किसी मजहब या धर्म गुरु की खिलाफत कतई नहीं कर रही। किन्तु ये कहाँ तक उचित है कि आप बीमारी को छिपाएँ, किसी को बताएं नहीं क्योंकि आपको डर है कि कहीं आपको मार दिया गया या लोग आपको काफ़िर न कहने लगें। इसीलिए आप डॉक्टर्स, नर्सो, पुलिस, मीडिया इत्यादि पर कातिलाना हमला कर रहे हैं।
चाहे वह इंदौर का मामला हो, बिहार हो, मुजफ्फरपुर हो या मुरादाबाद हो। अब महिलाएं भी इसी अंधी दौड़ में शामिल हैं। क्या आप नहीं चाहते कि आप स्वस्थ रहें, आपका परिवार स्वस्थ रहे, आपकी कम्यूनिटी सुरक्षित रहे, देश सुरक्षित रहे। क्या यह देश आपका नहीं ? क्या आप इस देश के बाशिंदे नहीं ? क्या आपने अब तक यहां कोई सुख सुविधा नहीं उठाई? क्या आपने इस धरती में जन्म नहीं लिया? क्या आपको इन्ही डाक्टर्स ने कभी किसी भी बीमारी में आपकी चिकित्सा नहीं की ? क्या आपका इलाज इन डॉक्टर्स के द्वारा नही किया गया? क्या आप अपनी शिकायत लेकर इसी देश की पुलिस के पास नहीं गए ? क्या आपके लिए ये मीडिया कवर नहीं करती ? जिन पर आपको गर्व होना चाहिए था, जिन पर आपको पुष्प बरसाने चाहिए थे उन पर आपने पत्थर बरसा दिये ? उन पर थूक रहे हैं !! शर्मनाक है ये आपका कृत्य !! आपको सोचना होगा ये देश आपका भी है। आप अपनी सोच के चलते पूरे देश का अहित नहीं कर सकते। कहीं न कहीं इस स्थिति में आपके अपने बच्चे, आपके अपने भी कष्ट को झेलेंगे ।
कोविड-19 तीसरे विश्व युद्ध का कारण न बन जाए !
रखिए अपने दिलों पर हाथ और कहिए,मैं गलत कह रही हूँ। फिर आप देश के लिए, अपनों के लिए, अपने लिए खतरा क्यों बन रहे? देश से, देश की सरकार के साथ लड़ने के लिए आपका जिंदा रहना भी तो जरूरी है। जीवित होंगे तभी तो लड़ेंगे। जीवित रहने के लिए उन सभी बातों का मानना बहुत जरूरी है जो सरकार द्वारा, डब्ल्यू एच ओ द्वारा और चिकित्सकों द्वारा बताई जा रही हैं या बताई गयी हैं। वो ही आपके हित में है।
आयुर्वेद ही है कोविड-19 का समाधान
कुछ ऐसी ही मिलती जुलती स्थितियाँ मजदूरों की भी हैं। बिना सोचे समझे किसी की भी बातों में आकर स्टेशनों, बस अड्डों पर भीड़ जमा करना या अपने मन की सुन कर पैदल ही चल देना कोई बुध्द्धिमानी है क्या ? हजारों की संख्या में मुंबई, दिल्ली, नोएडा, गुजरात , सूरत, अहमदाबाद इत्यादि बड़े-बड़े शहरों में काम के लिए गए हुये मजदूर जो इन शहरों में ज़मानों से बसे हुये थे, पलायन कर गए क्योंकि उन्हें यह डर सता रहा था कि ये भयंकर बीमारी हमको लग गयी तो हम मर जायेंगे। हमारे पास पैसा नहीं है कोई घर वाला साथ नहीं है। वो तो आज भी नहीं हैं क्योंकि इन शहरों से भागे हुये मजदूर कहीं न कहीं रोक दिये गए। या जो अपने गांवों तक पहुँच भी गए उन्हे गाँव वालों ने नहीं घुसने दिया जब तक वह पूरी तरह से स्वस्थ घोषित न कर दिये गए।
आइए अब जानते है इसके पीछे का कारण :-

  • वे निर्धन रेखा के नीचे गुजर बसर करने वाले दिहाड़ी मजदूर है जिन्हें अपनी व अपने परिवारों कि चिंता है। उनकी दुनिया बस आज की ही होती है। वे रोज टी वी, रेडियो, समाचार पत्रों, सोशल नेवर्किंग के माध्यम से ये जानकारी पा रहे है महामारी घोषित, अर्थव्यवस्था चरमराई। और तो और रोज कहीं न कहीं संक्रमित मरीज मिलते जा रहे है और उनमें से कुछ मर भी रहे है। मीडिया द्वारा खूब हाइलाइट कर के बताया भी जाता है। जिससे उनके मनों में भय व्याप्त हो गया है कि इस बीमारी का मरीज मरेगा ही।
  • संक्रमित लोगों को यह डर भी सता रहा है कि यदि हमने अपने संक्रमित होने की बात उजागर कर दी तो लोग मुझे कोरोना पॉज़िटिव समझेंगे और मुझे हेय दृष्टि से देखेंगे। जैसा कि हम अभी देख भी रहे हैं कहीं किसी कॉलोनी में कोई कोरोना पॉज़िटिव पाया जाता है वहाँ के लोगों की प्रतिक्रिया कुछ इस तरह से होती है ; “हाय देखो-देखो उस कॉलोनी में पकड़ा गया एक और कोरोना पॉजिटिव ।” जैसे कि वह कोरोना पॉज़िटिव न होकर एक खूंखार मुजरिम हो। जिसे पकड़ा गया है।
  • अधिक दयालुता दिखाना या अधिक सख्त रवैया भी आड़े आ रहा है। दयालुता का भी लोग गलत मतलब निकाल रहे हैं। सख्ती तो है ही सख्त! अगर सख्ती न हो तो स्वयं वो निकलेंगे नहीं और जबरिया ढूंढ कर निकाले जाने पर तमाशे करेंगे।

समझने की जरूरत है, शब्दों का प्रयोग सोच समझ कर किया जाये खासकर आम जनता और मीडिया को ये अवश्य ही समझना होगा कि कोरोना पॉज़िटिव कोई मुजरिम नहीं है जिसके लिए पकड़ा गया जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाये। कल कोई भी पॉज़िटिव हो सकता है, आप भी ! तब सोचिए कैसा महसूस होगा।
Scientists working on anti-COVID-19 drugs using garlic essential oil
समझने की जरूरत है कोरोना संक्रामक बीमारी है जो छूने से फैल रही है, एक दूसरे के संपर्क में आने से फैल रही है। संक्रमित व्यक्ति के द्वारा छिंकने , खाँसने के द्वारा जो सूक्ष्म जल बिन्दु या कण (ड्रापलेट्स) किसी के ऊपर चले जाने से या उन छींटों के किसी वस्तु पर गिरने से वह तुरंत संक्रमण की चपेट में आ जाएगा।
समझने की जरूरत है कि सामान्य व्यक्ति द्वारा उन संक्रमित वस्तुओं को छूये जाने से या संक्रमित व्यक्ति द्वारा सामान्य व्यक्तियों या वस्तुओं को छूये जाने पर तुरंत संक्रमण की चपेट में आ जाएंगे। और ऐसे संक्रमित व्यक्ति जिस-जिस वस्तु , व्यक्ति, जीव, जन्तु को छुएंगे वे उस सबको संक्रमित करते जाएंगे। यहाँ समझना होगा इस बीमारी की भयावहता ।
जैसा कि हम सभी जानते है कि चेचक, खसरा, तपेदिक तथा सामान्य फ्लू में भी संक्रमण का खतरा होता है। यद्यपि इन सभी बीमारियों का वैक्सीन मौजूद है। इसलिए इसको लेकर कोई भयभीत नहीं है। कोरोना की वैक्सीन अभी मिल नहीं पायी है क्योंकि यह हमारे देश में नयी है, चिकित्सक दल, वैज्ञानिक दल लगे हुये हैं ताकि अति शीघ्र वैक्सीन मिल जाये ।
नयी बीमारी है इस कारण हम सभी कहीं न कहीं इसके आंकड़े एकत्र करके उसको जान लेना चाहते है। इसके कारण पूरा दिन टीवी चैनलों पर, अखबारों में, सोशल मीडिया इत्यादि देख-देख कर अपना दिमाग खपा रहे हैं। ये सब भी मानसिक अवसाद का कारण बन रहा है, जो लोग घरों के अंदर बंद है वे पूरा- पूरा दिन टीवी के समक्ष बिता रहे हैं, सब आपस में झगड़े का कारण बन रहा है। मानसिक अवसाद में आप, अपनों पर भड़ास निकाल रहे है। खुद तो तनावग्रस्त हैं ही, अपना तनाव उन्हे दे रहे है। ये है इसकी भयावहता।
डब्ल्यू.एच.ओ द्वारा बताये गये नियमों का पालन करते रहें मुँह और नाक को कवर करके निकलें। इसके लिए सर्जिकल मास्क लगाना कोई जरूरी नहीं है। क्योंकि आप उसकी उतनी सफाई नहीं रख पाएंगे। बार-बार खरीदना मुश्किल होगा इसलिए घर पर बने मास्क का उपयोग करें। कई सारे मास्क बनवा लीजिये। अन्यथा अँगौछा, तौलिया, दुपट्टा, स्टॉल जो जिसको सूट करता है अपने अनुसार लेकर मुँह और नाक को कवर करके निकलें। मास्क के विषय में एक मुख्य बात यह कि यदि लोगों ने मास्क उतार कर उनको तुरंत नष्ट नहीं किया और उनको खुला सड़क पर फेंक दिया, कोई न कोई जानवर भोजन कि अभिलाषा में इस पर मुँह मारेगा और तब परिणाम बेहद घातक होंगे। ये है इसकी भयावहता।
ऐसी दशा में जबकि कोरोना का सुरूर सब पर हावी हो गया है यहाँ जरूरत है कि हम अपना सुरूर कम करें, टीवी कम देखें जितना जरूरी हो उतना ही देखें । जानकारी रखें। बचाव रखें क्योंकि बचाव ही निदान है। भयभीत न हों भयावहता को समझें और लोगों को समझाएँ।

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