देत लेत मन संक न धरई, बल अनुमान सदा हित करई
बिपति काल कर सतगुन नेहा, श्रुति कह संत मित्र गुन एहा
गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस की उपरोक्त चौपाई का भावार्थ यह है कि “एक श्रेष्ठ मित्र का गुण यह है कि वह लेन-देन की प्रक्रिया के दौरान मन में शंका न रखे, अपने सामर्थ्य के अनुसार हित करता रहे और विपत्ति के काल में सौगुना स्नेह करे. निश्चित रूप से आज के परिदृश्य में तुलसीदास जी की उक्त पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए भारत ने विश्व के कई देशों को संकट के समय में हर स्तर पर मदद करके किया है. उसकी सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है भारत द्वारा विश्व के कई देशों में दी जा रही भारत में निर्मित वैक्सीन, जिसे “वैक्सीन मैत्री’ का नाम दिया गया है. गौरतलब है कि ‘वैक्सीन मैत्री’ अभियान के अंतर्गत विश्व के अनेकों देशों को कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराई जा रही है. इस अभियान का नेतृत्व भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं. वैश्विक मंच पर भारत की गौरवशाली परंपरा को पुनः स्थापित करने वाले इस वैक्सीन मैत्री का अभियान निरंतर जनकल्याण से जग कल्याण के उद्देश्यों की ओर तेज़ी से अग्रसर है.
यहां दो बातों का महत्वपूर्ण और अनिवार्य रूप से उल्लेख किए जाने की आवश्यकता है. पहला यह कि भारत का वर्तमान नेतृत्व ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ में पूर्ण रूप से आस्था रखता है और दूसरा विश्व की राजनीतिक और कूटनीतिक बिरादरी के बीच एक आवश्यक संदेश भी पहुंचाना है कि संकट के समय में भारत अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक एकजुटता का नेतृत्व करने में सक्षम है. ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना को आत्मसात करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की सरकार द्वारा 23 मार्च तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 76 देशों को भारत में निर्मित वैक्सीन दी जा चुकी है.
यहां एक महत्वपूर्ण तथ्य भी है कि अब तक भारत के लगभग 5 करोड़ लोगों को कोरोना का टीका लगाया जा चुका है. समग्र रूप से वैक्सीन के इस अभियान को देखें तो यह स्पष्ट है कि भारत ने लोक-कल्याण की दृष्टि से अपने ‘वैक्सीन मैत्री’ अभियान को शुरू किया और ‘राष्ट्र प्रथम’ के विचार से स्वयं को दूर नहीं रखा.
वर्ष 2020 का मार्च माह जब कोरोना वायरस ने पूरे विश्व में अपने पांव को पसारना शुरू किया था. स्थिति दिन पर दिन भयावह होती जा रही थी. दुनिया भर के बड़े और विकसित देश जैसे अमेरिका, इटली, इंग्लैंड, ब्राजील इस बीमारी के आगे असहाय नजर आ रहे थे. उस कठिन वक्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमने अपने देश की व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से तो संभाला ही, इसके साथ-साथ हमने विश्व को मानवता के कल्याण की दृष्टि से से देखा. उस वक्त भारत ने लगभग 150 देशों को दवाओं की आपूर्ति की. केवल यही नहीं कई देशों में हमने अपने डॉक्टर और नर्स तक भेजे. जब कोरोना अपने विकराल रूप दिखला रहा था उस वक्त भी अन्य देशों की तुलना में भारत उसे रोकने में सफल रहा था. अमेरिका, रूस, जर्मनी, इंग्लैंड जैसे देशों में प्रति लाख की आबादी पर कोरोना के मामले और भारत में प्रति लाख की आबादी पर कोरोना के मामलों में जमीन-आसमान का अंतर था. डब्लूएचओ द्वारा पिछले वर्ष 2020 के जून में एक रिपोर्ट जारी हुई थी , जिसमें भारत में प्रति लाख जनसंख्या पर कोरोना से संक्रमण के मामले 30.04 थे, जबकि वैश्विक औसत इसके तीन गुणा से अधिक 114.67 रहे. अमेरिका में प्रति लाख जनसंख्या पर 671.24 मामले थे,वहीँ जर्मनी, स्पेन और ब्राजील के लिए यह आंकड़ा क्रमशः 583.88, 526.22 और 489.42 थे.
भारत की परिस्थिति इसलिए भी भिन्न रहीं क्योंकि भारत ने संयम का परिचय दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत ने कई मोर्चों पर एक साथ लड़ाई लड़ी. मसलन इतनी बड़ी जनसंख्या से लगातार संवाद स्थापित करना, उन्हें सामाजिक दूरी की महत्ता को समझाना, फ्रंट लाइन के लोगों जैसे डॉक्टर, पुलिस के जवान, सफाई कर्मी, स्वास्थ्य कर्मियों का लगातार उत्साह वर्धन करते रहना, क्योंकि यह एक जटिल और लंबी लड़ाई होने जा रही थी. ऐसे में हौसला, सामूहिकता और मजबूत दृढ़ इच्छाशक्ति में बिना इतनी लंबी लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती थी. वैक्सीन को लेकर सबके मन में कई सवाल और संशय था. सवाल यह था भारत में वैक्सीन कब आएगी और संशय यह था क्या यह टीका सुरक्षित है. अब इन संशयों और सवालों से हम बहुत आगे आ चुके हैं. 3 जनवरी 2021 की सुबह ने भारत सहित दुनिया के तमाम देशों को राहत प्रदान की जब भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ने कोरोना वायरस की वैक्सीन के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी. निस्संदेह यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होने के साथ-साथ इस तथ्य को सिद्ध करती है कि लोक-कल्याण के लिए किया गया सद्प्रयास हमेशा सफल रहता है. इस अवसर पर प्रधानमंत्री वैक्सीन निर्माण को कोरोना के खिलाफ जारी जंग का निर्णायक मोड़ बताया. निश्चित रूप से वैक्सीन के निर्माण ने आत्मनिर्भर भारत के अभियान में मील का पत्थर साबित हुआ. वैक्सीन का निर्माण हो गया था, लेकिन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जिनका संपूर्ण सार्वजनिक जीवन लोक-कल्याण के लिए समर्पित रहा, उनके नेतृत्व में ‘वैक्सीन मैत्री’ अभियान का श्री गणेश हुआ.
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यहां विदेश मंत्री एस. जयशंकर के एक बयान का उल्लेख करना आवश्यक है, जिसमें उन्होंने कहा कि वैक्सीन मैत्री पहल ‘जनहित डिप्लोमेसी’ है. इस अभियान ने भारत के प्रति एक ऐसी भावना को उत्पन्न किया है जो बिना किसी स्वार्थ के सेवा उपलब्ध कराने के साथ-साथ ऐसे गुणात्मक उत्पादों का निर्माण करने में भी सक्षम है.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में वैक्सीन मैत्री की इस अनूठी पहल ने विश्व समुदाय का ध्यान भारत की तरफ आकृष्ट तो किया ही है, इसके साथ ही भारत के मानवीय मूल्यों, लोक कल्याण की भावना से भी विश्व परिचित हुआ है. अभी तक 76 देशों को यह जीवनदायी टीका देकर भारत ने अपनी यशस्वी परंपराओं को, अपने नैतिक मूल्यों को दुनिया भर में एक बार पुनः स्थापित करने में सफल रहा है. निश्चय ही इस सफलता के पीछे हमारे वैज्ञानिक, हमारे फ्रंट लाइन वर्कर्स और हमारे देश का राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक नेतृत्व कर रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं.