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चीनी वायरस के जाल में फंसती दुनिया

चीनी वायरस कोविड 19 के जंजाल से क्या दुनिया बच पाएगी? अपने इस आलेख में बता रहे हैं संतोष पाठक…

 दुनिया चीन के कुकर्मों की सज़ा भुगत रही है? क्या चीन के प्रयोगशाला से निकला यह “वुहान वायरस” अंतरराष्ट्रीय राजनीति और संबंधों के नए समीकरणों की रचना करेगा? इस महामारी के खिलाफ युद्ध में भारत कितना सफल होगा और जो भी परिस्थिति उभरेगी उसमे भारत की भूमिका क्या होगी? ये ऐसे प्रश्न हैं जिन पर अभी से विचार तथा अनुसन्धान शुरू हो गया है और भारत के लोग इस विषय पर गंभीरता से चिंता कर रहे हैं| नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के सरकार में आने के बाद से ही भारत अचानक से दुनिया के राजनितिक व्यवस्था के केंद्र में आ गया था और वर्तमान के कोरोना संक्रमण काल ने भारत की भूमिका को ज्यादा महत्वपूर्ण बना दिया है| लेकिन ये सारी स्थितियां कोरोना के खिलाफ संघर्ष के आतंरिक सफलता पर भी टिकी हुई है| इस विकल्प में हमें सफल होना ही होगा, असफलता कोई विकल्प ही नहीं है|

कोविड-19 निगल चुका है एक लाख से ज्यादा जिंदगियां


इस लेख को लिखते वक़्त दुनिया भर में 1 लाख से ज्यादा मौतें रिपोर्ट की जा चुकी हैं। यूरोप सहित अमेरिका तथा एशिया के महत्वपूर्ण देश इस संक्रमण के गंभीर चपेट में हैं। इसकी रोकथाम एक वृहद चुनौती है। भारत में 7 हजार से ज्यादा मरीज अस्पताल पहुंच चुके हैं, 200 लोग जान गवां चुके हैं और ना जाने कितने अभी अपने इलाकों में छिपे हैं जिनकी पहचान सत्यापित करना असाधारण कार्य है।

गंभीर चुनौती

भारत की चुनौती फिलहाल सबसे बड़ी है, क्योंकि बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार देश के अन्दर से तथा बाहर से अपने-अपने घरों तक पहुंचे हैं और सामाजिक तथा आर्थिक परिवेश की वजह से इलाज़ कराने में सक्षम भी नहीं हैं। केंद्र तथा राज्य की सरकारें फ़िलहाल यह बताने की स्थिति में नहीं हैं की स्थितियां और बिगड़ती हैं, तो उनका इलाज़ कैसे होगा? हालांकि इस मुश्किल की घड़ी में केंद्र सरकार सहित राज्य की सरकारों ने निश्चित ही सराहनीय प्रयास किये हैं, जिसके परिणामस्वरूप असाधारण गति से फैलने वाले इस संक्रामक रोग का विस्तार भारत में अत्यंत धीमी गति से हुआ है।
 

भारत के सामाजिक संस्कार, उसे विकसित बनाते हैं

एक अहम सवाल यह भी है कि क्या भारत महामारी के खिलाफ इस युद्ध में प्रकाश बिंदु बन कर उभर सकता है? इसका उत्तर भारतीय सभ्यता, संस्कृति और इतिहास दे सकती है। हमें इतिहास के रोचक प्रसंगों के साथ यह भी देखना होगा की यूरोपीय देशों सहित अमेरिका तथा चीन से हम अलग देश कैसे हैं? भारत बेशक इन देशों के मुकाबले कम विकसित है और मेडिकल सुविधाएं उनसे कमतर हैं, परन्तु सामजिक संस्कार हमें उन देशों से विलग बनाती हैं। इतना तो तय है की भूतकाल में ऐसे अनेक महामारियाँ आई होंगी। उन संकटों से निपटते हुए आज भारत विश्व का प्राचीनतम् सभ्यता-संस्कृति वाला राष्ट्र बन कर विश्व मानचित्र पर अटल रूप से अंकित है।
 

यूनान, मिस्र, रोमां, सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशां हमारा।
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहां हमारा।

 
भारत का मौलिक चरित्र लोकतान्त्रिक रहा है। राजतंत्रीय व्यवस्था में भी राजाओं का समाज पर पूर्ण नियंत्रण कभी नहीं था और समाज ही शासन का भौतिक आधार रहा था। इस आधार पर हम सामाजिक तौर के दृष्टिकोण से हम पश्चिम के लोकतंत्र से अलग रहे हैं। पश्चिम के जनजागरण के मूल आधार में इंडिविजुअलिज्म यानी व्यक्तिवाद हावी रहा है और इस व्यक्तिवाद को लिबरलिज्म यानी उदारवाद ने पोषित किया है। ये सभी गुण मौलिक रूप से पूँजीवाद, भयंकर औद्योगिक परिवेश को पोषित करते हैं। और इसी वजह से व्यापार के लाभ-हानी पर आधारित समाज को विकसित करते हैं। एक प्रकार से हम ऐसा कह सकते हैं कि व्यक्तिवाद ने पश्चिम के लोगों पर नकारात्मक प्रभाव डाला है और आज वही इस बीमारी से लड़ने में लोगों को असंतुलित बना रहा है। दिखावे की उदारता ने इटली को शमशान बना दिया है। इटली के मिलान शहर के मेयर ने दिखावे को प्रचारित करके लोगों को चीनियों से गले मिलवाया और आज उसका परिणाम इतना घातक हुआ है कि राष्ट्रपति के आंखों में आसूं हैं और वह अपनी बेबसी जाहिर कर चुके हैं। पूर्ण रूप से शिक्षित, विश्व में दूसरे नम्बर की स्वास्थ्य सेवाओं के रहते और वैज्ञानिक तौर तरीकों को आत्मसात कर चुके इटली, स्पेन, अमेरिका, ब्रिटेन इस मानव जनित महामारी के की भयंकर चपेट में आ चुके हैं।
 

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महामारी से लड़ने हेुत आवश्यक संस्कार भारतीय समाज जानता है

भारतीय सभ्यता बहुत प्राचीन है। भारतीय समाज लोकतांत्रिक होने के कारण हमेशा से सामाजिक रहा है। यहां पर आपदाओं से निपटने के लिए हर व्यक्ति सामूहिक प्रयास करता है, परन्तु इस प्रयास का केंद्र-बिंदु स्वयं न होकर परिवार और समाज होता है। भावना ये रहती है कि हमारे किस प्रयास से समाज संक्रमण मुक्त होगा। संक्रमण के किसी काल में हमने उस भावना को नहीं खोया है। चेचक, चिकेन पौक्स यानी माता रानी जैसी असाध्य संक्रामक बीमारियों पर हमने पूर्व में भी सोशल-डीसटेंसिंग के माध्यम से विजय पायी हैं। नीम के पत्तों की मालिश और बिना वस्त्र बदले मरीज़ के कमरे में आना जाना नहीं करना, मेल मिलाप से दूर रहना, इत्यादि सावधानियां हमारे समाज के रोजमर्रा जिंदगी का हिस्सा रह चुके हैं। माताएं, बहने ज्यादा सजग रहती थी और परिवार के सुरक्षा में हर किस्म की सावधानी रखती थी। आज जिस सोशल डीसटेंसिंग की बात चल रही है हम पूर्व से ही अपने संस्कारों में रखते आयें हैं। अतः यह निर्विवाद सत्य है की भारतीय समाज, सभ्यता और संस्कृति प्रकृति के साथ समावेशित भाव से जीवन जीने की आदि रही है। इसलिए इस तरह की तमाम महामारियां आईं और भारतीयों से हार कर चली गईं।

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भारतीयों को अपने नेतृत्व पर भरोसा है

भारत आर्थिक रूप से समृद्ध भले नहीं हुआ हो लेकिन संक्रमण के काल में अपने नेतृत्व पर पूर्ण भरोसा रखकर स्वयं को घरों में बंद कर चूका है। भारत में समाज के अन्दर परिस्थितियों से लोहा लेने की जो ताकत निहित है। वह दुनिया में अन्यत्र नहीं दिखती। आज बिहार जैसे अति-पिछड़े राज्य से कई ख़बरें आ रही हैं कि सामाजिक स्तर पर लोग बाहर से आने लोगों को गांव के बाहर रुकने का प्रबंध कर रहे हैं। जांच पूर्ण होने तक उनको सभी प्रकार की आवश्यक सुविधाएं ग्रामीणों द्वारा गांव के मुख्य रास्ते के बाहर ही निःसंकोच पहुंचाई जा रही हैं। क्या पश्चिम देश इसका अनुसरण कर सकता है? हम अगर सफल भी होंगे तो इसीलिए क्योंकि हम कुछ आर्थिक नुक्सान सह कर भी दूसरों की फ़िक्र करने का माद्दा रखते हैं। यह असाधारण फैसला पश्चिम के देश नहीं ले सकते, जहां व्यक्तिवाद, उदारवाद तथा पूँजीवाद मिलकर व्यक्ति को समाज के केंद्र से बाहर निकाल देते हैं और नफा-नुक्सान के गणित में उलझाकर रख देते हैं।
 

‘रामधारी सिंह दिनकर’ अपने श्रेष्ठ लेखन ‘संस्कृति के चार अध्याय’ में लिखते हैं “भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जिसका अतीत कभी मरा नहीं है। वह वर्तमान के रथ पर चढ़कर भविष्य की ओर चलता रहता है। भारत का अतीत कल भी जीवित था, आज भी जीवित है और कदाचित आगे भी रहेगा। इसके मूल में समाज है जहाँ व्यक्तिवाद नतमस्तक हो जाता है।”  

 

पूंजीवाद एवं व्यक्तिवाद

पश्चिम के सामजिक दर्शन तथा राजनितिक हस्तक्षेप में गैर जरुरी विवाद हैं। भारत के लोग उनसे भिन्न हैं। अगर नेतृत्व की दृष्टी व्यापक और जनसामान्य के तरफ आलोकित हो तो समाज का हर तबका उसकी तरफ आकर्षित भी रहता है। नेहरु, इंदिरा गाँधी के बाद नरेन्द्र मोदी वह चेहरा हैं जिसमें लोगों की अटूट श्रधा है। जनता निषेधाज्ञा के दौरान घरों के दरवाजों पर थालियां, घंटियां बजाते लोगों ने जनता कर्फूयु के दिन यह सन्देश दे दिया था कि उनके आग्रह को लोग आज्ञा की तरह मानते हैं। क्या अमेरिका में यह संभव है? दुनिया भर से आ रही ख़बरों से यह जानकारी मिल रही है कि वहां के लोग इस संक्रामक महामारी को लेकर सरकार के निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं, यह जानते हुए भी कि इस व्यापक वैश्विक महामारी का एकमात्र उपचार इसके संक्रमण के व्यापक प्रसार के रोकथाम में निहित है।

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चीन के खिलाफ क्या दुनिया एकजुट होगी

 लेकिन क्या इस बीमारी से निपटने के बाद दुनिया चीन के विस्तारवाद के खिलाफ कुछ कदम उठाएगी? चीन के आर्थिक विकास में ही विस्तारवाद की गुत्थी निहित है। क्या इसका स्वरुप ब्रिटेन के साम्राज्यवाद से विलग होगा यह समझना आवश्यक है। अपने गृह युद्धों से पीड़ित ब्रिटेन का औद्योगिक वर्ग बाज़ार की तलाश में बाहर आया था। चीन आज खुद अति औद्योगिक उत्पादन से पीड़ित है और दुनिया भर को बाज़ार बना चूका है। लेकिन पारंपरिक उत्पादों से बाज़ार में उत्साह खत्म हो रहा है। चीन को बाज़ार उसके हाथों से फिसलता दिख रहा है। उसके सामानों में अपेक्षानुरूप कम गुणवत्ता उसके पिछड़ने का मूल वजह भी है। चीन किसी नए हथियार के तलाश में है और कुछ ऐसा बनाना चाहता है जो किसी भी अन्य देश के पास ना हो। दुनिया भर में हथियारों का बाज़ार रूस, इजराइल, अमेरिका,फ्रांस,जर्मनी जैसे देशों के पास पूर्व से ही सुरक्षित है। चीन उसमें अपनी भूमिका चाहता है और पारंपरिक हथियारों से विलग जैविक हथियारों के निर्माण में लगा है। उसके प्रयोगशालाओं में इस प्रकार के संदिग्ध कार्यों पर पूर्व में भी चिंताएं व्यक्त की गयी हैं।

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आज जब वुहान शहर से ‘वुहान वायरस’ बंद डिब्बे से बाहर आ गया है तब चीन की चोरी वैश्विक स्तर पर पकड़ी गयी है। चीन आंकडें छुपाने में माहिर देश है। वहां की राजनितिक व्यवस्था उसको प्रोत्साहित करती है। उसको फर्क नहीं पड़ता की कितने अभागों की जान इस प्रयोग से चली गयी बल्कि उसने माहौल को सकारात्मक दिखाने के दिशा में अलग-अलग प्रकल्पों पर कार्य भी शुरू कर दिए हैं। लेकिन इस वुहान वायरस ने दुनिया में जिस तरह की तबाही मचाई है उसका अंतिम परिणाम क्या होगा? क्या दुनिया चीन से कड़े सवाल पूछेगी? क्या दुनिया चीन के इस मानवता विरूद्ध आभियान के खिलाफ कुछ नियम स्वरुप सैंक्सन लगाएगी या तलवारों, तोपों, परमाणु बमों से आगे जैविक हथियारों से एक दूसरे पर हमला करते हुए देखेगी?

भारत प्रकाश पुंज बन के उभरेगा

इन तमाम परिस्थितियों पर चर्चा तो अवश्य होगी और भारत की भूमिका भी उसमे मुख्य रहेगी। परन्तु अगर हम इस जैविक महामारी से किसी वजह से हार जाएंगे तो वर्षों पीछे चले जाएंगे और दुनिया फिर हमें दुत्कार देगी, क्योंकि पूजा और श्रेष्ठता तो हमेशा से शक्तिशाली और संपन्न की होती है।आज हमारे देश के सामने एक मात्र विकल्प है कि हम अपनी सामाजिक संस्कारों को प्रस्फुटित करें, इतिहास से सबक लें और संक्रामक रोग के खिलाफ सरकारी प्रयास को सामाजिक स्तर पर भी नियमानुसार लागू करें। हम विजयी होंगे और निःसंदेह हम कोरोना और चीन के खिलाफ लड़ाई में प्रकाश बिंदु होंगे।

इस पड़ोसी देश से सीखें कोरोना से जीतने की तरकीब


 

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