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इस पड़ोसी देश से सीखें कोरोना से जीतने की तरकीब

दुनिया में जहां एक ओर कोरोना से लड़ने में बड़े-बड़े  राष्ट्र असफल होते जा  रहे हैं, वहीं छोटे राष्ट्र इस पर  काबू पाने में सफल हो रहे हैंं।

मनीषा शर्मा
कोरोना वायरस (वैश्विक महामारी) का संक्रमण पुरे विश्व में बहुत तेज़ी से फ़ैल रहा है| अब तक पुरे विश्व में कोरोना के 1,604,855 मामले पुष्टि हो चुके है जिसमे से 95,738 लोगो की मृत्यु हो चुकी है। कोरोना के इस दौर में भारत के पड़ोसी देशों का क्या हाल है। यह जानने के लिए हम लगातार भारत के पड़ोसी देशों के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

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आज बात करेंगे वर्मा की

आज बात म्यान्मार यानी वर्मा का करते हैं। वर्मा का जिसका कुल क्षेत्रफ़ल 6,78500 वर्ग किलोमीटर है। दक्षिण पूर्व एशिया का यह सबसे बड़ा देश है। इसकी जनसंख्या 5,43,26,994 है जो विश्व का 0.7 फीसद है । यह  विश्व का 26 वां सबसे बड़ा देश है। बावजूद इसके इस देश ने अपने यहां कोरोना को शानदार तरीके से रोक सका है। यह आलेख लिखे जाने तक वर्मा में महज 27 मामलो की पुष्टि हुई है। 3 की मृत्यु हो चुकी है और 2 व्यक्ति रिकवर हो चुके हैं।

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म्यान्मार सरकार ने अपने वेबसाइट (https://mohs.gov.mm/Main/content/page/covid-19-contact) पर प्रत्येक मामले के बारे में विस्तार से बताया है। म्यानमार में अब तक 1,406 टेस्ट किये जा चुके है जिसमे से 1138 को होम क्वारंटाइन, 101 फैसिलिटी क्वारंटाइन, 63 हॉस्पिटल क्वारंटाइन और 34 लोग अंडर इन्वेस्टीगेशन हैं। म्यानमार जैसे देश जिसे स्वास्थ्य के पायदान पर बहुत नीचा रखा जाता रहा है, ने भी कोरोना से लड़ने में कमर कस लिया है। उसकी तैयारियों को देखकर ऐसा लग रहा है कि म्यानमार इस महामारी से जल्द काबू पा लेगा।
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म्यांमार में स्वास्थ्य की स्थिति

म्यांमार में हेल्थकेयर को दुनिया में सबसे निचले स्थान पर बताया जाता रहा है। 2015 में, एक नई लोकतांत्रिक सरकार के साथ, स्वास्थ्य देखभाल सुधारों की एक श्रृंखला अधिनियमित की गई थी। 2017 में, यहां की सरकार ने स्वास्थ्य व्यय पर जीडीपी का 5.2% खर्च किया। खर्च में वृद्धि जारी रहने से स्वास्थ्य संकेतक बेहतर होने लगे हैं। मरीजों की जेब से स्वास्थ्य देखभाल की लागत का ज्यादातर भुगतान अभी भी किया जा रहा है। हालांकि, 2014 से 2015 तक जेब की लागत 85% से 62% तक कम हो गई थी। वे सालाना घटते जा रहे हैं। जेब से भुगतान की गई स्वास्थ्य देखभाल की वैश्विक औसत लागत 32% है। डॉक्टरों और नर्सों की राष्ट्रीय कमी के कारण सार्वजनिक और निजी दोनों अस्पतालों को समझा जाता है। सार्वजनिक अस्पतालों में कई बुनियादी सुविधाओं और उपकरणों का अभाव है। डब्ल्यूएचओ लगातार म्यांमार को स्वास्थ्य सेवा में सबसे खराब देशों में शुमार करता है।
2015 की मातृ मृत्यु दर प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 178 मृत्यु थी। इसकी तुलना 2010 में 240, 2008 में 219.3 और 1990 में 662 के साथ की गई है। नवजात मृत्यु दर 5 प्रतिशत से कम है। म्यांमार में प्रति 1,000 जीवित जन्मों में दाइयों की संख्या 9 है और गर्भवती महिलाओं के लिए मृत्यु का आजीवन जोखिम 180 में 1 है।
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स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा

बर्मा में 6 चिकित्सा विश्वविद्यालय हैं: 5 नागरिक और एक सैन्य। सभी सरकार द्वारा संचालित और म्यांमार मेडिकल काउंसिल द्वारा मान्यता प्राप्त हैं। मार्च 2012 में, ओकायामा विश्वविद्यालय ने घोषणा की कि वह देश में एक मेडिकल अकादमी बनाने की योजना बना रहा है, जिसे अस्थायी रूप से रिंझो अकादमी नाम दिया गया है, जो देश में पहला विदेशी संचालित मेडिकल स्कूल होगा।
 

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