चीन एक नई तकनीक के माध्यम से अपने लोगों को कोरोना से बचा रहा है। वरिष्ठ विज्ञान लेखक शशांक द्विवेदी उस तकनीक के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।
नई दिल्ली/ एसबीएम
पूरी दुनिया इस समय कोरोना संकट से जूझ रहीं है, अधिकांश देशों में अभी लॉक डाउन की स्थिति चल रही है लेकिन आश्चर्य की बात है कि चीन के वुहान शहर से जहाँ कोरोना संकट शुरू हुआ था, अब वहां के हालात सामान्य हैं। लॉक डाउन हट गया है और वहां के बाजारों में कारोबारी गतिविधियाँ जारी है। ऐसे समय में जब अभी भी पूरी दुनियां में कोरोना का खौफ बना हुआ है चीन कोरोना संकट से निपटनें में काफी हद तक कामयाब लगता है। पूरी दुनिया खासकर अमेरिका द्वारा चीन के जैविक हथियारों के षड़यंत्र की थ्योरी को थोड़ी देर के लिए अगर दरकिनार कर दे तो यह मानना पड़ेगा कि चीन तकनीक की सहायता से कोरोना वायरस पर काबू पाने में कामयाब रहा है।
चीन ने कोरोना पर निगरानी रखने की एक ऐसी मोबाइल प्रणाली विकसित की, जिसकी नजरों से बचकर निकल पाना कोरोना वायरस के लिए नामुमकिन नहीं, तो बेहद मुश्किल जरूर है। चीन की सरकार ने कोरोना वायरस को रोकने और लोगों की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए रंग आधारित ‘हेल्थ कोड‘ का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
कोरोना से जंग में चीन ने न सिर्फ लॉकडाउन बल्कि टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी बखूबी किया। कल्पना कीजिए कि आपके जीवन की दैनिक गतिविधियां मसलन आप घर से निकलते हैं, काम पर जाते हैं, दोस्तों के साथ रेस्तरां या शॉपिंग मॉल में घुमते हैं, लेकिन आपकी हर गतिविधि मोबाइल के स्क्रीन पर दिखने वाले रंग से तय होती हो। अगर हरा रंग दिखता है, तो कुछ भी करने की आजादी है। लेकिन जैसे ही मोबाइल की स्क्रीन पर लाल रंग नजर आता है, तो कहीं भी आपकी एंट्री बंद कर दी जाती है।
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दरअसल, चीन ने कोरोना पर निगरानी रखने की एक ऐसी मोबाइल प्रणाली विकसित की, जिसकी नजरों से बचकर निकल पाना कोरोना वायरस के लिए नामुमकिन नहीं, तो बेहद मुश्किल जरूर है। चीन की सरकार ने कोरोना वायरस को रोकने और लोगों की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए रंग आधारित ‘हेल्थ कोड’ का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इसके लिए मोबाइल में मौजूद क्यूआर कोड का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह क्यूआर कोड ही चीन के लोगों को हेल्थ कार्ड के रूप में दिया जा रहा है। हालांकि अभी तक पूरे चीन में हेल्थ कोड्स को अनिवार्य नहीं बनाया गया है, लेकिन इस पर तेजी से काम हो रहा है। हेल्थ कोड हासिल करने के लिए लोगों को अपनी निजी जानकारी साझा करनी पड़ती है। नाम, राष्ट्रीय पहचान नंबर, पासपोर्ट नंबर और फोन नंबर को साइन अप पेज पर भरना होता है। फिर उन्हें अपनी पिछली यात्रा के बारे में बताना होता है। इसके साथ ही उनसे 14 दिनों के बारे में पूछा जाता है कि क्या इस दौरान उनका संपर्क कोवड-19 के मरीजों से हुआ है।
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चीन ही एकमात्र ऐसा देश नहीं है, जो इस तरह के क्यूआर कोड का इस्तेमाल कोरोना वायरस से लड़ाई में तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है। सिंगापुर ने भी पिछले महीने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग स्मार्टफोन ऐप लॉन्च किया। इस ऐप के जरिए अधिकारी कोरोना के मरीजों का आसानी से पता लगा सकते हैं। जापान में इसी तरह की तकनीक को लागू करने की योजना पर काम चल रहा है, जबकि रूस ने लोगों की गतिविधियों का पता लगाने के लिए क्यूआर कोड को लागू कर दिया है।
इस कोरोना महामारी से भारत के लिए दो बड़े सबक है पहला कि दुनियां के किसी भी देश पर हमारी व्यवसायिक निर्भरता कम हो, सभी मामलों में हम आत्मनिर्भर बनें और दूसरा स्वदेशी तकनीक पर ज्यादा ध्यान देना। क्योंकि प्रौद्योगिकी और तकनीक के सही प्रयोग से हम कोरोना संकट से काफी हद तक बच सकतें हैं।
फिलहाल अब समय आ गया है जब भारत भी इस तकनीक का प्रयोग शुरू करें क्योंकि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में यह तकनीक काफी उपयोगी हो सकती है,खास बात यह है कि इसका कोई सीधा नुक्सान नहीं है। ऐसे समय में जब केंद्र और राज्य सरकारें लॉक डाउन को हटाने और कारोबारी गतिविधियां शुरू करने पर विचार कर रहीं हैं तब हेल्थ कोड स्कैनिंग तकनीक भारत के लिए जरुरी और उपयोगी साबित हो सकती है। हालांकि भारत सरकार कोरोना से संबंधित डेटा और जानकारी आरोग्य एप के जरिए जुटा रही है लेकिन अगर इसके साथ ही क्यू आर स्कैनिंग तकनीक का इस्तेमाल हो तो काफी अच्छा रहेगा ।
(लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर और टेक्निकल टूडे पत्रिका के संपादक हैं )